pravakta.com
कविता/ मानवता का धर्म नया है - प्रवक्‍ता.कॉम - Pravakta.Com
धूप वही है, रुप वही है, सूरज का स्वरूप वही है; केवल उसका प्रकाश नया है, किरणों का एहसास नया है. दिन वही है, रात वही है, इस दुनिया की, बात वही है; केवल अपना आभाष नया है , जीवन में कोई खास नया है. रीत वही है, मीत वही…