मैदानों में सना कीचड़

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-संजय द्विवेदी

खेल और खेल उत्सव दोनों अब इतने पवित्र नहीं रहे कि उनसे बहुत नैतिक अपेक्षाएं पाली जाएं। हाकी के खिलाड़ियों के यौन उत्पीड़न को लेकर जो खबरें सामने आई हैं उसमें नया कुछ भी नहीं हैं। ये चीजें तभी सामने आती हैं जब इसमें कोई एक पक्ष विरोध में उतरता है या कोई किसी के पीछे पड़ जाए। यह दरअसल एक नैतिक सवाल भी है कि हम अपनी महिला खिलाड़ियों को इन वहशियों के हाथों में जाने से कैसे बचा सकते हैं, जबकि वे प्रमुख निर्णायक पदों पर हों। वह भी तब जबकि समर्पण पर पुरस्कार और स्वाभिमान दिखाने पर तिरस्कार मिलना तय हो। निर्णायक पदों पर बैठे पुरूष ही इन लड़कियों के भाग्य विधाता होते हैं। सवाल जब कोच जैसे पद का हो तो उसकी महिमा और बढ़ जाती है। एक मानवीय कमजोरी के नाते किसी का विचलित हो जाना स्वाभाविक है किंतु इसे एक चलन बना लेना और नैतिकता की सीमाओं को लांधकर महिलाओं के शोषण का कुचक्र रचना तो उचित नहीं कहा जा सकता। किंतु यह हो रहा है और हम इसे देखते रहने के लिए विवश हैं। सवाल यह भी है कि जो लड़की इन घटनाओं का विरोध करते हुए आगे आती है उसके साथ हमारा व्यवहार क्या होता है। क्या वह आगे के जीवन में सहज होकर इन मैदानों में खेल सकती है? अधिकारी वर्ग उसके प्रति एक शत्रुतापूर्ण दृष्टिकोण नहीं अपना लेता होगा ? और उसे अंततः मैदान से बाहर धकेलने की कोशिश क्या नहीं की जाती होगी ? क्योंकि उसने पुरूष सत्ता को चुनौती दी होती है।

अपने कोच और खेल अधिकारियों के खिलाफ जाना किसी भी खिलाड़ी के साधारण नहीं होता। वह तभी संभव होता है जब पानी सर से उपर जा चुका हो। आज हाकी पर जिस तरह के घिनौने आरोप हैं उससे मैदान तो गंदा हुआ ही है, आने वाली पीढ़ी को भी लोग मैदानों में भेजने में संकोच करेंगें। महिला हाकी वैसे ही इस देश में एक उपेक्षित खेल है। ऐसी घटनाओं के बाद वहां कौन सी रौनक लौट पाएगी, कहा नहीं जा सकता। अगर एक महिला खिलाड़ी अपने मुख्य कोच पर सेक्स उत्पीड़न के आरोप लगाती है तो शक की पूरी वजह है। कोच अपने को निर्दोष भले बता रहे हों किंतु जब महिला हाकी की एक पूर्व कप्तान हेलेन मेरी यह कहती हैं कि चार साल पहले उन्हें भी इस कोच के चलते ही हाकी छोड़नी पड़ी थी तो कहने को क्या रह जाता है। अब जबकि महिला आयोग भी इस मामले में दिलचस्पी ले रहा है तो उम्मीद की जानी चाहिए कि कुछ सही निष्कर्ष और समाधान भी सामने आएंगें।

इसके साथ ही एक वृहत्तर प्रश्न यह भी उठता है कि हम अपने खेलों को सेक्स के साथ जोड़कर उसके उत्सवधर्म को एक बेहदूगी क्यों बना रहे हैं। इस पर भी सोचना जरूरी है। हमने देखा कि खेलों के उत्सवों में आज लड़कियां, वेश्याएं, शराब और अश्लील पार्टियां एक जरूरी हिस्सा हो गए हैं। इससे कौन सा खेल धर्म पुष्ट हो रहा है सोचना मुश्किल है। औरत की देह इस समय खेल प्रबंधकों और इलेक्ट्रानिक मीडिया का सबसे लोकप्रिय विमर्श है। खेल उत्सव, सेक्स और मीडिया के समन्वय से जो अर्थशास्त्र बनता है उसने सारे मूल्यों को ध्वस्त कर दिया है। फिल्मों, इंटरनेट, मोबाइल, टीवी चेनलों से आगे अब वह सभी संचार माध्यमों पर पसरा हुआ है। एक रिपोर्ट के मुताबिक मोबाइल पर अश्लीलता का कारोबार भी पांच सालों में 5अरब डॉलर तक जा पहुंचेगा। यह पूरा हल्लाबोल 24 घंटे के चैनलों के कोलाहल और अन्य संचार माध्यमों से दैनिक होकर जिंदगी में एक खास जगह बना चुका है। शायद इसीलिए इंटरनेट के माध्यम से चलने वाला ग्लोबल सेक्स बाजार करीब 60 अरब डॉलर तक जा पहुंचा है। मोबाइल के नए प्रयोगों ने इस कारोबार को शक्ति दी है। इस पूरे वातावरण को इलेक्ट्रानिक टीवी चेनलों ने आंधी में बदल दिया है। इंटरनेट ने सही रूप में अपने व्यापक लाभों के बावजूद सबसे ज्यादा फायदा सेक्स कारोबार को पहुँचाया। पूंजी की ताकतें सेक्सुएलिटी को पारदर्शी बनाने में जुटी है। मीडिया इसमें उनका सहयोगी बना है, अश्लीलता और सेक्स के कारोबार को मीडिया किस तरह ग्लोबल बना रहा है इसका उदाहरण विश्व कप फुटबाल बना। मीडिया रिपोर्ट से ही हमें पता चला कि वेश्यालय इसके लिए तैयार हुए और दुनिया भर से वेश्याएं वहाँ पहुंचीं।कुछ विज्ञापन विश्व कप के इस पूरे उत्साह को इस तरह व्यक्त करते है ‘मैच के लिए नहीं, मौज के लिए आइए’। दुनिया भर की यौनकर्मियों ने दक्षिण अफ्रीका के फुटबाल मैचों में एक अलग ही रंग भरा। खेलों में उत्साह भरने के लिए उसके प्रबंधक और मीडिया मिलकर जैसा वातावरण रच रहे हैं उसमें खेलों को गंदगी से मुक्त कराना कठिन है।

