गांधी से दूर होता और गोडसे के करीब आता न्यू इंडिया!

1
158

हुक्मरान बदले हैं हालात नहीं।

आज जब देश को आजाद हुए मात्र 7 दशक पूरे हुए हैं,महात्मा गांधी की प्रासंगिगता पुनः महसूस होने लगी है। गांधीजी ने उस साम्राज्य से भारत को आजादी दिलाने में अहम भूमिका निभाई जिनके बारे में कहावत थी कि उनका कभी सूर्यास्त होता ही नहीं था।कुरुरता,दमन और शोषण  जिनकी नीति थी।बन्दूक और हंटर के बल पर जिन्होंने देश पर 2 सौ वर्ष तक शासन किया था ऐसे गोरों को गांधी जी ने अहिंसा और सत्याग्रह के बल पर झुकने को मजबूर कर दिया और अंततः 15 अगस्त 1947 को अंग्रेजों को भारत को आजादी देनी पड़ी।

    लेकिन अफसोस होता है कि जिस व्यक्ति के आगे विश्व मे राज करने वाले गोरे तक हारमान हो गए,उस व्यक्ति को अपने ही आजाद देश के व्यक्ति के हाथो हार माननी पढ़ी ये कलंक भारत पर हमेसा बना रहेगा।जब -जब स्वतंत्रता क्रांति,सत्याग्रह और महात्मा गांधी का नाम आएगा 30 जनवरी 1948 के वो काला दिन भी याद आएगा जब बापू जी को एक कट्टर स्वदेशी हिन्दू नाथू राम गोडसे द्वारा गोली मारकर हत्या कर दी थी।

 सत्य ,अहिंसा,बन्धुत्व,भाईचारा ,सहिष्णुता तभी खत्म हो गयी थी,और वर्तमान में ये अपनी चरम सीमा पर पहुंच गई हैं।आज हालत ये है कि गांधी अगर जिंदा होते तो हर दिन सत्याग्रह होता,हर रोज असहयोग आंदोलन होता  और हर रोज दांडी मार्च की तरह संसद मार्च होता।ये इसलिए लिखा जा रहा है कि दमन,शोषण,अत्याचार,हिंसा,फूट डालो राज करो,रौलट एक्ट जैसे कानून आदि-आदि हूबहू ब्रिटिश रूल की तर्ज पर जारी हैं।बस अंतर इतना है कि सिर्फ हुक्मरान बदले हैं हालात नहीं।

 भारत में गांधी ने अपना प्रथम आंदोलन चंपारण के किसानों की  समस्याओं के लिए किया था।और अंग्रजों को नील की खेती बन्द करनी पड़ी थी।आज भी भारत के किसान गम्भीर संकट से गुजर रहे हैं।परिणामतः आये दिन किसान आत्महत्याएं करने को बेबस हो रहे हैं।आज गांधी होते तो एक सत्याग्रह किसानों के लिए जरूर होता।

  आज देश में भीड़ की हिंसा बेहद चिंता का विषय बनी हुई हैं।

देश की वर्तमान हालातों,परिस्थितियों को देखकर गांधी जी खुद ही अफसोस करते कि हमने क्यों आजादी के लिए लाखों नौजवानों की कुर्बानियां दी थी जब हर रोज यहां खून खराबा और अशांति  ही बनी रहनी थी तो?किस-किस घटना और चीज के लिए,किस-किस समस्या के लिए ,किस-किस हिंसा के लिए,किस-किस नेता की करतूतों के लिए,किस-किस सन्त और बलात्कारी बाबाओं तथा नेताओं के लिए अनशन और धरना देते ?150 साल भी कम पड़ जाते।

गांधी  की विचारधारा आज मनरेगा और मुद्रा तक ही सिमट गई हैं।स्वछ भारत अभियान का चश्मा  झाड़ू तक सिमट गया है।

