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कविता : मेरा होना और न होना – विजय कुमार - प्रवक्‍ता.कॉम - Pravakta.Com
मेरा होना और न होना .... उन्मादित एकांत के विराट क्षण ; जब बिना रुके दस्तक देते है .. आत्मा के निर्मोही द्वार पर ... तो भीतर बैठा हुआ वह परमपूज्य परमेश्वर अपने खोलता है नेत्र !!! तब धरा के विषाद और वैराग्य से ही जन्मता…