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कविता - संकट - प्रवक्‍ता.कॉम - Pravakta.Com
मोतीलाल आसान तो बिल्कुल नहीं शब्दों का धुँआ बनना अकेला मन का किला आँखों को नम कर जाता है टूट चुकी होती है जब सुबह हमारे सपने एक-एककर नहीं लाते बाल उम्र में बिताया गया वक्त जो फुदक रही होती है डालियों पर उसे लिखना कितना कठिन हो जाता…