कविता : तारीखें माफ़ करती नहीं

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मिलन सिन्हा

povertyसोचनीय विषयों  पर

सोचते नहीं

वादा जो करते हैं

वह करते नहीं

अच्छे  लोगों को

साथ रखते नहीं

गलत करने वालों को

रोकते नहीं

बड़ी आबादी को

खाना, कपडा तक नहीं

गांववालों को

शौचालय भी नहीं

बच्चों को जरूरी

शिक्षा व पोषण तक नहीं

गरीब, शोषित के प्रति

वाकई कोई संवेदना नहीं

अपने  गुरूर में ही जीते हैं

अपने जमीर की भी सुनते नहीं

वक्त दस्तक देता है

फिर भी चेतते नहीं

सच कहते हैं गुणीजन

ऐसे नेताओं को

आम जनता भूलती नहीं

ऐसे शासकों  को

तारीखें  माफ़ करती नहीं !

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