सुधरेगी जम्मू-कश्मीर की तस्वीर

  • योगेश कुमार गोयल

करीब एक पखवाड़े से जम्मू-कश्मीर में जारी गहमागहमी और सैन्य हलचल के बीच
देशभर में जम्मू कश्मीर को लेकर बनी असमंजस की स्थिति उस वक्त खत्म हो गई, जब केन्द्र
सरकार द्वारा अनुच्छेद 370 को समाप्त करने का ऐलान करते हुए जम्मू कश्मीर को केन्द्र
शासित प्रदेश का दर्जा देकर लद्दाख को उससे अलग कर पृथक केन्द्र शासित प्रदेश का दर्जा दे
दिया गया और जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन बिल राज्यसभा में पास भी करा दिया गया। कश्मीर को
धरती का स्वर्ग बनाए रखने के लिए इस कठोर व साहसी कदम की जरूरत बहुत लंबे अरसे से
महसूस की जा रही थी। अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा प्राप्त रहा है,
जिसकी वजह से संसद से पारित कई कानून भी इस राज्य में लागू नहीं हो पाते थे और केन्द्र
सरकार भी रक्षा, विदेश मामलों और संचार जैसे अहम विषयों के अलावा इस राज्य के अन्य
किसी भी मामले में दखल नहीं दे सकती थी। भारत के सर्वोच्च न्यायालय के आदेश जम्मू-
कश्मीर के अंदर मान्य नहीं होते थे।
देश की आजादी के बाद गोपालस्वामी आयंगर ने संसद में धारा 306-ए का प्रारूप पेश
किया था, जो बाद में धारा 370 बनी। इस अनुच्छेद के तहत जम्मू-कश्मीर को अन्य राज्यों से
अलग अधिकार दिए गए। 27 अक्तूबर 1947 को जम्मू-कश्मीर के राजा हरि सिंह ने विलय संधि
पर दस्तखत किए थे। उसी समय अनुच्छेद 370 की नींव पड़ गई थी, जब समझौते के तहत
केन्द्र को सिर्फ विदेश, रक्षा और संचार मामलों में दखल का अधिकार मिला था। 17 अक्तूबर
1949 को अनुच्छेद 370 को पहली बार भारतीय संविधान में जोड़ा गया और महाराजा हरि सिंह
ने ‘जम्मू-कश्मीर इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन’ पर 27 अक्तूबर 1947 को दस्तखत किए, उसी के साथ
अनुच्छेद 370 अस्तित्व में आया। 1951 में राज्य को अलग से संविधान सभा बुलाने की
अनुमति दी गई थी। नवम्बर 1956 में राज्य के संविधान का कार्य पूरा हुआ और 26 जनवरी
1957 को जम्मू कश्मीर में विशेष संविधान लागू कर दिया गया।

