पीके : हिन्दू आस्था पर आघात


सुरेश हिन्दुस्थानी
कहा जाता है कि हिन्दी फिल्मों में केवल हिन्दू देवी देवताओं का सरेआम अपमान किया जाता है, इसके विपरीत किसी भी फिल्म निर्माता में इस बात की हिम्मत दिखाई नहीं देती कि वह इस प्रकार का फिल्मांकन मुस्लिम और ईसाई समाज के लिए करे। फिल्म पीके में एक बार फिर हिन्दू देवी देवताओं को निशाने पर लिया है, जिसमें भगवान शंकर को गलत ढंग से प्रस्तुत किया है। इतना ही नहीं भागवान शिव के लिए और हिन्दू समाज के लिए गलत टिप्पणियां भी की गईं हैं। देश के बहुसंख्यक हिन्दू समाज की भावनाओं पर कुठाराघात करना एक नियति बन गया है। लोकतंत्र कहता है कि छोटे समाज का आदर तो करो, लेकिन इसके लिए देश के मूल समाज का तिरस्कार होता हो, ऐसा काम बिलकुल भी नहीं करना चाहिए। विश्व के सारे देशों को देखा जाए तो वहां इसी प्रकार का भाव प्रथम होता है। वहां मूल समाज के आराध्यों के प्रति किसी भी प्रकार की गलत टिप्पणी अक्षम्य अपराध की श्रेणी में आतीं हैं। इसके लिए कठोर सजा का प्रावधान भी है। लेकिन हमारे देश में ठीक इसका उल्टा हो रहा है। देश के मूल हिन्दू समाज की भावनाएं कुचली जा रहीं हैं। उत्तरप्रदेश और बिहार की सरकारों ने तो पीके फिल्म को कर मुक्त करके भारत के मूल समाज के विरोध में ही काम किया है। जो अक्षम्य अपराध है।
एक बार फिर आमिर खान की फिल्म पीके में हिन्दू देवी-देवताओं को गलत ढंग से प्रस्तुत करने का विरोध करते हुए शंकराचार्य स्वरूपानंंद सरस्वती ने कहा है कि देशभर में इस फिल्म का विरोध हो रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि हिन्दू संगठनों द्वारा इस फिल्म का विरोध तब तक होता रहेगा, जब तक इस पर रोक नहीं लगती। इसी प्रकार योग गुरु स्वामी रामदेव ने कहा कि हिन्दुओं की आस्था से सरोकार रखने वालों को कोई भी, कैसा भी दिखा देते हैं। इसका विरोध होना चाहिए। पूज्य शंकराचार्य और योग गुरु स्वामी रामदेव हिन्दुओं के धार्मिक प्रतिनिधि हैं। यह सवाल आमिर खान और अन्य फिल्म निर्माताओं से पूछा जा सकता है कि हिन्दुओं के आस्था प्रतीकों के साथ कोई भी खिलवाड़ करता है, लेकिन कभी पैगम्बर या ईसा मसीह के बारे में ऐसा हुआ है? केवल हिन्दुओं के देवी-देवताओं के बारे में अनर्गल बातें कहने और बताने की कोशिश होती है। कभी-कभी तो ऐसा लगता है कि बुराई और पाखंड केवल हिन्दुओं में है, ईसाई और इस्लाम में ऐसा कुछ भी नहीं है। जबकि सच्चाई यह है कि हिन्दू धर्म की अवधारणा वैज्ञानिक है, इस्लाम का जेहादी चेहरा क्रूर और मानव के खून से लथपथ है। इस बारे में न कोई कहता है और न कोई बताने की हिम्मत करता है। आमिर खान मुस्लिम है, उन्होंने क्या कभी ऐसी फिल्म बनाई जिसमें जेहादी बर्बरता को दिखाया गया हो, वे ऐसा नहीं कर सकतेे, क्योंकि यदि ऐसा दुस्साहस हुआ तो बर्बरता पर्दे पर भी दिखाई दे सकती है। विडंबना यह है कि हिन्दू बंटा हुआ है, इसके साथ ही उसकी उदारता और सहिष्णुता का परिणाम है कि उसकी मूर्तियां तोड़ी गई, उसके आराध्य श्रीराम के मंदिर का मामला कानून में उलझा हुआ है। जिसे वह गौमाता के रूप में पूजता और मानता है। उस बारे में अभी तक के केंद्रीय कानून नहीं बन सका।
फिल्म पीके के विरोध में जनमानस द्वारा किए जा रहे विरोध को हमारी सरकारें भी गंभीरता से नहीं ले रहीं, इसका ताजा उदाहरण उत्तरप्रदेश की सरकार द्वारा उठाए गए कदम से मिल जाता है। उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री ने केवल इस बात पर फिल्म को कर मुक्त कर दिया, क्योंकि यह फिल्म हिन्दुओं के विरोध पर आधारित है। मुसलमानों के हितैषी बनने का दावा करने वाली प्रदेश सरकार की यह नीति तुष्टीकरण नहीं तो और क्या है? हम जानते हैं कि समाजवादी पार्टी का रवैया हमेशा तुष्टीकरण वाला ही रहा है। कहा जा रहा है कि उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री ने यह फिल्म नेट पर देखी है, जबकि जानकारी यह है कि अभी तक यह फिल्म नेट पर आई ही नहीं है। इससे यह साफ प्रमाणित होता है कि अखिलेश यादव ने फिल्म को देखा भी नहीं है, केवल कट्टरपंथी मुसलमानों के कहने मात्र पर फिल्म को कर मुक्त कर दिया है। इस प्रकार सरकार चलाना सीधे सीधे लोकतंत्र का अपमान ही कहा जाएगा, जिसमें बहुसंख्यक वर्ग की भावनाओं को पूरी तरह से नजरअंदाज किया गया है। उत्तरप्रदेश की समाजवादी सरकार पूरी तरह से लोकतंत्र का गला घोंटने पर उतारू होती दिखाई देती है। इतना ही नहीं इसके एक दिन बाद ही बिहार सरकार ने भी पीके फिल्म को कर मुक्त करके अपने हिन्दू विरोधी होने का परिचय दिया है।

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