राजनीति पर नौटंकीबाज हावी है

-आलोक कुमार- Bad-face-of-Indian-politics

इन दिनों देश की राजनीति पर नौटंकीबाज हावी है, छाये हुए हैं। कुछ लोग कला, उद्योग-व्यवसाय या सेवा के क्षेत्र से राजनीति के क्षेत्र में कूद पड़े हैं। इस तरह के लोग वस्तुतः नौटंकीबाज होते हैं। जिन क्षेत्रों के वे हैं उनमें नौटंकी प्रदर्शन की उतनी गुंजाइश नहीं थी, या है जितनी नौटंकी राजनीति में की जा सकती है।

नौटंकी की “नवरस” का आनंद लीजिए, जो सत्ताकामी दल के स्वयंभू- सुधारकों के प्रलाप और प्रवचनों से धाराप्रवाह प्रवाहित हो रहा है। इनका धाराप्रवाह झूठ, मेहनत से गढ़े गए कुतर्क, तरीके से रचा गया पाखंड, छिछले आरोप, बेबुनियाद आशंकाएं जो इनके स्वयं के भेद खुलने की की बौखलाहट से पैदा हो रहे हैं। हैरत में नहीं डालते, शर्मिदा करते हैं। हम जानते हैं कि ये स्वयंभू सुधारक भी भली-भांति जानते हैं कि वे “ताश के महल” बना रहे हैं। अपनी सादगी और ईमानदारी साबित करने के लिए लिए बेशर्मी भरा पाखंड रच रहे हैं। राष्ट्रीय फलक पर छाने के लिए के लिए एवं अपनी ताजपोशी के पीछे की सच्चाई पर पर्दा डालने के लिए हर वह हथकंडा अपना रहे हैं जिसे सिद्धहस्त पाखंड प्रणेता ही अपना सकते हैं।

नौटंकी के कलाकार को क्या चाहिए दर्शकों की भीड़, भीड़ की तालियां और जय-जयकार के नारे। जब ऐसे राजनीति के नौटंकीबाज आदमी को मंच मिल जाता है, भीड़ मिल जाती है, तालियां मिल जाती हैं तो वह अपने उसी रोल में आकर अपने हाव-भाव प्रदर्शित करने लगता है। नौटंकी की कला में निपुण व्यक्ति नौटंकी के सभी गुणों में पारंगत होता है। सफल नौटंकीकार के गुण होते हैं, रटे रटाये, डॉयलॉग बोलना, सभी अंगों के कथानक के अनुरूप हावभावों का प्रदर्शन करना, अनशन-भूख हड़ताल का स्वांग रचना, जन-सरोकार के सार्वजनिक मंचों पर ढोलक, नगाड़ों, झांझ और वाद्ययंत्र बजवाना और स्वयं को देश-भक्त साबित करने के लिए फ़िल्मी गानों की तर्ज पर बेसुरा राग छेड़ना। सदैव बीमार, थका हुआ, परेशान और अस्त-व्यस्त दिखना भी नौटंकीबाज राजनैतिक व्यक्ति की विशेष खूबी होती है।

इस तरह के राजनैतिक नौटंकीबाजों के दिल और दिमाग में मनोरंजन और टाइम-पास करने के लिए जुटी भीड़ को देखकर ऐसा मुगालता बैठ जाता है कि नौटंकी कला के माध्यम से जनता को अपने प्रति आकर्षित कर रहे हैं। अब तो दर्शक भी तालियां ज़रूर पीट लेते हैं, वाह ! वाह ! क्या बात है ! भी कहते रहते हैं, किंतु सुधी दर्शकों को नौटंकी की वास्तविकताओं को समझने में ज्यादा देर नहीं लगती है । जब -जब भी ऐसे लोग जगह-जगह मंचों पर डायलॉग बोलते हैं तो लोग कृत्रिमता के आवरण को समझकर उनकी असलियत पर चर्चा करने लगते हैं। इनके ये डायलॉग इनकी ताकत को नहीं, इनकी हताशा, इनकी विवशता, इनके डर और इनके वैचारिक-आचरणगत खोखलेपन को ही बेपर्दा कर रही हैं। ये जितना ज्यादा बोलते हैं उतना ही ही ज्यादा निरीह, हास्यास्पद और लाचार नजर आते हैं। ऐसे नौटंकीबाजों के नाम उजागर करना जरूरी नहीं है, क्योंकि ऐसे लोग सबकी नज़र में आ गए हैं।

राजनीति को नौटंकी बनाती इस नयी टोली में कौन शामिल हैं ? हम-आप और कौन ? ये टोली देश की राजधानी और देश के अन्य हिस्सों में नित्य नए “नुक्कड़ नाटक ” कर रही है। हाथों में सफाई का प्राचीनतम हथियार लिए गांधी टोपी के नए संस्करण से सजी यह टोली “नौटंकी के इतिहास” की सबसे बड़ी पहरुआ मानी जा रही है और इसका प्रायोजित प्रचार भी अपने चरम पर है। ये मंडली भी मानो “नौटंकी का महोत्सव” मनाने में जुटी है। एक अर्से से जारी नौटंकी के इस महोत्सव में शामिल ना जाने कितने लोगों का गला बैठ चुका है, मंचन तो ख़त्म हो चुका है, नौसिखिए कलाकारों (नौटंकीबाजों ) ने अपना जलवा भी बिखेर दिया है फिर भी यह टोली चैन की सांस नहीं ले रही है। ये टोली अपनी मंडली को “नुक्क्ड़” से उठाकर “रंगशाला ” में पहुंचाना जो चाहती है। लेकिन अपनी मंडली को छोड़ बाकी मंडलियों को तुच्छ समझने की बीमारी इस मंडली की नौटंकी के प्रचार का सबसे उबाऊ पहलू है जिसकी अतिशयता से “दर्शक” ऊब चुके हैं। एक नयी नौटंकी पार्टी से कुछ अलग “मनोरंजन” की उम्मीद है। लेकिन कौन नौटंकीबाज कौन सा रोल करेगा ? यही तय नहीं है जिसे “लंका” जलानी है, वही “मायावी रूप” धारण कर बैठा है, वही “अस्मिता” क्षमा करें ” सीता ” का हरण करने वालों की गोद में जा बैठा है।

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