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कविता : पूर्णिमा - प्रवक्‍ता.कॉम - Pravakta.Com
हीरक नीलाम्बर आवेष्टित, विहॅस रही राका बाला। शुभ सुहाग सिन्दूरी टीका, सोहत है मंगल वाला॥1॥ अलंकृता कल कला प्रेय संग, पहुँची मानो मधुशाला। छिन्न भिन्न छकि छकि क्रीड़ा में, विखरत मोती की माला॥2॥ -डॉ0 महेन्द्र प्रताप पाण्डेय ''नन्द''