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कविता - अस्तित्व - प्रवक्‍ता.कॉम - Pravakta.Com
घुप्प अंधेरे में टिमटिमाता है एक दीया मेरे कमरे में । जानता हूँ अच्छी तरह नहीं मिटा सकती अंधेरे को उसकी रोशनी । उधर चाँद झांकता है और कतरा-दर-कतरा घुसता है उसकी रोशनी मेरे अंधेरे कमरे में । फिरभी नहीं मिटता अंधेरा और मैं टटोलता हूँ दो…