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कविता : मेरी माँ ... - प्रवक्‍ता.कॉम - Pravakta.Com
आज फिर अल्लसुबह उसी तुलसी के विरवा के पास केले के झुरमुटों के नीचे पीताम्बर ओढ़े वो औरत नित्य की भांति दियना जला रही थी ! मै मिचकती आँखों से उसे देखने में रत था , वो साधना वो योग वो ध्यान वो तपस्या, उस देवी के दृढ संकल्प के…