कंचनचंघा
प्रथम आरुषि सूर्य की,
कंचनचंघा पर पड़ी तो,
चाँदी के पर्वत को,
सोने का कर गई।
सूर्योदय का दृश्य देख,
टाइगर हिल पर खड़े हम,
ठंड व तेज़ हवा के प्रकोप को,
सहज ही सह गये।
विश्व की तृतीय ऊँची चोटी,
पवित्र चोटी पर उदित सूर्य
सुनहरी उजाला देखकर,
मंत्रमुग्ध हम रह गये।
एक ओर उदित भानु था,
एक ओर हिमाद्रि कंचनचंघा
सू्र्य की किरणे
जब हिम पर पड़ी
शीत उषा स्वर्ण आरुषि,
मे भीग कर हम
प्रकृति के विस्तार मे
खो से गये।
बतासिया घूम
सिलीगुड़ी से दार्जलिंग
धीमी धीमी, खिलौनो सी
रेल की यात्रा,अति मनोहारी है।
रेल की पटरी,बस्तियों से गुज़रती है।
सड़क यातायात के साथ साथ चलती है।
सड़क के कभी दाँये रेल,
सड़क के कभी बाँये रेल,
ट्रामो के युग की याद आती है।
बतासिया घूम भी अनोखा स्थान है
जहाँ रेल घूम घूम कर ऊपर चढती है।
ऊपरी सतह पर गोलाकार उद्यान है,
चारें ओर रेल की पटरी का विस्तार है।
जब नहीं चलती हैं रेल,
लग जाता बाज़ार है वहाँ,
उद्यान के बीच मे सैनिक स्मार्क है।
बतासिया धूम से दूर हिम चोटियाँ,
पूरे दार्जिलिंग शहर,
और विस्तृत चाय के बग़ीचे देखकर
मन विभोर हो जाता है
सोमोंगो झील
सिक्किम की शान ,सोमोंगो झील,
उज्जवल जल, नील ,श्वेत ,स्वच्छ।
चारों ओर से घिरी हिमगिरि से,
बारह हज़ार पाँच सौ फ़ीट उच्च।
ना नौका विहार ना जल क्रीड़ाएं,
शाँत, सौम्य, निर्मल व स्वच्छ,
प्रकृति का उत्कर्ष है या है स्वर्ग।
तट पर खड़े हो निहारो सराहो,
या करो याक पर बैठ परिक्रमा,
चमकती धूप चाँदी सी चमक,
झील का जल प्राँजल व स्वच्छ।
बिनु भटनागर की कविताओं ने प्रभावित किया है .
उन्हें बधाई और शुभ कामनाएँ .