पिता दिवस

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पिता परमेश्वर तो नहीं,पर परिवार का तो पालक है।
करता है दिन रात परिश्रम,वहीं घर का चालक है।।

पिता ही पत्नी का पति है,उससे ही सारे रिश्ते बनते है।
चाचा ताऊ नाना मामा,परिवार के रिश्ते इससे बनते है।।

पिता ही मां का श्रंगार है,बच्चो का वह संसार कहलाता है।
पिता ही घर की छत दीवार है,वह ही सबको बहलाता है।।

पिता ही घर का भार उठाता है,वह ही सबको समझाता है।।
मानता नहीं जब कोई उसकी, रोने पर उतारू हो जाता है।।

पिता ही स्वप्नों का साकार करता,जो परिवार बुनता है।
टूट जाते हैं उसके सपने,जब न कोई उसकी सुनता है।।

पिता के अधिकार बहुत है,पर कर्तव्य से बंधा रहता हैं।
कर्तव्यों को पूरा करते करते,पर अधिकार के लिए न लड़ता है।।

पिता घर का भार उठाते उठाते जीवन में थक जाता है।
रोता है वह फूट फूट कर,जब मां बाप का बटवारा हो जाता है।।

आर के रस्तोगी

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आर के रस्तोगी
जन्म हिंडन नदी के किनारे बसे ग्राम सुराना जो कि गाज़ियाबाद जिले में है एक वैश्य परिवार में हुआ | इनकी शुरू की शिक्षा तीसरी कक्षा तक गोंव में हुई | बाद में डैकेती पड़ने के कारण इनका सारा परिवार मेरठ में आ गया वही पर इनकी शिक्षा पूरी हुई |प्रारम्भ से ही श्री रस्तोगी जी पढने लिखने में काफी होशियार ओर होनहार छात्र रहे और काव्य रचना करते रहे |आप डबल पोस्ट ग्रेजुएट (अर्थशास्त्र व कामर्स) में है तथा सी ए आई आई बी भी है जो बैंकिंग क्षेत्र में सबसे उच्चतम डिग्री है | हिंदी में विशेष रूचि रखते है ओर पिछले तीस वर्षो से लिख रहे है | ये व्यंगात्मक शैली में देश की परीस्थितियो पर कभी भी लिखने से नहीं चूकते | ये लन्दन भी रहे और वहाँ पर भी बैंको से सम्बंधित लेख लिखते रहे थे| आप भारतीय स्टेट बैंक से मुख्य प्रबन्धक पद से रिटायर हुए है | बैंक में भी हाउस मैगजीन के सम्पादक रहे और बैंक की बुक ऑफ़ इंस्ट्रक्शन का हिंदी में अनुवाद किया जो एक कठिन कार्य था| संपर्क : 9971006425

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