अनुच्छेद 370 के लागू रहते जम्मू कश्मीर के नागरिकों द्वारा भारत की आन-बान-शान
के प्रतीक राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे का सम्मान करना अनिवार्य नहीं था, वहां का अपना अलग झंडा
होता था। जम्मू-कश्मीर में भारत के राष्ट्रध्वज या राष्ट्रीय प्रतीकों का अपमान कोई अपराध नहीं
था और अनुच्छेद 370 के चलते ही वहां के लोग सरेआम तिरंगे सहित अन्य राष्ट्रीय प्रतीकों का
अपमान करते थे, जगह-जगह पाकिस्तानी झंडे लहराये जाते थे। अब इन हरकतों पर आसानी से
लगाम लगाई जा सकेगी। गृहमंत्री अमित शाह ने दो टूक शब्दों में बिल्कुल सही कहा कि धारा
370 से सात दशकों में जम्मू कश्मीर में अगर किसी को फायदा हुआ तो सिर्फ नेताओं को।
उनका कहना है कि धारा 370 आतंकवाद की जड़ है, जिससे राज्य को बहुत नुकसान हुआ है।
इसी के चलते भ्रष्टाचार और गरीबी बढ़ी लेकिन लोकतंत्र मजबूत नहीं हुआ। इसी के चलते राज्य
में 70 सालों से सरपंचों के अधिकार छीने गए।
अमित शाह ने अगर जम्मू-कश्मीर में गरीबी के लिए धारा 370 को जिम्मेदार ठहराया है
तो इसके कारण भी स्पष्ट बताए हैं। उनके अनुसार 2004 से 2019 तक 2 लाख 77 हजार करोड़
रुपया प्रदेश को भेजा गया लेकिन जमीन पर कुछ काम नहीं दिखा। 2011-12 में ही वहां 3687
करोड़ रुपया भेजा गया अर्थात् वहां के हर नागरिक के लिए 14 हजार रुपये की राशि थी लेकिन
लोगों तक कुछ नहीं पहुंचा। 2017-18 में भी 27 हजार रुपये प्रति व्यक्ति के हिसाब से दिया
गया लेकिन न जाने वह पैसा कहां चला गया। केन्द्र से जम्मू कश्मीर के विकास के लिए भेजी
जाती रही भारी-भरकम धनराशि भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ती रही। अनुच्छेद 370 के ही कारण जम्मू
कश्मीर में लोकतंत्र कभी नहीं पनप सका, अगर कुछ पनपा और फला-फूला तो केवल भ्रष्टाचार
और गरीबी। धारा 370 और 35ए की वजह से ही कश्मीर कंगाल बन गया। अनुच्छेद 370 की
वजह से ही घाटी में स्वास्थ्य सेवाएं चौपट रही, जहां न अच्छे अस्पताल रहे और न ही प्रशिक्षित
डॉक्टर। न वहां ‘सूचना का अधिकार’ (आरटीआई) लागू होता था, न ‘शिक्षा का अधिकार’ कानून
के लिए कोई जगह थी। यही वजह थी कि इस प्रदेश में न केवल भ्रष्टाचार तेजी से फलता-
फूलता रहा बल्कि आम लोगों को शिक्षा के लिए जागरूक करने में भी कभी सफलता नहीं मिली।
धारा 370 के रहते पंचायतों के पास कोई अधिकार नहीं था। कितनी बड़ी विड़म्बना रही कि वहां
कार्यरत चपरासी को आज के इस महंगाई के जमाने में भी मात्र 2500 रुपये वेतन ही मिल रहा
था।
धारा 370 के चलते ही घाटी में पर्यटन को बढ़ावा नहीं मिला क्योंकि तमाम बड़ी पर्यटन
कम्पनी वहां का रूख करने से घबराती थी क्योंकि न वे वहां जमीन खरीद सकती थी और न ही
वहां खुद को सुरक्षित मानती थी। कश्मीर की अर्थव्यवस्था में पर्यटन का बहुत बड़ा योगदान रहा

