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कविता:एक स्त्री जो हूँ-विजय कुमार - प्रवक्‍ता.कॉम - Pravakta.Com
स्त्री – एक अपरिचिता मैं हर रात ; तुम्हारे कमरे में आने से पहले सिहरती हूँ कि तुम्हारा वही डरावना प्रश्न ; मुझे अपनी सम्पूर्ण दुष्टता से निहारेंगा और पूछेंगा मेरे शरीर से , “ आज नया क्या है ? ” कई युगों से पुरुष के लिए स्त्री…