कविता/अबोध बच्‍चा

hpchild-1_1200472507_mअबोध बच्चा

कल मिला मुझे

अबोध बच्चा

एक

आंखों में आंसू

होंठों पर सिसकियों के साथ

न जाने

उसका अपना कौन, क्या कहां गुम था ?

सुनाई पड़ रही थी

उसके रोने की हिचकियां

चुप कराने की

बहुत की कोशिश

बच्चा नहीं माना

नहीं थम रहे थे आंसू

आंखों में टंगा था

किसी के लिए

मानो न कभी खत्म होने वाला इंतजार।

शायद

नहीं जानता था

रोने से नहीं होता कुछ भी हासिल।

कई आंखें होती ही हैं

प्रतीच्छा जिनकी अंतिम नियति

कई बार

ऍसा होता है

हमारे मन का बच्चा भी रोता है

इस बात से बेखबर

कौन- कहां- क्या गुम है ?

वाकई

कई बार

कोई अपना नहीं होता

छोटा सा सपना भी सच नहीं होता।

थोड़ी सिसकियां, थोड़े गम

जीवन हमने बांटे कब ?

यकीन

नहीं आता

सुनो

ध्यान दे

किस कदर

दिल रोता है।

-०-

कमलेश पांडेय

1 COMMENT

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here