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कविता/ पुष्प और इंसान - प्रवक्‍ता.कॉम - Pravakta.Com
पुष्प शोभा है उपवन का. कली का जीवन है प्रस्फुटित होकर, पुष्प बनने में. खिल कर अपनी बहार लुटाने में. तुम बनने कहाँ देते हो पुष्प को, बहार उपवन का. खिलने कहाँ देते हो कली को? तुम तो तोड़ डालते हो पुष्प को शोभा बनने से पहले. मसल डालते हो…