भारत में राजनीति और चुनाव


राकेश कुमार आर्य
 भारत में राजनीति करनी बहुत ही सस्ती है। इसके कई कारण हैं। पहला कारण है कि राजनीति में निर्लज्ज और बेईमान लोग आते हैं। जिनके सामने कोई भद्रपुरुष राजनीति में टिक नहीं पाता । इससे राजनीति का मैदान स्थायी रूप से पेशेवर निर्लज्ज और बेईमान राजनीतिज्ञों के हाथों में आकर रह गया है। अभी कुछ दिन पहले मुझसे एक सज्जन कह रहे थे कि अमुक लोकसभा सीट पर अमुक पार्टी का प्रत्याशी एक जालसाजी के मामले में जेल काट कर आया है यह सुनकर मेरे मुंह से अनायास निकल गया कि यदि वह ऐसा है तो निश्चय ही उसने ठीक पैसा चना है क्योंकि राजनीति ऐसे ही लोगों के लिए होकर रह गई है लोगों को गाली खाने और गाली देने से कोई कष्ट नहीं होता यह जितने आराम से गाली देते हैं कुछ नहीं आराम से गाली खा भी लेते हैं जबकि एक शालीन और गुण संपन्न व्यक्ति गाली देने से पहले 10 बार सोचेगा कि गाली तुम जाने की धुन और यदि काली उसे कहीं खानी पड़ जाए तो उसे बचाने में भी बहुत समय लग जाएगा दूसरा कारण है कि राजनीति के पेशेवर लोगों की मानसिकता है बन गई है कि आप राजनीति में टिके रहे गाली बको चाहे जैसे बकवास करो पर बकते करते रहो अर्थात अपनी उपस्थिति दर्ज कराए रखो जब लोग सत्तासीन व्यक्ति से थक जाएंगे तो 1 दिन तुम्हारी और भी देखेंगे ही यह लोग इसी प्रतीक्षा में रहते हैं कि जनता वर्तमान सत्ताधारी दल और लोगों से थके तो उनका दाग लगे एक प्रकार से राजनीतिज्ञ बगुला भक्ति करते रहते हैं और एक टांग पर खड़े हुए दिखाई देते हैं परंतु उनका नाम और उनकी दृष्टि अपने शिकार पर रहती है अर्थात देश की कुर्सी पर नजरें टिकाए रखते हैं हम देखते हैं कि ऐसा होता भी है कि जमीन का दाग लग जाता है उत्तर प्रदेश में बसपा की मायावती और सपा की सरकार है इसी प्रतीक्षा में आती जाती रही हैं इसके अतिरिक्त देश के अन्य प्रांतों में भी कई स्थानों पर ऐसा होता रहा है इन राजस्थान का उदाहरण लें राजस्थान में सत्तारूढ़ पार्टी और विपक्षी पार्टी दोनों को पता होता है कि अबकी बार विधानसभा चुनाव में किसकी सरकार बनेगी और इसके पश्चात सत्तारूढ़ पार्टी बड़ी सरलता से विपक्षी पार्टी के लिए चुनाव में विजई होने पर सत्ता छोड़ देती है और उसे यह भी पूर्ण निश्चय होता है कि अगली बार हमारी सरकार बनेगी कहने का अभिप्राय है कि वहां भी राजनीति घड़ी सस्ती है 5 वर्ष इंतजार करो और 5 वर्ष पश्चात आपको निश्चय ही राज्य सिंहासन मिल जाएगा।तीसरा कारण है कि आप अपने विपक्षी पर या उसकी विचारधारा पर या उसके आदर्श पुरुषों पर या उसकी राजनीतिक मान्यताओं पर तीखे तीखे व्यंग्य करें ।उन्हें गाली दें और अपने कपड़े फाड़ लें । कुल मिलाकर किसी भी प्रकार से आपको मीडिया कवरेज मिल जाए तो आप राजनीति में स्थापित हो जाएंगे। इस रास्ते को अपनाकर बसपा सुप्रीमो मायावती जैसे कई राजनीतिज्ञ  राजनीति में स्थापित हो गए। जिन्होंने गांधी जी को गाली दी या किसी अन्य प्रकार से मीडिया कवरेज प्राप्त की और अपने प्रति पक्षी से आगे निकल कर राजनीति में अपने लिए स्थान बना लिया । इसी रास्ते का अनुकरण ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल में किया है । यद्यपि मोदी के प्रधानमंत्री बनने के पश्चात इस प्रकार की राजनीति को अपना कर आगे बढ़ने पर कुछ प्रतिबंध लगा है । क्योंकि कन्हैया जैसे युवाओं ने जिस प्रकार  ‘ भारत तेरे टुकड़े होंगे’  कहकर राजनीति में प्रवेश का रास्ता अपनाया था वह इस समय कुछ अवरुद्ध सा हो गया है।  