मिलन सिन्हा
सोचते नहीं
वादा जो करते हैं
वह करते नहीं
अच्छे लोगों को
साथ रखते नहीं
गलत करने वालों को
रोकते नहीं
बड़ी आबादी को
खाना, कपडा तक नहीं
गांववालों को
शौचालय भी नहीं
बच्चों को जरूरी
शिक्षा व पोषण तक नहीं
गरीब, शोषित के प्रति
वाकई कोई संवेदना नहीं
अपने गुरूर में ही जीते हैं
अपने जमीर की भी सुनते नहीं
वक्त दस्तक देता है
फिर भी चेतते नहीं
सच कहते हैं गुणीजन
ऐसे नेताओं को
आम जनता भूलती नहीं
ऐसे शासकों को
तारीखें माफ़ करती नहीं !
खुबसूरत कविता..