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कविता ; अखबारों का छपना देखा - श्यामल सुमन - प्रवक्‍ता.कॉम - Pravakta.Com
श्यामल सुमन मुस्कानों में बात कहो चाहे दिन या रात कहो चाल चलो शतरंजी ऐसी शह दे कर के मात कहो जो कहते हैं राम नहीं उनको समझो काम नहीं याद कहाँ भूखे लोगों को उनका कोई नाम नहीं अखबारों का छपना देखा लगा भयानक सपना देखा कितना…