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कविता / तिरंगा - प्रवक्‍ता.कॉम - Pravakta.Com
माँ के अंग तिरंगा चढ़ता हम ले चले भेंट मुस्काते घर-घर से अनुराग उमड़ता, दानव छल के जाल बिछाते लो छब्बीस जनवरी आती! माँ की ममता खड़ी बुलाती!! दाती कड़ी परीक्षा लेती तीनों ऋण से मुक्ति देती कुंकुम-रोली का क्या करना? खप्पर गर्म लहू से भरना! खोपे नहीं, खोपड़े अर्पित!…