हमने देखा कि आईपीएल के खेलों में किस तरह चीयर लीर्डस का इस्तेमाल हुआ और रंगीन पार्टियों ने अलग का तरह शमां बांधे रखा। बाजार इसी तरह से हमारे हर खेल उत्सव को अपनी जद में ले रहा है और हम इसे देखते रहने के लिए विवश हैं। यही कारण है कि आईपीएल खेलों से ज्यादा उत्साह रात को होने वाली नशीली पार्टियों में दिखता था। इससे क्रिकेट को क्या मिला किंतु व्यापारी मालामाल हो गए और सेक्स के कारोबार को उछाल मिला। एक उपेक्षित खेल हाकी के एक अधिकारी की रातें अगर इतनी रंगीन हैं तो क्रिकेट जैसे खेल के अधिकारियों और आईपीएल के अधिकारियों की शामों का अंदाजा लगाया जा सकता है। एक माह तक चले आईपीएल खेलों के लिए ढाई सौ चीयर लीडर्स की मौजूदगी यूं ही नहीं थी। इसके साथ ही हजार से ज्यादा यौनकर्मी विभिन्न शहरों से खास मेहमानों के स्वागत के लिए मौजूद रहती थीं। यही हाल और नजारे जल्दी ही दिल्ली में होने वाले राष्ट्रमंडल खेलों में दिखने वाले हैं। दिल्ली में अक्टूबर में होने जा रहे इन खेलों के लिए भी देह की मंडी सजने जा रही है। दुनिया भर से वेश्याएं यहां पहुंचेगीं और कई एस्कार्ट कंपनियां करोंड़ों का कारोबार करेंगीं। यूक्रेन,उजबेकिस्तान, अजरबेजान, चेचन्या, किर्गीस्तान, फिलीपींस जैसे देशों से तमाम यौनकर्मियों के आने की खबरें हैं। ऐसे हालात में हमारे पास इसे रोकने के कोई इंतजाम नहीं है। खेल प्रबंधकों, मीडिया प्रबंधकों और हमारी सरकारों की साझा युति से ये काम चलते आए हैं और चलते रहेंगें। मैदान से लेकर मैदान के बाहर खेलों का पूरा तंत्र ही उसे कलुषित करने की तैयारी है। जिसमें औरतें सबसे आसान शिकार हैं चाहे वे खिलाड़ी के रूप में या चीयर लीर्डस के रूप में या धन कमाने के लिए आई यौनकर्मी के रूप में। भारत जैसे देश में जहां ऐसे कामों को सामाजिक तौर पर स्वीकृति नहीं है वहां इसमें रोमांच और बढ़ जाता है। किंतु चिंता की बात यही है कि हमारे खेल प्रबंधकों को यह सोचना होगा कि अगर ऐसे ही हालात रहे तो क्या हम मैदानों में अपने परिवार के बच्चों को खेलते हुए देखना चाहेंगें। इसलिए भारतीय महिला हाकी टीम के ही बहाने जो बातचीत शुरू हुई है उसे निष्कर्ष तक पहुंचाना और दोषियों को दंडित करना जरूरी है। वरना फिल्मों के कास्टिंग काउच की तरह हमारे खेलों के मैदान भी ऐसे ही कीचड़ से सने हुए दिखेंगें।

3 COMMENTS

  1. द्विवेदी जी बिल्कुल सहि कह रहे है. मैदनो मे कीचड का अम्बार लगा है. यह आरोप नया नही है. यह कुत्सित कार्य नया नहि है. पिछ्ले कुछ सालो मे इस तरह कि घटनाए बहुत हो रहि है. अगर किसी महिल खिलाडी ने आरोप लगाया है और अन्य खिलाडीयो ने साथ दिया हे तो सचाई तो होगी. जब पानी सर के उपर हो जाता हे तभि कोइ इस तरह के कदम उथता है.
    कोच का कुछ नहि होगा, टोप लेवल पर शतरज की चाले चली जाती है.

  2. Preparations for sex bazaar during October 2010 Delhi Commonwealth Games in the background of sexuality during IPL cricket matches and football world cup in South Africa.
    Delhi Govt, Delhi Police and managers of Commonwealth Games seem to have no blue print of action to meet the forthcoming business of sexuality during the Games season. What we have heard of is only arrangements being made for easy availability of condoms.
    Apart from above arrangements for condoms, who has the jurisdiction and responsibility to handle the above sex bazaar? Are the Authorities to facilitate or stall the said business?

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