लोगों ने इस प्रकार के लोगों को ‘ टुकड़े-टुकड़े गैंग ‘ के अपमानजनक संबोधन से पुकारना आरंभ कर दिया है।  जिससे उन्हें अपेक्षित सहयोग व सम्मान देश में नहीं मिल पाया है। यद्यपि कांग्रेस और साम्यवादी या सेकुलरिस्टों ने ‘ टुकड़े-टुकड़े गैंग ‘ के लोगों को अपना सहयोग व समर्थन देकर उन्हें नेता बनाने में कोई कमी नहीं छोड़ी है। परंतु फिर भी देश के लोगों ने उन्हें मुंह नहीं लगाया है । निश्चय ही यह एक अच्छी बात है ।अब आते हैं चौथे कारण पर। चौथा कारण है देश में वंशवादी लोकतंत्र के आधार पर राजनीति करने का । इसके माध्यम से भी देश में बहुत से लोग हैं जो इस प्रकार की राजनीति करने में विश्वास करते हैं और इसका लाभ उठाते हैं। इसी वंशवाद की राजनीति के चलते कांग्रेस का गांधी परिवार लाभ उठाता रहा है। उत्तर प्रदेश में  ‘ सपा का कुनबा’  इसी राजनीति का लाभ ले रहा है।  अब मायावती भी इसी रास्ते पर चलते हुए अपने भतीजे को राजनीति में स्थापित कर रही हैं। बिहार में लालू प्रसाद यादव का परिवार और रामविलास पासवान का परिवार है जो इसी राजनीति का अनुकरण कर रहा है। इसके अतिरिक्त अन्य प्रांतों में भी ऐसी वंशवाद की राजनीति के अनेकों उदाहरण हैं। जिनको मोटी धनराशि खर्च करके एक परिवार अपने उत्तराधिकारी के रूप में स्थापित कर देता है । राजनीति में पिता के साथ पुत्र का आना वंशवाद नहीं है।  वंशवाद वह है जब किसी पार्टी का अध्यक्ष किसी एक परिवार से ही होना निश्चित कर दिया जाता है , या किसी एक नेता के पदच्युत होने , त्यागपत्र देने या मर जाने के कारण उसी का पुत्र या परिजन अनिवार्यत: उसका उत्तराधिकारी बनाया जाता है।  इस प्रकार की राजनीति को करते-करते ऊंचाइयों तक पहुंचना बड़ा सरल है । हमारे देश में कितने ही लोगों ने इस प्रकार की राजनीति का आश्रय लेकर ऊंचाइयों को छुआ भी है।विदेशों में जब कोई प्रधानमंत्रीअपने पद से हटता है या उसको उसके सांसद हटाते हैं तो सामान्यतया कहा जाता है कि अमुक देश के प्रमुख प्रधानमंत्री या शासनाध्यक्ष का पतन हो गया है। इसका अभिप्राय है कि अब वह दोबारा सत्ता में नहीं आएगा। जैसा कि हमने ब्रिटेन में वहां की प्रधानमंत्री रही मार्गरेट थैचर के बारे में देखा था , जिन्हें अपने समय में आयरन लेडी कहा जाता था , परंतु जब उनका पतन हुआ तो फिर वह दोबारा सत्ता में नहीं आ सकी । जबकि भारत में  परिवारवाद की राजनीति करने वाले  अधिकांश राजनीतिक दल अपने लिए मुख्यमंत्री की कुर्सी को लंबे समय तक सुरक्षित रखते हैं । जिन्हें जनता बार-बार हटाती भी है , लेकिन फिर वही  मुख्यमंत्री बन कर लौट आते हैं । इसका कारण यह भी है कि जनता के पास विकल्प नहीं होता। विकल्पविहीनता की अवस्था में जब उसकी पार्टी को  फिर से लोग लौट कर वोट देते हैं  तो उसका लाभ  हर एक प्रांत में किसी ने किसी  विशिष्ट परिवार को मिल जाता है । यही स्थिति केंद्र की भी रही है । जहां लोगों ने श्रीमती इंदिरा गांधी को एक बार सत्ता से हटा भी दिया , परन्तु कांग्रेस पर उनकी पकड़ मजबूत होने के कारण  जब 1980 में कांग्रेस दोबारा सत्ता में लौटी तो श्रीमती गांधी ही दोबारा देश की प्रधानमंत्री बनीं।