कल रात दिल के दरवाजे पर दस्तक हुई;
सपनो की आंखो से देखा तो,
तुम थी …..!!!
मुझसे मेरी नज्में मांग रही थी,
उन नज्मों को, जिन्हें संभाल रखा था,
मैंने तुम्हारे लिये ;
एक उम्र भर के लिये …!
आज कही खो गई थी,
वक्त के धूल भरे रास्तों में ;
शायद उन्ही रास्तों में ;
जिन पर चल कर तुम यहाँ आई हो …….!!
लेकिन ;
क्या किसी ने तुम्हे बताया नहीं ;
कि,
परायों के घर भीगी आंखों से नहीं जाते……..!!!
एक से बढाकर एक कवितायें. बहुत ही मार्मिक. हार्दिक साधुवाद विजय भाई. लिखते रहे..आप बहुत ही दिला छूनेवाली कवितायें लिखते हैं.
आपने बहुत ही दिल छूने वाली कवितायें लिखीं हैं।पढ़ कर बहुत ही आछ लगा ।ऐसे ही लिखते रहिए।