कितना अच्छा होता कि
हवा अपनी ही दुनिया में बहती
न वह आँधी का रुप लेती
न ही कोई घर बेघर हो पाता ।
कितना अच्छा होता कि
नदी अपने में शांत बहती
न बाढ़ का रुप धरती
न किसी को अनाथ होना होता ।
कितना अच्छा होता कि
धरती अपने में मस्त रहती
न वह कभी भी हिलती
न भयानक भूकम्प हमें झेलना पड़ता ।
कितना अच्छा होता कि
लोग अपनी ही दुनिया में रहते
न किसी को टंगड़ी मारते
न किसी के फटे में टांग अड़ाते ।
कितना अच्छा होता कि
अच्छा हमेशा अच्छा होता
यही बात तो नहीं होती है
और अघटित हमें झेलना पड़ता है ।
आपका कदम काबिल-अ-तारीफ ह .अगर आप संस्कृत जैसे सब्जेक्ट को भी जगह देते तो अच्छा होता