बादलों पर गीतों के टुकड़े

raineनहीं होती बात जब कुछ कहने को

मैं यूँ  ही कोई गीत गुनगुना देता हूँ ।

बादल अक्सर उड़ते हुए यहाँ वहाँ

पकड़ लेते हैं मेरे गीतों के टुकडों को और बैठा लेते है अपने ऊपर ।

 

बादलों को अच्छा लगता होगा गीतों को लेकर उड़ना

शायद उन्हें भी पता होगा कि

इससे कुछ शीतल हो जाते है वे

और उनकी धरती पर पड़ती छाया भी कुछ श्वेतल हो जाती है।

 

बादल कुछ चंचल भी होने लगते है

छोड़ने लगते है अपने बुद्धत्व को

गीतों को अपने पर बैठाए वे दिखने लगते है ऐसे

जैसे अब बरसात  रसमय होगी धरती पर इस बार

और

वे सीधे सिंचित करेंगे स्नेह भाव से हर मन को

हर भाव को।

 

इस बार बादल विचारों से ले लेंगे उनका भारीपन

और उन्हें कर देंगे कुछ अधिक सटीक किसी चिड़िया के पंखों सा ।

 

इस बार बादल

जमीन पर पड़े बीजों को भी अंदर नहीं धसायेंगे गहरे धरती में

ऊपर ही ऊपर वे फल फूल सकेंगे

कुछ अधिक हो स्नेहिल हो गई धरती के भाव भरे संसार में …

1 COMMENT

  1. अति सुन्दर रचना | पर बरसात के मौसम में जब बादल गरज रहे तो विरहनी के मन में क्या प्रश्न उठते है इसका भी आनंद ले “विरहनी का सन्देश वाहक बादल” नामक कविता पढ़ कर|

    आर के रस्तोगी

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