कविता ; अंधेरी गलियों में………… – नवल किशोर शर्मा

प्रस्तुत कविता अंधेरी गलियों में………… उस जन-समूह को समर्पित है जो कि विभिन्न फसादों एवं मानवीय विद्रूपताआं के कारण अपना अमन-चैन खो चुके हैं।

 

अंधेरी गलियों में……………….

अंधेरी गलियों में भटकना फिर रहा मेरा ये मन,

ढूंढता हूं एक पल कि शांति,चैन और अमन।।

 

सोचता हूं जब कभी बन्द करके अपने नयन,

किस धुएं में खो गर्इ,मन को मोह लिया करती थी जो पवन ।।

 

कल तक जहां हुआ करता था एक चमन,

आज देखो उस जगह हो रहा मनुष्य का हनन,

अंधेरी गलियों में

 

पढे़ थे कभी जिस जगह (महात्मा) बुद्ध और गांधी के चरण।

आज देखो उस जगह हो रहा अबलाओं का चीर हरण।

 

देख कर इन कुरीतियों को लजिजत होते है नयन,

पर वे क्यों लजिजत हों जो घर-घर बांट रहे कफन।।

 

कब रूकेगी थे खून की होली, कब रूकेगा ये दमन,

कौन लौटाएग ? हमें हमारा वे महकता चमन ।।

 

 

 

 

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