-शालिनी मैथु
नई कोपल हूँ मैं, सब कुछ है नया-नया,
नई उमंग, नई तरंग लेकर हूँ आई.
माँ के स्पर्श से हुई पुलकित,
निर्जीव बोतल में स्नेह देखकर हुई दुखित.
चाहिय मुझे पूर्ण, उचित देखभाल,
तभी तो लूंगी अपने को सँभाल.
हूँ तो मैं नन्ही-मुन्ही ही सी,
पर देख रेख से,
बन जाउंगी वीरांगना लक्ष्मीबाई सी.
हे माँ! करती हूँ, तुम्हारा अभिनन्दन,
तुम्हारे आँचल में होती हूँ, आनंदित.
षोडशी बनकर कड़ी हूँ आज यहाँ,
हे माँ! देखरेख से तुम्हारे ही.
करती हूँ! शत -शत नमन…
main bhi apni kavita yhaan bhejnaa chaahtaa hun . parantu kaise kripyaa btaayen
बुलंदी
मुश्किलों को साथ लेकर जो नहीं चल पायेगा
इस जमाने में बुलंदी वो कहाँ से पायेगा ?
हो बिमारी या पलायन या हो बिपदा की घडी
कष्ट पर हो कष्ट या फिर आपदा हो आ पड़ी
आग पर चलना पड़े या पर्वतों की श्रृंखला
सामने हो शेर या फिर मौत हो आकर खड़ी
वक्त आने पर नहीं जो आत्मबल दिखलाएगा
इस जमाने में बुलंदी वो कहाँ से पायेगा ||
क्यों हमारी राह में बस फूल हीं खिलते रहें ?
क्यों नहीं आगे बढ़ें हम शूल का स्वागत करें ?
क्यों कभी कमजोर बन कर मांगते हैं हम दुआ?
क्यों नहीं खुद हीं डगर पतवार भी बनते चलें ?
राह हो दुर्गम मगर जो चलने से घबराएगा
इस जमाने में बुलंदी वो कहाँ से पायेगा ||
सफल होना चाहते तो गरल भी स्वीकार कर
उन्नति जो चाहते तो कष्ट अंगीकार कर
जिंदगी जीना जो चाहो हर कदम मरते चलो
मुश्किलों के सामने तुम शीश को नीचा न कर
नाज जो निज कर्म पर हो राह बनता जाएगा
हर जमाने में बुलंदी पर वही रह पायेगा ||
बहुत ही उम्दा रचना है
Thanks!
शब्दों में या टाईपिन्ग में गलती हो सकती है किंतु आपकी कविता के भाव मर्मस्पर्शी है.प्रयास करते रहिये.
Thanks! for encouragement…. I have some doubt regarding hindi typing…could you please help me….
Regards
shalini
षोडशी वनकर कड़ी हूँ ? spasht karen .
sirf veerangnaa jhaansi की raani laxmi bai hi kyo ? kya marna maarnaa hi sochtee ho .jeejaabai kyo nahi की ek swabhimaani maataa ke roop men .chhatrpati ajey shiva ji की maataa ke roop men yugo yugo tk vandit ho .aapki kavita ka kathy aspasht hai .badhai .
Because…jhansi ki rani from MAdyapradesh …same like me..
शालिनी मैथु जी
पंक्ती
” निर्जीव बोतल में स्नेह देखकर हुई दुखित ”
का आशय समझ नहीं आया.