राजनीति और नैतिकता

-अमरेन्द्र किशोर- religion & Politics

भारतीय राजनीति और समाज का यह परिवर्तन का दौर है। बदलाव के बयार में कुछ भ्रम है, पशोपेश है और कुछ अंतर्विरोध है। बहुत कुछ कहने और ज्यादा से ज्यादा दिखा सकने की कवायद है। लिहाजा समाज के कई वर्गों में आपसी धींगामुश्ती है, एक पर दूसरे की छींटाकशी है और दूसरे को पटकनी देकर आगे बढ़ जाने की जोर आजमाईश है। समाज में भ्रम है, दुराशा है तो राजनीतिक स्तर पर नूरा कुश्ती है। यह कोई बात नयी नहीं है, ऐसा पहले भी होता आया है। बिन्दुसार-बिंबसार और अशोक के जमाने से लेकर इंदिरा गांधी – राजीव गांधी और राजा मांडा के कालखंड में – एक के कंधे पर चढ़कर अपनी बिसात बिछाने का और दूसरे की बिछाई चादर पर पांव फैलाकर आराम फरमाने का, चूंकि राजनीति में तो सब कुछ जायज माना जाता है। प्रजा के अधिकारों की बात कौन पूछे यहां तो राजा के कर्त्तव्य की व्याख्या करने वाला न कोई इंद्रप्रस्थ में बचा और न ही हस्तिनापुर में। सच जानिये तो अब हस्तिनापुर में विचारों की कमी है और जब विचार कम पड़ जाए तो राज-धर्म की आत्मा खुद-ब-खुद मर जाती है। कहते हैं एक मसीहा के जाने और दूसरे मसीहा के आने के बीच के संधि-काल में कुछ छद्म मसीहा पैदा हो जाते हैं, यह समय ऐसे ही छद्म मसीहों का है।

सत्ता इंसान को भ्रष्ट करती है, यह मानी हुई बात है मगर इसके बावजूद इसी भ्रष्टाचार के खिलाफ देश में अराजक लड़ाई लड़ी जा रही है। यह लड़ाई किसके लिए है, यह तो लड़ने वाले को पता है, जनता को नहीं। अलबत्ता जनता को दुलारा जा रहा है, पुचकारा जा रहा है कि मित्रों यह लड़ाई आपके लिए है। आपके वजूद केलिए है, इस देश की सेहत केलिए है। देश की सेहत की चिंता करने वाले आज खुद को विस्सल ब्लोअर घोषित कर रहे हैं – स्वयंभू विस्सल ब्लोअर। जो चिल्ला-चिल्लाकर अपने दामन को साफ़ बता रहे हैं। देश में हर जगह स्वयंभू विस्सल ब्लोअर घूम-भटक रहे हैं। लिहाजा भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष तेज़ होता दिख रहा है। दावा है कि हम ऐसे विस्सल ब्लोअर हैं जो आम आदमी हैं और सत्ता के गलियारे में पालथी मारे बैठे लोगों को राजनीति करना सिखा देंगे। कचरे की सड़ांध से बजबजाई राजनीति को पाक-साफ़ कर देंगे और देश की उल्टी -पुल्टी राज-व्यवस्था को सुधार देंगे। सवाल यह है कि ये विस्सल ब्लोअर क्या करना चाहते हैं ? देश आज यह भी पूछ रहा है कि इनकी खासियत क्या है ? क्या ये राजनीति के मर्मज्ञ जानकार हैं, जो सबक सिखाने का गुर जानते हैं ? या संत भाव में गांधी और लोकनायक की तर्ज पर सत्ता से दूर रहकर राजनीति की पवित्र आयतें गढ़ेंगे ? क्या ये सचमुच में आम आदमी को अमन-चैन देना चाहते हैं या राजनीतिक आकाओं की नींद हराम करना चाहते हैं या खुद सत्ता पर काबिज होने के जुगाड़ तलाश रहे हैं। ये मसीहा हैं या छद्म मसीहा, इनके सामाजिक हित ज्यादा गहरे हैं या राजनीतिक हित सर्वोपरि है, कह पाना मुश्किल है। ये कैसे विस्सल ब्लोअर हैं ? क्या यह विस्सल ब्लोअर का ठेठ देसी अंदाज है या १८ वीं सदीं के अमेरिका में उपजी विस्सल ब्लोअर नामक संस्था का परिष्कृत रूप है।

