थॉमस का राजनीतिक पूर्वाग्रह

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प्रवीण दुबे
संसद की लोकलेखा समिति के अध्यक्ष व कांग्रेस के वरिष्ठ नेता केवी थॉमस ने #नोटबंदी मामले में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को समिति के सामने सवाल-जवाब करने के लिए बुलाने की बात कहकर सबको चौंका दिया है। श्री थॉमस का यह बयान उसी समय सामने आया है जब कांग्रेस के ही एक अन्य वरिष्ठ नेता व देश के पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने यह कहा है कि पांच राज्यों के चुनावों में #नोटबंदी का राजनैतिक लाभ उठाने के लिए कांग्रेस रणनीति बना रही है। ऐसा लगता है थॉमस और मनमोहन सिंह दोनों के बयान प्रधानमंत्री को घेरने के प्रयास का साझा हिस्सा है। हालांकि समिति को मामले में शामिल किसी को भी भले ही वह प्रधानमंत्री क्यों न हों बुलाने का अधिकार है लेकिन यह तभी संभव है जब इसके लिए समिति के सभी सदस्यों में सर्व सम्मति बने। अभी लोक लेखा समिति का जो बयान सामने आया है वह नितांत समिति के अध्यक्ष और वरिष्ठ कांग्रेसी नेता केवी थॉमस का व्यक्तिगत बयान मात्र है। उन्होंने यह कतई स्पष्ट नहीं किया है कि इस बयान के पीछे समिति के अन्य सदस्य एक राय हैं या नहीं। ऐसा लगता है कि केवी थामस लोक लेखा समिति के माध्यम से प्रधानमंत्री मोदी की छवि खराब करने की मानसिकता से इस प्रकार की बयानबाजी कर रहे हैं। थॉमस भली प्रकार जानते हैं कि पांच राज्यों जिसमें कि उत्तरप्रदेश जैसा महत्वपूर्ण राज्य भी शामिल है, में चुनाव तारीखों की घोषणा हो चुकी है। वह यह बात भी भली प्रकार जानते हैं कि इन चुनावों में नोटबंदी एक बड़ा चुनावी मुद्दा बनकर उभरने वाला है। यदि इस समय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर इस विषय को लेकर सवाल उठाए गए तो इसका लाभ कांग्रेस को व अन्य विपक्षी दलों को मिल सकता है। अपनी इस कूटनीतिक रणनीति को अंजाम देने से पूर्व केवी थॉमस शायद यह भूल गए कि प्रधानमंत्री को पीएसी के सामने बुलाने संबंधी जो सार्वजनिक बयानबाजी वे कर रहे हैं उसमें उन्होंने थोड़ी जल्दबाजी कर दी। ऐसा इसलिए क्योंकि थॉमस की अध्यक्षता वाली संसद की लोकलेखा समिति ने वित्त मंत्रालय और रिजर्व बैंक के गवर्नर को नोटबंदी को लेकर विस्तृत प्रश्नावली पहले ही भेजी हुई है। इसका जवाब उन्हें 20 जनवरी से पहले समिति को भेजना है। जैसा कि पूर्व से निर्धारित है कि #पीएसी ने #नोटबंदी को लेकर 20 जनवरी को बैठक बुलाई है इस बैठक में रिजर्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल, वित्त सचिव अशोक लवासा और आर्थिक मामलों के सचिव शक्तिकांत दास उपस्थित रहेंगे। समझ से परे है कि थॉमस ने यह अंदाजा पहले से कैसे लगा लिया कि जो विस्तृत प्रश्नावली पीएसी ने रिजर्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल को भेजी है उसके जवाब संतोषजनक नहीं होंगे। थॉमस एक सांसद हैं इससे भी बड़ी बात यह है कि वह संसद की महत्वपूर्ण मानी जाने वाली लोकलेखा समिति के अध्यक्ष भी हैं। ऐसी स्थिति में एक महत्वपूर्ण विषय पर धैर्य न रखते हुए बयानबाजी करना और इसमें सीधे देश के प्रधानमंत्री को लपेटना कई सारे सवाल खड़े करता है। थॉमस ने अपने बयान में यह भी कहा है कि आठ नवम्बर को नोटबंदी की घोषणा के बाद उन्होंने प्रधानमंत्री से मुलाकात की थी तब उन्होंने कहा था कि 50 दिन बाद दिसंबर अंत में स्थिति सामान्य हो जाएगी। लेकिन ऐसा नहीं दिखता है। उन्होंने यहां तक कह डाला है कि प्रधानमंत्री अपने अहम् के लिए देश को भ्रमित कर रहे हैं। वह अपने गलत निर्णय को सही ठहराने की कोशिश कर रहे हैं। एक नजर में ही थॉमस का यह बयान राजनीतिक ज्यादा नजर आ रहा है। इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता कि आठ नवम्बर के तत्काल बाद देश में जो हालात पैदा हुए थे वह 30 दिसंबर के बाद सामान्य हो चले हैं। एटीएम और बैंक के बाहर लगी लंबी-लंबी कतारें गायब हैं, देशवासी आसानी से लेनदेन कर रहे हैं। वित्तमंत्री अरुण जेटली की मानें तो नोटबंदी के कारण सरकार मालामाल हुई है और राजस्व वसूली में दोहरे अंक की वृद्धि हुई है। इसी के सहारे सरकार ने कई जनकल्यणकारी घोषणाएं भी की हैं। थॉमस को नहीं भूलना चाहिए कि वह एक महत्वपूर्ण समिति के अध्यक्ष हैं और उन पर एक बड़ी जिम्मेदारी है, ऐसी स्थिति में धैर्य रखें, समिति द्वारा उठाए सवालों के जवाब आने तक इंतजार करें और राजनीतिक लाभ उठाने के लिए बयानबाजी न करें।

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प्रवीण दुबे
विगत 22 वर्षाे से पत्रकारिता में सर्किय हैं। आपके राष्ट्रीय-अंतराष्ट्रीय विषयों पर 500 से अधिक आलेखों का प्रकाशन हो चुका है। राष्ट्रवादी सोच और विचार से प्रेरित श्री प्रवीण दुबे की पत्रकारिता का शुभांरम दैनिक स्वदेश ग्वालियर से 1994 में हुआ। वर्तमान में आप स्वदेश ग्वालियर के कार्यकारी संपादक है, आपके द्वारा अमृत-अटल, श्रीकांत जोशी पर आधारित संग्रह - एक ध्येय निष्ठ जीवन, ग्वालियर की बलिदान गाथा, उत्तिष्ठ जाग्रत सहित एक दर्जन के लगभग पत्र- पत्रिकाओं का संपादन किया है।

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