कविता - चिँता या चेतना-मोतीलाल - प्रवक्ता.कॉम - Pravakta.Com
मोतीलाल अपना कोई भी कदम नए रुपोँ के सामने कर्म और विचार के अंतराल मेँ अनुभव से उपजी हुई कोई मौलिक विवेचना नहीँ बन पाता है और विचार करने की फुर्सत मेँ ज्यादा बुनियादी ईलाज उपभोक्ताओँ की सक्रियता के बीच पुरानी चिँता बनकर रह जाती है शून्य जैसी हालात…