है लेकिन 370 तथा 35ए की आड़ में आतंकी घटनाओं और पत्थरबाजों की हरकतों से कश्मीर के
हालात इतने बदतर हो चुके थे कि पर्यटक कश्मीर का रूख करने से डरने लगे थे। वर्ष 2016 में
शुरूआती चार महीनों के दौरान करीब चार लाख पर्यटक कश्मीर पहुंचे थे जबकि 2017 में इसी
अवधि के दौरान यह आंकड़ा मात्र एक लाख सत्तर हजार के करीब रह गया था और पिछले साल
भी इन्हीं चार माह के दौरान सिर्फ डेढ़ लाख पर्यटकों ने ही कश्मीर का रूख किया जबकि इस
बार पर्यटकों की संख्या और भी कम रही। धारा 370 हटने के बाद कश्मीर में पर्यटन की टूटती
रीढ़ का अब समय रहते समुचित इलाज करने में भी मदद मिलेगी। यह धारा हटने के बाद अब
उद्योग-धंधे भी कश्मीर का रूख कर सकेंगे, जिससे वहां विकास की नई तस्वीर उभरेगी।
अनुच्छेद 370 हटने के बाद जम्मू-कश्मीर दिल्ली की तरह विधानसभा वाला केन्द्र शासित
प्रदेश होगा। सीमा पार आतंकवाद के लगातार बढ़ते खतरों के मद्देनजर दशकों से देशभर में
जम्मू कश्मीर से धारा 370 हटाये जाने की मांग प्रबल रही है किन्तु राजनीतिक इच्छाशक्ति न
होने के कारण कोई भी सरकार यह कड़ा फैसला लेने में सफल नहीं हुई, जिसकी सजा न केवल
जम्मू कश्मीर बल्कि पूरा देश अब तक भुगतता रहा है। गृहमंत्री के अनुसार 1989 से 2018 तक
राज्य में आतंकी घटनाओं के चलते 41849 लोगों की जान चली गई, अगर अनुच्छेद 370 नहीं
होता तो इतने लोगों की जानें नहीं जाती। अनुच्छेद 370 खत्म होने के बाद जम्मू-कश्मीर में अब
बहुत से बदलाव नजर आएंगे। अब वहां भी हमारा तिरंगा लहराएगा और वहां के लोगों के लिए
तिरंगे का सम्मान करना अनिवार्य होगा। वहां के नागरिकों के पास भारत और कश्मीर अर्थात्
दोनों ही जगह की दोहरी नागरिकता होती थी किन्तु देश के अन्य तमाम राज्यों की भांति जम्मू
कश्मीर के नागरिक भी केवल भारतीय नागरिक ही रहेंगे। अब देश के दूसरे राज्यों के लोग भी
वहां जमीन-जायदाद की खरीद-फरोख्त कर सकेंगे। अनुच्छेद 370 रहते कितनी विरोधाभासी
स्थिति थी कि अगर जम्मू-कश्मीर की कोई महिला भारत के किसी दूसरे राज्य के व्यक्ति से
विवाह कर लेती थी तो उस महिला की जम्मू कश्मीर की नागरिकता समाप्त हो जाती थी किन्तु
अगर वही महिला किसी पकिस्तानी से निकाह करती थी तो कश्मीर में रहने वाले उस
पाकिस्तानी को भी जम्मू-कश्मीर की नागरिकता मिल जाती थी। 370 हटाए जाने के बाद यह
विरोधाभासी स्थिति खत्म हो गई है। अगर वहां की कोई महिला अब किसी दूसरे राज्य के
व्यक्ति से विवाह करेगी तो वह भी भारतीय नागरिक ही कहलाएगी।
बहरहाल, जम्मू कश्मीर को केन्द्र शासित प्रदेश का दर्जा देने और धारा 370 को खत्म
करने का मोदी सरकार का साहसिक कदम फारूक अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला, महबूबा मुफ्ती जैसे
घाटी में पल रहे 400-500 आतंकियों के दम पर भारत की सरजमीं पर ऐश करते उन पाकिस्तान

