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कविता - उम्र का हिसाब - प्रवक्‍ता.कॉम - Pravakta.Com
कितने बदल चुके हैं सिकुड़े हुए अंतरिक्ष में मौन तिलक लगाकर मेहराब से टूटता कोई पत्थर कि युगों पुराना अदृश्य हाथ पसीने से सरोबार होकर इसी पत्थर में मेहराब की सर्जना की थी । पहली बार मुझे लगा अंतरिक्ष में दिशाहीन आवेश चेहरे पर आंखें गड़ाये टूकुर-टूकुर देख रहा…