पापी है ‘प’……पॉलिटिक्स, पुलिस और प्रेस

police pressनियम को तोड़ना है तो लाल और नीली बत्ती पर्याप्त है, तराजू वाली देवी को धता साबित करने के लिए गाड़ी में पुलिस लिखवा लीजिए, सूबे में अपनी औकात दिखानी है तो उत्तर प्रदेश सरकार को गाड़ी की नंबर प्लेट से चिपका लीजिए, बाकी टैक्सी हो या फिर ऑटो का सफर पुलिसिया वर्दी फ्री में ही करा देती है. जलजला दिखाने के लिए गाड़ियों में हूटर लगवाईये भई. जिला सचिव, छात्र नेता, प्रदेश अध्यक्ष, महामंत्री जैसे तमाम पदों को गाड़ियों में चिपकाकर विज्ञापित किया जाता है. सिर्फ इतना ही नहीं भौकाल दिखाया जाता है. पद, कद के इन स्टीकर्स के बाद कोई कानून, कोई नियम इन पर लागू नहीं होता. दरअसल वीआईपी बनने की निशानी है ये. जबरदस्त जाम भी लगा हो तो वर्दीधारी लाल और नीली बत्ती की गाड़ियों को सलीके से जाम से निजात दिला देते हैं. जबकि एम्बुलेंस जिसमें कोई मरीज जिंदगी के लिए जद्दोजहद कर रहा हो उसके लिए जाम का मतलब जाम है. कई बार तो मरीज जाम की वजह से समय से अस्पताल नहीं पहुंच पाता और जिंदगी से हाथ धो बैठता है. शायद वो वीआईपी की श्रेणी में नहीं शामिल किया गया. जी हां सूबे के मुखिया प्रदेश को उत्तम प्रदेश बनाने का वादा करते हैं. लेकिन मूलभूत नियमों की अनदेखी भला किस और कैसे प्रदेश की ओर इशारा कर रहे हैं. दरअसल ये बता रहे हैं कि कानून इनके लिए नहीं बल्कि इनसे है.

आदेश की उड़ रही हैं धज्जियां

शीर्ष अदालत ने निजी व्यक्तियों के वाहनों में सायरन के इस्तेमाल पर भी प्रतिबंध लगा दिया था और प्रशासन को निर्देश दिया गया था कि ऐसा करने वालों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई की जाए. न्यायमूर्ति जीएस सिंघवी और न्यायमूर्ति सी नागप्पन ने कहा कि वर्दीधारी व्यक्ति, एंबुलेंस और अग्निशमन सेवाओं, आपात सेवाओं और एस्कार्ट्स या पायलट या कानून व्यवस्था की ड्यूटी में लगे पुलिस के वाहन लाल बत्ती की बजाय नीली, सफेद और बहुरंगी बत्ती लगाएंगे. इन नियमों का अनुपालन कितना हुआ ये रास्ते में बाइक वाले ने पुलिसिया सायरन बजाकर महसूस करा दिया.

‘’अमां हम सरकारी आदमी हैं’’

न्यायालय का कहना है कि वाहनों पर लाल बत्तियों के दुरुपयोग पर अंकुश लगाने में प्रशासन बुरी तरह विफल रहा है. न्यायाधीशों ने कहा, ‘देश के अलग-अलग हिस्सों में बड़ी संख्या में लोग अपराध के लिए प्रयुक्त वाहनों में लाल बत्ती का इस्तेमाल करते हैं और वे धौंस के साथ ऐसा करते हैं क्योंकि जुर्माना लगाने की बात तो दूर लाल बत्ती की गाड़ियों की तलाशी लेने में पुलिस अधिकारी भी डरते हैं।’

तो क्यों होता है ऐसा..
इस पूरे मामले पर हमने उत्तर प्रदेश परिवहन विभाग के ज्वाइंट सेक्रेटरी नार्वेद सिंह से बातचीत की आईये जानते हैं उनका क्या कहना था.

सवाल- शीर्ष अदालत ने निजी व्यक्तियों के द्वारा सायरन पर रोक लगाई हुई है लेकिन अक्सर समाजवादी पार्टी एवं अन्य पार्टियों के बिल्ले से लिपटी हुई गाड़ियां इस नियम को ध्वस्त करती हुई नजर आती हैं इस पर क्या कहना है आपका ?
जवाब- प्रशासन के द्वारा निरंतर कार्यवाही की जा रही है
सवाल- तो जमीन पर आपकी कार्यवाही क्यों नहीं दिखती..सारी हवा हवाई ही है क्या ?
जवाब- जितना संभव हो सकता है उतनी कार्यवाही की जा रही है. बाकी सारी चीजें अनाधिकृत हैं.
सवाल- एंबुलेंस को रोक दिया जाता है और सपा का हो या फिर कांग्रेस अथवा बीजेपी, बसपा आदि पार्टियों का झंडा जिन गाड़ियों में लगा है, हूटर लगा है तो उन गाड़ियों को जाम से बचाकर निकाल दिया जाता है. ऐसा क्यों.
जवाब- दरअसल आदेश नहीं है कि किसको रोका गया है किसको जाने दिया जाए. जो नियमों में है वही किया जा रहा है.

