कविता – राह

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मोतीलाल

वह सड़क

जिस पर मैँ चल रहा हूँ

तुम्हारे भीतर जाकर

खत्म हो जाती है

 

वह सड़क

जिस पर तुम चल रही हो

किसी चौराहे पर जाकर नहीँ

मेरे मन के भीतर खत्म होती है

 

सही है कि

सड़क की कोई मंजिल नहीँ होती

एक दिशा तो होती ही है

उसी दिशा की अंगूलि थामकर

उतर रहा हूँ मैँ आजतक

तुम्हारे मन के चौराहे पर

 

मंजिल की फिक्र

इन सिमटते समय मेँ

क्या दे पायेगा सुकून

और क्या दे जाएगा सबक

इस नंगे चौराहे पर

वे अमिट शब्द

जिसे ढूँढने मेँ सारी जिँदगी

बासी रोटी बन गयी है

 

कोई धूप का कतरा भी

नहीँ उतरता है तुम्हारे भीतर

कि देख सकूं

धंसती सड़कोँ मेँ से ही कहीँ

मेरे मन की पक्की सड़क ।

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मोतीलाल
जन्म - 08.12.1962 शिक्षा - बीए. राँची विश्वविद्यालय । संप्रति - भारतीय रेल सेवा में कार्यरत । प्रकाशन - देश के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं लगभग 200 कविताएँ प्रकाशित यथा - गगनांचल, भाषा, साक्ष्य, मधुमति, अक्षरपर्व, तेवर, संदर्श, संवेद, अभिनव कदम, अलाव, आशय, पाठ, प्रसंग, बया, देशज, अक्षरा, साक्षात्कार, प्रेरणा, लोकमत, राजस्थान पत्रिका, हिन्दुस्तान, प्रभातखबर, नवज्योति, जनसत्ता, भास्कर आदि । मराठी में कुछ कविताएँ अनुदित । इप्टा से जुड़ाव । संपर्क - विद्युत लोको शेड, बंडामुंडा राउरकेला - 770032 ओडिशा

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