इस प्रकार की अव्यवस्था के चलते हमारे देश में किसी व्यक्ति या दल के बार बार सत्ता में आते रहने का रास्ता खुला रहता है ।इसका दुष्प्रभाव यह होता है कि राजनीतिक दल अपनी नीतियों की और अपनी विचारधारा की कभी समीक्षा नहीं करते कि जनता ने आखिर तुम्हें सत्ता से बाहर क्यों किया ? तुम्हारी ऐसी कौन सी नीतियां रहीं जिनके कारण तुम्हें सत्ता गंवानी पड़ी ? –  या तुम्हारी विचारधारा में ऐसा कौन सा दोष है जिसके चलते लोग तुम्हें सत्ता से बाहर करते हैं ? यदि कांग्रेस इस समय विपक्ष में है तो वह केवल इसलिए विपक्ष में रहकर प्रतीक्षा कर रही है कि जनता का जैसे ही मोदी से मोहभंग होगा तो देश की जनता उन्हें ही सरकार बनाने के लिए  जनादेश देगी और उस स्थिति में वह वह तुरंत अपनी गद्दी संभाल लेंगे । उन्हें नहीं लगता कि हमारी नीतियों में या हमारी विचारधारा में कहीं दोष था और उस दोष के कारण हमको यह दंड मिला है। वह केवल एक बात सोच कर चलते हैं कि देश की जनता मूर्ख है और यह कुछ समय बाद पिछली बातों को भूल जाती है। वह उसी अवश्य स्थिति की प्रतीक्षा में है कि जब देश की जनता उनके किए गए पापों को भूलेगी और मोदी को सत्ता से बाहर कर उन्हें फिर सत्ता सौंपेगी। कांग्रेस ने अपने वर्तमान चुनावी घोषणा पत्र में इसी बात का संकेत दे भी दिया है कि वह अपनी विचारधारा और नीतियों में कोई परिवर्तन करने वाली नहीं है। धारा 370 को वह जारी रखेगी , 35 ए को वह हटाएगी नहीं । इसके अतिरिक्त राजद्रोह की धारा को समाप्त करेगी और आतंकवादियों को दूध पिलाने का हर संभव प्रयास करेगी । उन्हें हर वह सुविधा उपलब्ध कराएगी जो एक लोकतांत्रिक देश में लोकतंत्र और देश की एकता और अखंडता में विश्वास रखने वाले लोगों को मिलती हैं। ऐसे में कैसे कहा जाए कि कांग्रेस ने अपनी नीतियों में परिवर्तन किया है ?  इतना ही नहीं उसने हिंदू समाज को आतंकवादी घोषित करने और प्रत्येक सांप्रदायिक दंगे के लिए उसे ही जिम्मेदार घोषित करने के लिए जिस बिल का प्रारूप तैयार किया था उसे भी वह लागू कराने की बात कर रही है। इससे कांग्रेस और धर्मनिरपेक्षता में विश्वास रखने वाले अन्य दलों की एक सोच बन गई है कि मुस्लिम और दलित समाज को जोड़ो , इसके अतिरिक्त ईसाई अल्पसंख्यकों को जोड़ो और फिर उसके बाद देश पर शासन करो। एक दलित नेता ने तो स्पष्ट यह भी कह दिया था कि यदि दलित और मुस्लिम एक हो जाए तो हिंदुओं से जूते उठाने का काम लिया जाएगा । इसका  अभिप्राय है कि देश में नीतियों में सुधार करने की दिशा में कोई भी दल नहीं सोच रहा है , सबकी सोच सत्ता प्राप्ति है और केवल एक ही लक्ष्य है कि मोदी को हटाओ और मालपुए खाओ।