भाई को भाई के खिलाफ खड़ा कर दिया
और सलवा-जुडूम हो गया।
कल रात जरा सी बात पर शहर में हुजूम हो गया॥
सरकारी मुनसिब किसी इंकलाबी गोली से हलाल हो गया।
सरकार का मुंह लाल हो गया।
तुरंत सारा इंतजाम हो गया।
मुआवजे, घोषणाएं सरकारी सम्मान हो गया।
वहॉ ग्रीन हंट, बुलडोजर और बख्तरबन्द से
जाने कितनों का काम तमाम हो गया।
उनका झूठ भी सच है, और हमारा सच भी झूठ हो गया।
इस व्यवस्था में यही खास व्यवस्था है
जो भी जुल्म जयाजती के खिलाफ बोला वो नक्सल हो गया।
जो सिर्फ झूठ-झूठ और सिर्फ झूठ था वो असल हो गया।
व्यवस्थाओं का षड्यंत्र देखिए
मेहनतकश मजदूर-किसान का खेत
तहसील तक आते-आते नकल हो गया
देश का इंकलाबी जवान इनकी नजर में नक्सल हो गया
विनायक सेन देशद्रोही हो गया।
जो हक-अधिकारों के संघर्ष को नक्सलवाद कहते हैं।
वे ही इस गुलाम मुल्क को आजाद कहते है ।
– राकेश राणा
माओ के गुंडे है हम गद्दारी हमारा काम है,
देश भक्ति का नाम भी हमारे लिए हराम है |
कभी नक्सली कभी कम्युनिस्ट कभी साम्यवादी हम
khoon का दरिया बहाते है बोलो है किसमे इतना दम??
हम पैसे एक कमाएंगे नहीं चाहे लुटना पड़े किसी को
अपनी नकारी को नाम दिया क्रांति को |
धर्म -संविधान -इश्वर-विवाह जैसी बुजुर्वा बाते
क्यों करते हो कामरेड इन्हें ,खावो पियो करो ash हर राते||
गरीबी मुर्खता घटिया शिक्षा देशद्रोह है हमारी जमीं
रुष चीन बाप हमारे भगवान मार्क्स माओ लेलिन||
पैसा ही सब कुछ ,भौतिकता के हम पुजारी
चर्वार्क के नव अवतार -mir-jafar-jaychando se khiladi ||
सच्चे केवल हम ही बाकि सब बेईमान
जो नहीं साथ हमारे वो पूंजीवाद की खान ||
सबसे बड़ा दुशमन हमारा हिन्दू बलवान
केवल केवल इसके आगे नहीं चलती हमारी शान नहीं चलती हमारी शान ||
हमने ही तो सुभाष को तोजो का कुत्ता कहा था
हम वो ही है जिन्होंर ४२ में गद्दारी की थी ||
हाँ बैठे पलक बिछाए चीन की सेना के
खुनी दरिन्दे है सिफाही हमारे विनायक अरुंधती ज्जैसे रक्षा हमरे ||
हम ऊपर हर न्याय व्यवस्था से
कानून सम्विधान हर धर्म से ||
क़त्ल करना है मौलिक अधिकार
लुटना पीटना फिरोती गद्दारी है रोज का काम है रोज का काम…………..
आज ही एक कविता पढी थी साहित्य शिल्पी पर। बस्तर के कोई कवि हैं योगेन्द्र। इस कविता को उनकी ये पंक्तियाँ आईना दिखा सकती हैं –
आप कैसे देख पायेंगे
यह भी कि, हथौडा दरका हुआ है,
हंसिया, होरी की गर्दंन पर रखा है,
बालियाँ, धनिया से गले मिल
सिसकियाँ भर रही है,
गोबर एस.पी.ओ या
संघम सदस्य बन कर ही
कुछ दिन और जिन्दा रह सकता है, तन से।
होरी सरपंच बनने को तैयार था, मन से।
कुछ मददगार भी थे, धन से।
पर लाल अंधेरे नें लीले लिये होरी के सपने
अब होरी गोदान नहीं,
ग्राम दान चाहता है,
लाल अंधेरे वालों से।
लाल गाजरघास
फैलती जा रही है देश में इन दिनों,
हरे जंगलों में हर ग्राम में, हरी वर्दियों में।
माफी नहीं चाहूंगा, यदि मेरा सच,
आपके वैचारिक धरातल को हिलाता है।
यदि मेरा बचे रहना, कुछ कहना,
संविधान या माओवाद की परिधि में नहीं आता है।
(साहित्याशिल्पी.कॉम से)