परस्त नेताओं के गाल पर करारा तमाचा है, जो केन्द्र सरकार को खुली धमकी दिया करते थे कि
अगर सरकार ने धारा 370 या 35ए को छूने की कोशिश भी की तो जिस्म जलकर राख हो
जाएगा। फारूक ने अपने बयानों में सरकार को बार-बार ललकारते हुए कहा था कि मोदी क्या
कर लेंगे, जो धारा 370 की बात कर लेंगे, अगर वो 10 बार भी देश के प्रधानमंत्री बन जाएं तो भी
वे धारा 370 को छू भी नहीं सकते। महबूबा भी सरकार को धमकी देती घूम रही थी कि आपने
धारा 370 और 35ए को छेड़ा तो यह बारूद को छेड़ने जैसा होगा और ऐसे में फिर कश्मीर को
भूल जाना। उमर भी ऐसी भी बगावती भाषा बोलकर आम कश्मीरियों को भड़काते और गुमराह
करते रहे थे किन्तु जब से जम्मू कश्मीर में सेना की हलचलें बढ़ी और 38 हजार से भी ज्यादा
अतिरिक्त सैन्य बल वहां भेजा गया, तभी से कश्मीरी जनता को भड़काकर अपनी राजनीतिक
दुकान चमकाने वाले इन सभी नेताओं के सुर पूरी तरह बदल गए थे और महबूबा जैसी विद्रोही
नेता तो यहां तो कहती नजर आई थी कि इस्लाम में हाथ जोड़ने को हराम माना जाता है किन्तु
वह फिर भी प्रधानमंत्री के सामने हाथ जोड़ती हैं कि वे कश्मीरियों की पहचान बचा लें, जिनके
लिए वे 1947 में भारत के साथ मिले थे।
जम्मू कश्मीर में दहशतगर्दी को बढ़ावा देते रहे ये नेता किस कश्मीरियत की बात करते
रहे हैं, वही कश्मीरियत, जिसके नाम पर पिछले काफी समय से भारत के सरताज कश्मीर को
पाकिस्तान में मिलाने का खेल खेला जा रहा था और जब-तब केन्द्र सरकार की धमकियां देते
हुए आंखें तरेरी जाती थी। शायद ये लोग 1990 के उन लम्हों को भूल गए, जब वहां फारूक
अब्दुल्ला की सरकार हुआ करती थी और बाकायदा मस्जिदों से अजान देने वाले लाउडस्पीकरों से
घोषणाएं की गई थी कि सभी हिन्दुओं को आगाह किया जाता है कि वे अपनी तमाम सम्पत्ति
और महिलाएं हमारे सुपुर्द करके आज ही कश्मीर छोड़ दें वरना अपने अंजाम के वे स्वयं
जिम्मेदार होंगे। तब कहां मर गई थी फारूक अब्दुल्ला की कश्मीरियत? क्या भारत के ही अभिन्न
अंग कश्मीर के स्थायी निवासी के रूप में वहां रह रहे हिन्दू कश्मीरी नहीं थे? तब कश्मीर में
वहशी दरिंदे हिन्दुओं की सम्पत्ति लूटकर उन्हें खदेड़ रहे थे और उनकी बहू-बेटियों की अस्मत
लूटने के लिए उन्हें जबरन उठा ले गए थे, उस समय फारूक का जमीर क्यों मर गया था?
सही मायनों में जम्मू कश्मीर से धारा 370 और धारा 35 ए तो 1990 के उस दौर में
तुरंत प्रभाव से खत्म कर दी जानी चाहिए थी लेकिन ऐसी प्रबल राजनीतिक इच्छाशक्ति का
अभाव पिछली तमाम सरकारों में स्पष्ट झलकता रहा। आज अगर केन्द्र सरकार ने घाटी के
अलगावादियों की तमाम धमकियों को रौंदते हुए बरसों से जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा और
अलग संविधान देती रही धारा 370 को खत्म करने का साहस दिखाया है तो इसके लिए सरकार

की जितनी भी सराहना की जाए, कम है। निश्चित रूप से जम्मू कश्मीर से धारा 370 खत्म
करने और इसे एक अलग केन्द्र शासित प्रदेश का दर्जा देते हुए लद्दाख को इससे अलग करने
के अति महत्वपूर्ण कदम से अलगाववादी नेताओं की घृणित राजनीति पर लगाम लगेगी और
आने वाले दिनों में जम्मू कश्मीर की स्थिति में बड़ा सुधार देखने को मिलेगा।
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक एवं वरिष्ठ पत्रकार हैं)

सम्पर्क: मीडिया केयर नेटवर्क, 114, गली नं. 6, वेस्ट गोपाल नगर, एम. डी. मार्ग, नजफगढ़, नई

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