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कविता - पीली रोशनी - प्रवक्‍ता.कॉम - Pravakta.Com
मोतीलाल अच्छा हुआ कि इस पीली रोशनी में चांद नहा उठा लहरें तट को छोड़ चुकी और बालों की तरह करुणा की जमीन लहरा उठी । सौदों के उस लड़ाई में उठा हुआ अंगुठा बार-बार मिमियता रहा कागज के आगे पूरी दुनिया बवंडर के जाल में अपनी पहचान खोली…