दुआ है कि ये जीवन सहल हो जाए सबके लिए

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-जावेद उस्मानी-
poem

ख्वाबों के तिजारती आज पीरे शाह तख्त है
देखेंगे तमाशा अभी तो हम सदाए बेवक्त है
अंदाजे बागवां वही, रिवाजे गुलसितां वही
गर्दिशे ज़मी भी वही हैं रंगे आसमां भी वही
गहरी धुंध को भी, सियासत में चांदनी कहें
जिंदगी सिसके तो उसे भी खुश रागिनी कहें
सड़क पानी हवा सब जबसे उनकी जागीर हुई
गिरना और डूब के मरना अपनी तकदीर हुई
रज़ा-ए–कारेख़ैर, गिरांबार से मिटती देखी
तूले तवील की ज़ंजीरों में इला उलझी देखी
फिर भी चाह है हर दिल में जलें आशा के दिए
दुआ है कि ये जीवन सहल हो जाए सबके लिए

रज़ा-ए-कारेख़ैर= परोपकार की इच्छा, दूसरों की भलाई की इच्छा
तूले तवील = अति दीघ्र, बहुत लंबा
इला = भलाई, अच्छाई

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