सत्य की जगह भ्र्ष्टाचार ,घूसखोरी,बेईमानी,जमाखोरी,मिलावटखोरी ने ले ली है।

अहिंसा की जगह भीड़ की हिंसा ने ले ली है।समानता जिसके लिए डॉ0 आंबेडकर और गांधी ने  जीवन लगा दिया असमानता की खाई बढ़ती जा रही है।विदेशी राज से आजादी के लिए गांधी और देशी धर्म राज की दासता से वंचितों ,दलितों,महिलाओं को असमानता,जातिभेद,शोषण से मुक्ति के लिए डॉ0 आंबेडकर समान रूप से लड़ाई लड़ रहे थे।लेकिन विदेशी शक्ति को तो परास्त कर दिया उनको भारत छोड़कर जाना पड़ा।मगर देशी वर्ण राज व्यवस्था और जातिभेद ने आजतक भारत में मजबूती से पैर जमाये हुये हैं ।और इसकी जड़ों को कट्टर हिंदुत्व  की विचारधारा से सींचा जा रहा है।यहाँ गांधी जी के 150 वें जन्म दिवश पर अम्बेडकर का जिक्र करना पाठकों को अटपटा लग रहा होगा या कुछ तुलनात्मक विचार भी उतपन्न हो रहे होंगे ।यद्यपि समकालीन राजनीति और परिस्थियों में डॉ0 आंबेडकर और महात्मा गांधी के मध्य काफी मतभेद रहे हैं।इसका सबसे बड़ा सबूत कम्युनल अवार्ड है जिसको डॉ0 आंबेडकर ने लंदन गोलमेज सम्मेलन में पास करवाया था।जसके विरोध में महात्मा गांधी ने यरवदा जेल में आमरण अनशन शुरू कर दिया था ।परिणाम स्वरूप 24 सितंबर 1932 को डॉ0 आंबेडकर को पूना पैक्ट करना पड़ा।जिससे डॉ0 भीमराव अंबेडकर और महात्मा गांधी के बीच राजनीतिक मतभेद बढ़ता गया।

 गांधी और अंबेडकर का जिक्र एक साथ इसलिए करना पड़ा  ताकि हम ये भली भांति समझ सकें कि महात्मा गांधी की हत्या और डॉ0 अंबेडकर का धर्म परिवर्तन एक ही विचारधारा ने किया था।अर्थात दोनों घटनाएं एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।

विज्ञान और तकनीक में देश काफी प्रगति पर है।संपेरों का देश कहा जाने वाला भारत आज डिजिटल इंडिया और  फिट इंडिया में तब्दील हो रहा है।चाँद पर कदम पहुंचने ही वाले हैं।मगर समाज के आंतरिक संरचना के इलेक्ट्रान समाज की नाभिक से इतने फ्री हो गए हैं कि  इनसे बचना मुश्किल हो रहा है।

अगर एक शब्द में कहा जाए तो आज देश “गांधी से दूर और गोडसे के करीब आ रहा है”

आई0 पी0 ह्यूमन

1 COMMENT

  1. अवश्य मनाइए गाँधी जयंती लेकिन नाथूराम गोडसे, जिन्हें फांसी की सजा देने वाले न्यायाधीश गोपाल दास खोसला ने अपनी पुस्तक “मर्डर ऑफ द महात्मा” में लिखा है कि उस समय न्यायालय में उपस्थित दर्शकों को यदि निर्णायक समिति का स्थान दिया गया होता तो बहुमत के आधार पर वे महात्मा गाँधी की हत्या के आरोप से निर्दोष पाए जाते को आज कृपया इस अवसर पर फिर से कोसते और ऐतिहासिक मोहनदास करमचंद गाँधी की छड़ी से हिंदुत्व को न पीटिये! आज बात कीजिए अच्छे न्याय व विधि व्यवस्था के अंतर्गत युगपुरुष नरेन्द्र मोदी द्वारा स्थापित राष्ट्रीय शासन में हम सभी यथासंभव योगदान देते किस प्रकार नव भारत को स्वच्छ सुन्दर सशक्त व सुदृढ़ बना पाएं |

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here