विस्सल ब्लोअर इस देश केलिए कोई नयी चीज नहीं है–इसकी परम्परा तो बेहद पुरानी है। चाणक्य की बात हो, या लोकनायक की–भ्रष्ट सत्ता के खिलाफ उनकी आवाज एक विस्सल ब्लोअर की ही आवाज थी। त्रेता युग में उस धोबी को याद कीजिये जिसने राजा रामचंद्र के सामने धर्मसंकट पैदा कर दिया और उन्हें अपने राजधर्म पर पुनर्विचार करना पड़ा। उस धोबी की पत्नी ने जो दलीलें दी थी उसमें उसका स्वार्थ जरूर था कि उसका पति उसे स्वीकार कर ले, चूंकि राजा राम की पत्नी एक साल तक अपहृत होने पर भी अयोध्या की रानी बन सकती है तो उसी आधार पर धोबी पति उसे स्वीकार करे। यह प्रसंग राजा केलिए दुविधा का प्रसंग था, धर्मसंकट का प्रसंग था कि अगर स्त्री वैवाहिक जीवन में सुविधा के अवलंघन कर दूर हो जाए और फिर पति के पास लौट आये तो इससे समाज भ्रष्ट हो जायेगा। इसलिए राज्य धर्म और संस्कार स्थापित रखने केलिए राम ने सीता का त्याग करके, राज्य को अपना परिवार मानते हुए धोबन की जायज ज़िद्द से मुक्ति पायी। गौर करें तो उस विस्सल ब्लोअर धोबी का अपना कोई स्वार्थ नहीं था और न धोबन का। उसे राम के सिंहासन हासिल करने की मंशा नहीं थी, न धोबी को और न धोबन को। दोनों सामाजिक आचरण और नैतिकता के इर्द-गिर्द थे। न धोबी ने और न ही धोबन ने राजा अयोध्या की गद्दी हासिल करने के मंसूबे पाले और न ही अयोध्या की गद्दी के आगे चक्रवर्ती हो जाने के उनके सपने थे। उन्हें तो समाज की तपश्चर्या और रिश्तों की निष्ठा की चिंता थी। राजा राम के दिल में उस विस्सल ब्लोअर धोबी की बातों का सम्मान था, चूंकि धोबी अंतरात्मा से शुद्ध था, पवित्र था। उस विस्सल ब्लोअर ने मर्यादा पुरुषोत्तम राम की आत्मा को झकझोर कर रख दिया–उन्होंने सीता त्याग का पश्चाताप इस प्रकार किया कि वे अयोध्या के महल में नहीं रहे, एक कुटिया से राजकाज किया, बिना पका भोजन खाया तथा खुद को अवैवाहिक जीवनपर्यंत रखकर पीड़ित किया। न राजा राम को और न उस विस्सल ब्लोअर धोबी को महल चाहिए था, न राज-पाट की सुख सुविधाएं। काश ! आज कोई विस्सल ब्लोअर उस धोबी की तरह स्वार्थहीन होता।

6 COMMENTS

  1. बढ़िया लेख है। भाजपा के पक्ष में पूरी निष्ठां के साथ लिखा गया यह लेख अमरेन्द्र किशोर जी आपके बहुत काम आयेगा। राज्य सभा की सीट पक्की यदी ऐसे ही लिखते रहे तब। मगर आप तो ऐसे चाटुकार नहीं थे। भाषा की चासनी में शब्दों को परोसने अंदाज बढ़िया है।

  2. Our Political experts are the synonyms of word ‘Exploitation’. We always need a leader and want to become followers of him or her. At this point of time,Our Country needs a Social and political revolution to create a wonderful tomorrow. We,younsters should take an initiative to make it possible.

  3. सत्ता की चोंच पजाना कभी अनैतिक माना जाता था। लेकिन अब तो चोंच में चोंच लड़ा रहे हैं। यह कलियुगी राजनीति है जहाँ कौवा और बगुला मिलकर कजरी गा रहे हैं और बाज ढोल बजा रहा है। यह विजय पर्व नहीं है बंधू और न ही कोई उत्सव बल्कि यह लोकतंत्र का जनाजा है जिसकी बुनियाद कांग्रेस ने रखी है इस वजह से कयोंकि कांग्रेसी प्रोफेशनल पॉलिटिशियन हैं। भाजपा ने अपनी नैतिकता तो सबीर अली को अपनी गोद में बैठाकर दिखाई है।

  4. इस देश का दुर्भाग्य है कि यहाँ हर बात का राजनीतिकरण हो जाता है। जैसे पवित्रता तो पुराण काल की बात हो गयी। न नदी पवित्र, न वातावरण पवित्र और न हमारी मानसिकता पवित्र। अब दूसरों को जगाने की कीमत है सता की दावेदारी। अरविन्द केजरीवाल हमें जगाने की कीमत चाहते हैं। उन्हें सब कुछ चाहिए लेकिन न न कह के। इस नील में रेंज सियार का राज जब तक खुलेगा तब तक देश का बहुत बुरा हो चुका होगा।

  5. बिलकुल सही लिखा है। सब के सब विस्सल ब्लोअर बन गए हैं। क्या होगा इस देश का ?

  6. राजनीती और नैतिकता दोनों में अब कहाँ सम्बन्ध रहे है राजनीती में साम दंड सब जायज होते है यह तो प्राचीन काल में सम्भव सम्भव था अब नैतिकता को तो राजनेताओं ने खूंटी पर पर टांग दिया है किसी भी राजनीतिज्ञ के नैतिक होने की की बात न हो तो ही अच्छा है विशेषकर भारतीय राजनीती में।

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