संप्रदाय, मजहब और जाति की राजनीति करने पर देश में प्रतिबंध है । संविधान की मूल भावना भी यह है कि देश के नेता देश के लोगों को जोड़ेंगे ,तोड़ेंगे नहीं । परंतु यहां के राजनीतिक लोग देश में धर्म ,संप्रदाय और जाति की राजनीति में ही विश्वास रखते हैं। तभी तो दलित और मुस्लिम के गठजोड़ के पश्चात शेष लोगों से जूते उठवाने की बातें की जाती है। जबकि होना यह चाहिए कि देश में सांप्रदायिक और जातीय सद्भाव बनाने का प्रयास राजनीतिक और सामाजिक दोनों स्तरों पर किया जाना चाहिए ।बांटने की राजनीति करने वाले लोगों को राजनीति मेंनहीं रहना चाहिए और न उन्हें आने देना चाहिए। इसके लिए कानून बनना चाहिए । साथ ही देश के चुनाव आयोग को भी इतनी शक्तियां दी जानी चाहिए कि जो राजनीतिज्ञ संप्रदाय और जाति की राजनीति करता हुआ पाया जाएगा उसके चुनाव लड़ने पर आजीवन प्रतिबंध लगा दिया जाएगा । जितनी सरल राजनीति करना हमने भारत में मान लिया है , अब समय आ गया है कि राजनीतिज्ञों को देश में राजनीति करने हेतु कौशल विकास का प्रशिक्षण दिया जाए। यह कितना दुर्भाग्यपूर्ण है कि देश में कोई भी व्यक्ति जब अपना रोजगार ढूंढता है या चलाता है तो उसे कौशल विकास की आवश्यकता पड़ती है । परंतु राजनीति में आने वाले लोगों के लिए कौशल विकास की आवश्यकता नहीं पड़ती। वह जो चाहे सो कहे ,  वह जो चाहे सो ले और जो चाहे सो करें । यह सोच और यह कार्यशैली ही वह कारण है जिसने इस देश का बेड़ा गर्क कर दिया है । अब समय आ गया है कि इस प्रकार की प्रवृत्ति पर प्रतिबंध लगे और देश की राजनीति को सरलीकरण से कठिनता की ओर ले जाया जाए।2019 के चुनावों में देश के लोगों को ऐसे लोगों को या  प्रत्याशियों को पाठ पढ़ा देना चाहिए जो देश में जाति और संप्रदाय की राजनीति करते हुए अपनी राजनीति की दुकान को चमकाने का काम कर रहे हैं ।अब समय आ गया है कि जो लोग देश को प्राथमिकता देते हैं और देश के लिए जीना मरना चाहते हैं उन्हें आगे बढ़ने का अवसर दिया जाए। इसके लिए कोई पार्टी ना देखी जाए ,कोई राजनीतिक विचारधारा ना देखी जाए ,प्रत्येक प्रत्याशी को देखा जाए कि वह इस कसौटी पर कितना खरा उतरता है ?

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राकेश कुमार आर्य
उगता भारत’ साप्ताहिक / दैनिक समाचारपत्र के संपादक; बी.ए. ,एलएल.बी. तक की शिक्षा, पेशे से अधिवक्ता। राकेश आर्य जी कई वर्षों से देश के विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में स्वतंत्र लेखन कर रहे हैं। अब तक चालीस से अधिक पुस्तकों का लेखन कर चुके हैं। वर्तमान में ' 'राष्ट्रीय प्रेस महासंघ ' के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं । उत्कृष्ट लेखन के लिए राजस्थान के राज्यपाल श्री कल्याण सिंह जी सहित कई संस्थाओं द्वारा सम्मानित किए जा चुके हैं । सामाजिक रूप से सक्रिय राकेश जी अखिल भारत हिन्दू महासभा के वरिष्ठ राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और अखिल भारतीय मानवाधिकार निगरानी समिति के राष्ट्रीय सलाहकार भी हैं। ग्रेटर नोएडा , जनपद गौतमबुध नगर दादरी, उ.प्र. के निवासी हैं।

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