आलोचना की राजनैतिक विवशता

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                       अन्तरिक्ष और रक्षा के क्षेत्र में अब भारत स्वयं के लिए ही नहीं, बल्कि इससे जुड़े उत्पादों को दुनिया में निर्यात करने के लिए भी सक्षम होने जा रहा है, जिसका लक्ष्य २०२५ तक पांच अरब डॉलर का रखा है. स्वभाविक है कि ‘मेक-इन-इंडिया’ का असर अब व्यापक रूप से दिखने लगा है. २४०००  से अधिक ऐसी ऍमएसऍमई हैं जो रक्षा उत्पादों के लिए आवश्यक कल-पूर्जों  की आपूर्ति करती हैं. आगामी ५ वर्षों में ५००० और उत्पादों का स्वदेशीकारण प्रस्तावित है, जिसक सीधा लाभ इन ऍमएसऍमई को ही मिलने वाला है. अम्बानी-अडानी को लेकर आलोचक भले ही शोर मचाये, पर उपलब्ध आंकड़े तो ये ही दर्शाते हैं कि वर्तमान सरकार में सबके  लिए गुंजाईश है.

                         १ अरब डॉलर से अधिक मूल्य वाली यूनीकॉर्न स्टार्ट-अप कम्पनीयां की संख्या अब देश में १०० से ज्यादा हो चुकी हैं. ‘ईज़ आफ़ डूइंग बिसिनेस’ के प्रमुख आयाम दूरसंचार और बुनियादी ढांचे के मजबूत होने से आज इस स्थिती को पाने में सफल हुयें हैं. प्रमुख रूप से उच्च प्रोद्धोगिकी, दवा और उपभोक्ता वस्तुओं के क्षेत्र मे सक्रिय इन कम्पनीयों के प्रदर्शन से स्पष्ट है कि कारोबारी जगत के लिए  आज का माहौल कितना अनुकूल .

             इसी  प्रकार खबर ये  भी है कि पराली से निर्मित बायो-सीएनजी के अब देश में ५००० प्लांट लगाये जायेंगे. इसकी  घोषणा दो स्टार्ट-अप कम्पनीयों द्वारा निर्मित्त देश का पहला बायो-सीएनजी ट्रेक्टर लांच करते हुए नितिन गडकरी कर चुके हैं . अब पराली समस्या न होकर किसानों की आमदनी का साधन तो होगा ही , साथ ही बायो-सीएनजी से ट्रेक्टर चलाने की लागत डीज़ल की तुलना में आधी रह जायेगी सो अलग.ऐसे  कदम इस धारणा को मजबूत करने के लिए काफी है कि वर्तमान सरकार दरअसल किसानों की, आम जनता की भी उतनी ही मित्र[क्रोनी] है; जितनी की उन अम्बानी-अडानी की, जिन्हें लेकर आलोचक  खूब शोर मचा रहें  हैं.

                        वैसे उन्हें याद करने की जरूरत है कि कारोबारी-जगत में और भी बड़े व्यापारिक  घराने हैं जो कि देश की उन्नति में अपने योगदान दे रहे हैं. इलेक्ट्रिक-व्हीकल के लिए आवश्यक लिथियम-आयन बेट्री के ८१% पार्ट्स स्थानीय स्तर पर उपलब्ध हैं. सरकार नें अब बेट्री निर्माण में वैश्विक स्तर को पाने की लिए कमर कस ली है. साथ ही देश के सूदूर क्षेत्रों में भी बेट्री की आपूर्ति का आभाव महसूस न हो, उसके लिए हीरो-इलेक्ट्रिक  नें पटना सहित पूरे पूर्वी व उत्तर-पूर्वी हिस्सों मे लाजिस्टिक सेंटर के निर्माण में गति देने की योजना बनायी है. और, आगे बढ़कर बात ये है कि बेट्री- चार्जिंग सेंटर स्थापित करने में हिंदुजा ग्रुप की गल्फ आयल लुब्रिकेंट्स नें निवेश करने की तैयारी पूर्ण कर ली है. कारोबारी जगत में उत्साहजनक ख़बरों की कोई कमी नहीं, राजनैतिक-प्रतिबद्धता   के कारण उस तरफ ध्यान न दे पाना मजबूरी हो सकती. ध्यान रहे कि दुनिया की टॉप १० आईटी सर्विस फर्म्स  में भारत की चार कंपनीयां शामिल है, जिनका नाम है टीसीएस , इनफ़ोसिस , एचसीएल और विप्रो. मेक-इन-इंडिया के तहत ८३ तेजस विमानों के निर्माण को लेकर एचएएल[हिंदुस्तान एरोनौटिक्स  लिमिटेड] के साथ हुआ रक्षा-सौदा अब तक का रक्षा-क्षेत्र में हुआ सबसे बड़ा मेक-इन इंडिया डील  है , जिसकी राशी ४८००० करोड़ है. 

                      राहुल गाँधी का कारोबारीयों को लेकर इतना ऊँट-पटांग बोलना ठीक नहीं, जबकि उनके दामाद रॉबर्ट वाड्रा भी एक कारोबारी हैं, और किस किस्म के हैं ये याद दिलाने की जरूरत नहीं. अडानी समूह नें हाल ही में ७०५ करोड़ रूपए में महाराष्ट्र स्थित दिघी बंदरगाह का अधिग्रहण पूर्ण किया है, और यही समूह राजस्थान में ९७०० मेघावाट का सोलर हाईब्रिड और विंड एनर्जी पार्क निर्माण करने जा रहा है. जबकि एक राज्य की सत्ता में कांग्रेस की हिस्सेदारी है; दूसरें में पूर्ण बहुमत की सरकार. तो क्या ये माना जाये की अपनी ही पार्टी में राहुल गाँधी की बात को  गंभीरता से लेने वाला कोई नहीं.

                       वैसे राहुल गाँधी भी बाकी कांग्रेसीयों से अलग नहीं. आज वो कृषि सुधार कानून के विरोध में दिन-रात एक किये हुए हैं, वहीँ उनके पार्टी के शशि थरूर बहुत पहले इस के समर्थन में अपने अंदाज़ में अपनी आवाज़ बुलंद कर चुके हैं, ये कहते हुए-‘हर साल हम संग्रह और वितरण में इतना गेहूं बर्बाद कर देते हैं, जितना कि ऑस्ट्रेलिया अपने यहाँ उत्पादन  करता है. सही मायने में जरूरत इस बात की है कि प्राईवेट-सेक्टर [निजी-कम्पनीयां] अनाज संग्रह के व्यवसाय में उतरे’ 

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