बर्फीले तूफान के आगे
अघोरजंगलके बीच
समुद्री लहरों के साथ ,
पर्वतकी चोटियों पर
अडिग खड़ा हूँ
मा की ममता से दूर
पिता के छांव से सुदूर
पत्नी के सानिंध्य के बिना
पुत्र मोह से अलग
अडिग खड़ा हूँ
दुश्मन की तिरछी निगाहों के सामने
देश विद्रोहियों के बीच
दुनिया समाज से अलग
बिरान सरहदें
अडिग खड़ा हूँ
रेगिस्तान के झंजावत में
कडकती बिजली के नीचे
मुशलाधार मेघ वर्षा
जेठ की दोपहरी में
अडिग खड़ा हूँ
बिरानियों के अवसाद में
बम बर्षा की थरथराहत
गोलियों की बोछारें
आदेशों के प्रहारमें
अडिग खड़ा हूँ
न जाती न धर्म मेरा
न समाज न सम्प्रदाय
बस अडिग
सैनिक जाती धर्म संप्रदाय मेरा
मा भारती की रक्षा में
अडिग खड़ाहूँ
धन्यवाद संपादक महोदय आपने मेरी कविता को सराहा और अपने पोर्टल पर जगह दी