कविता: जिन्दगी – लक्ष्मी नारायण लहरे

 आपना पन कहें या दोस्ताना

अजीब चाहत है

इस जीवन में

सिर्फ संघर्ष भरी राहें है

अपनों के बीच भी हम अकेले है

एक -दुसरे के प्रेम से बंध कर

स्वार्थ भरी जीवन जी रहे है

जिन्दगी ….. की जंग में

भाई -भाई को नहीं समझता

माँ -बाप को नही पहचानते

स्वार्थ ,भरी जीवन जी रहे है

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