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कविता - असल में - प्रवक्‍ता.कॉम - Pravakta.Com
मोतीलाल हमने समय की क्रूरता देखी देखी आदमी की गति समय के गति से भागते हुए । अगली तारीख में रोटियां गर्म नहीं हो पाएगी और जश्न मनाने की शैलियों में धूप सिरे से गायब हो जाएंगें बचे रह जाएंगें सिद्धान्त-शून्यता और अंत का बेअंत समय विश्व बैँक में…