तो आपने पूरी बातचीत पर गौर किया. जो नियमों में है वही किया जा रहा है. अब नियमों में क्या है और क्या नहीं ये आप भी जानते हैं. बहरहाल पॉलिटिक्स की लीक से हटकर अब अगर पुलिसवालों की गाड़ियों की ओर नजर की जाई तो पता चलता है कि परिवार में एक बंदा पुलिस में है लेकिन उसके तमगे यानि की पुलिस का स्टीकर उस सिपाही के दम पर पूरे खानदान की गाड़ियों में चिपका दिया गया है. ताकि नियमों को, कानून को अपना रिश्तेदार बताकर समझौता किया जा सके.
पुलिस के इस रवैये पर हमने आगरा के एसपी ट्रैफिक अभिषेक सिंह से जब बातचीत की तो उनका क्या कहना था आईये जानते हैं….
सवाल- पुलिस का स्टीकर लगाकर वर्दीधारी खुद को नियमों से आजाद मानते हैं..इस पर आपकी ओर से कोई ध्यान क्यों नहीं की जाती.
जवाब- ये आपको कहां से पता चलता है कि ध्यान नहीं दिया जाता है.
सवाल- मैंने देखा है कि चंद वर्दीधारी विदआउट हेलमेट चल रहे हैं, नियमों की बखिया उधेड़ रहे हैं उन पर कार्यवाही से क्यों बचा जाता है.
जवाब- ये जरूरी तो नहीं कि हर कोई ऐसा कर रहा है, अगर हमारे सामने ऐसा कोई पड़ेगा तो हम कार्यवाही कर देंगे.
इसके बाद सवाल का जवाब देना इन जिम्मेदार महानुभाव ने मुनासिब नहीं समझा और फोन कट कर दिया. लेकिन क्या जब तक शीर्ष अधिकारी कार्यवाही नहीं करेंगे तब तक नियमों की धज्जियां उड़ती रहेगी. क्या इसी तरह से बचा जाता रहेगा कार्यवाही करने से, इन मुद्दों पर बात करने से. नियमों को अनदेखा करने की फेहरिस्त सिर्फ राजनीति और पुलिस तक ही सीमित नहीं बल्कि इन दोनों के चमचे भी शामिल है. लेकिन इसकी वजह क्या है..शायद भ्रष्टाचार, जिसके दम पर ईमान को पहले तो कमजोर किया जाता है और फिर उसकी पद, कद और हद के दम पर खरीदफरोख्त कर ली जाती है. लेकिन इन सबसे अलग हटकर ही उत्तर प्रदेश को असल मायने में उत्तम प्रदेश बनाया जा सकता है. जिसके लिए पुलिस, पॉलिटिक्स को अपनी जिम्मेदारी को असल में समझना होगा. नियमों को तोड़ने वाले तानाशाहों में प के तीन रूप सामने आते हैं. सच पापी लगता है प. दरअसल प से आशय पुलिस, प्रेस और पॉलिटिक्स. तो मायने बदलिए अधिकार क्षेत्र के. हां तब्दीली बिकाऊ के बोर्ड में भी लाने की जरूरत है. हालांकि ये कब बदलेगा और कब नहीं इसकी अवधि तय नहीं है क्योंकि इसकी एक श्रंखला है.

अब रही बात प्रेस के स्टीकर लगी गाड़ियों की तो रिपोर्टिंग के लिए जाते समय किसी बेवजह के पचड़े में न पड़ने के लिए प्रेस का स्टीकर चस्पा किया जाता है. जो कि कहीं न कहीं उचित कारण भी समझ आता है. लेकिन प्रेस के बेजा इस्तेमाल से बचना भी जरूरी है. क्योंकि लोगों की निगाहों में और जहन में ये चीज जरूर आती है कि इन साहब की गाड़ी में प्रेस लिखा है तो निश्चित ही इन्हें नियम, कानून से काफी छूट मिलेगी. कहीं न कहीं इसी वजह से आज गांव हो या कस्बा या फिर शहर सबसे ज्यादा प्रेस लिखी गाड़ियां मिल जाती हैं. लेकिन नियमों से समझौता प्रेस के लिए भी न हो तो ज्यादा बेहतर है. साथ ही प्रेस लिखी गाड़ियों के लिए अधिकृत होना जरूरी है ताकि दुरूपयोग न हो. अगर नियमों को सटीक और असरदार पेश करना है तो सख्ती से इन सभी चीजों का अनुपालन करना जरूरी है. वरना झूठे नियमों के नाम पर खुद को और प्रदेश को उत्तम बताते रहिए.
हिमांशु तिवारी आत्मीय

 

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