कविता / स्रष्टा की भूल

0
179

भगवन, क्यों बनाया तुमने मुझको आदमी ?

क्या किया मैंने बनकर आदमी ?

क्या क्या सपने देखे थे भगवन ने ?

मेरे शैशव काल में.

सृष्टि का नियामत था मैं.

स्रष्टा का गर्व था मैं.

कितने प्रसन्न थे तुम]

जिस दिन बनाया था तुमने मुझे.

सोचा था तुमने]

तुम्हारा ही रूप बनूंगा मैं]

प्रशस्‍त करुंगा पथ निर्माण का]

बोझ हल्का भगवान का.

भार उठाउंगा सृष्टि का.

कल्याण करुंगा का संसार का.

बहेगी धरती पर करुणा की धारा.

बहेगा वायु प्यार का.

चाहते थे तुम प्यार का सागर बनूं मैं.

ज्योति का पुंज बनूं मैं.

साथ दूं तम्हारा सृष्टि के विकास में.

स्वर्गिक बनाऊं धरा को,

अपने नैसर्गिक उद्वेगों से.

पर क्या कर सका यह सब ?

पूछता हूं आज अपने आप से.

क्यों नहीं उतार पाया स्वर्ग को धरा पर ?

न बना पाया मही को स्वर्ग ?

कारण बना मैं क्यों विनाश का ?

रोने लगा देवत्व, हँसने लगा शैतान,

आचरण क्यों हो गया मेरा ऐसा ?

आज लगता है मुझे,

भूल थी भगवान की जो मुझे बनाया.

नहीं इतना उथल पुथल मचता सृष्टि में, अगर नही आता मैं अस्तित्व में.

-आर. सिंह

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here