घनश्याम काका को,
बहुत शिकायत हैं, अपने बेटे बहू से,
शिकायतों की पूरी लिस्ट है जिसे,
वो हर आये गये से शेयर करते हैं,
जैसे ‘’मेरे पास बैठने का किसी के पास वख़्त नहीं है,
मेरी दवाइयाँ कोई समय पर लाकर नहीं देता,
ठंडा खाना खाना पड़ता है वगैरह वगैरह
बच्चो की पढ़ाई की वजह से टी.वी. भी ज़्यादा नहीं देख सकते
क्या करें मजबूर बुढ़ापा है.. ’’ मुह लटका कर बैठे रहते हैं।
काका, घर मे लैडलाइन या मोबाइल तो आपके पास होगा,
अपने पास वाली कैमिस्ट की दुकान को फोन कर दीजिये
वो दवाइयाँ घर पंहुचा देगा।
टी.वी. कम आवाज़ मे अपने कमरे मे बंद करके देखिये।
बहू सुबह खाना बनाकर चली गई ,
अपना खाना ख़ुद गर्मकर लीजिये माइक्रोवेव मे,
या गैस पर।
घुटनो मे दर्द है फिर भी थोड़ा टहलिये ,
अख़बार और किताबें पढ़िये,
डायरी लिखिये,
उसमे जीवन के दर्द उलट डालिये,
फिर मुस्कुराते रहिये,
अकेलापन कम होगा।
अब चलिये आपको पीछे 10-20 साल पहले ले चलती हूँ।
याद कीजिये
कितनी बार आपने अपने बेटे को जोरू का ग़ुलाम कहा था,
याद कीजिये ,
कितनी बार सर पर पल्लू ठीक से न लेने के लियें,
आपकी पत्नी ने बहू को डाँटा था।
याद कीजिये,
कितनी बार विभिन्न अवसरों पर,
उसके मायके वालों को कोसा गया था।
बहू से तो खून का रिश्ता नहीं था,
काश! आपने इस रिश्ते को पाला पोसा होता।
खैर जो बीत गया सो बीत गया।
ये ‘बाग़बान’ की तरह की कविता और कहानी लिखने वाले,
ख़ुद तारीफ़ पा लेंगे , तालियाँ भी पड़ेंगी,
फेसबुक पर लाइक और कंमैंट भी आयेंगे,
पर आपको कोई फायदा नहीं होगा,
आप पढकर और दुखी हो जायेंगें।
जीवन की गोधूलि वेला मे ख़ुश रहना है तो,
ख़ुद पर तरस खाना छोड़िये, ख़ुश रहिये….