यमुना का प्रदूषण और उमा भारती के प्रयास

(22 मार्च 2017 जल दिवस पर विशेष आलेख)

यमुना नदी यमनोत्री ग्लेशियर से निकलती है और गंगा नदी की सबसे बडी सहायक नदी है आज यह नदी गंगा नदी से भी ज्यादा प्रदूषित है। भारतवर्ष की सर्वाधिक पवित्र और प्राचीन नदियों में यमुना को गंगा के साथ रखा जाता है। जिस तरह गंगा नदी का सांस्कृतिक इतिहास है उसी प्रकार यमुना नदी का भी सांस्कृतिक इतिहास है। सम्पूर्ण ब्रज क्षेत्र की तो यमुना एक मात्र महत्वपूर्ण नदी है। जहां तक ब्रज संस्कृति का संबध है, यमुना को केवल नदी कहना ही पर्याप्त नहीं है। वस्तुतः यह ब्रज संस्कृति की सहायक, इसकी दीर्ध कालीन परम्परा की प्रेरक और यहा की धार्मिक भावना की प्रमुख आधार रही है। जिस प्रकार ब्रज क्षेत्र में कृष्ण का स्थान है उसी प्रकार ब्रज में यमुना का स्थान है। आज उसी नदी यमुना में प्रदूषण का स्तर खतरनाक है, और दिल्ली से आगे जा कर ये नदी मर रही है। और एक नाला बन कर रह गयी है।

जो लोग यमुना पर सालो से शोध कर रहे है उन विशेषज्ञों का मानना है कि इसकी वजह है औद्योगिक प्रदूषण, बिना ट्रीटमेंट के कारखानों से निकले दूषित पानी को सीधे नदी में गिरा दिया जाना, यमुना किनारे बसी आबादी मल-मूत्र और गंदकी को सीधे नदी मे बहा देती है। लेकिन इनमें सबसे खतरनाक है रासायनिक कचरा जो कि यमुना किनारे लगे कारखाने उडेल रहे है।

आज यमुना का हाल घर में पड़ी बूढ़ी मां की तरह हो गया है जिसे हम प्यार तो करते हैं, उसका लाभ भी उठाते हैं, लेकिन उसकी फिक्र नहीं करते। यमुना का आधार धार्मिक, आर्थिक और सांस्कृतिक है। इस नदी का गौरवशाली इतिहास रहा है, इसलिए यमुना को प्रदूषण मुक्त कर उसकी गरिमा लौटने की मुहिम के लिए सभी देशवासिओ को आगे आना होगा। देश की हर नदी पर व्यवासायिक गतिविधियां दिनो दिन बढती जा रही है, कम से कम यमुना और देश की प्रमुख नदियों को इससे मुक्त रखने की जरूरत है।

दिल्ली का वजीराबाद बैराज एक ऐसी जगह है जहाँ पर आपको यमुना की बदहाली का जवाब शायद मिल जाएगा। यही वो जगह है जहाँ से यमुना नदी दिल्ली मे प्रवेश करती है और इसी जगह पर बना बैराज यमुना को आगे बढ़ने से रोक देता है। यही तक यमुना नदी बहती है इसके आगे यमुना रुपी नाला बहता है। वजीराबाद के एक ओर यमुना का पानी एकदम साफ और दूसरी तरफ एक दम काला, इसी जगह से नदी का सारा पानी दिल्ली द्वारा उठा लिया जाता है और जल शोधन संयत्र के लिए भेज दिया जाता है ताकि दिल्ली की जनता को पीने का पानी मिल सके। बस यहीं से इस नदी की बदहाली भी शुरु हो जाती है। दिल्ली में यमुना नदी में 22 किलोमीटर के सफर में ही 18 नाले मिल जाते हैं तो बाकी जगह का हाल क्या होगा। इसमें सबसे बड़ा योगदान औद्योगिक प्रदूषण का है जो साफ हो ही नही रहा।

यमुना नदी एक हजार 29 किलोमीटर का जो सफर तय करती है, उसमें दिल्ली से लेकर चंबल तक का जो सात सौ किलोमीटर का जो सफर है उसमें सबसे ज्यादा प्रदूषण तो दिल्ली, आगरा और मथुरा का है। दिल्ली के वजीराबाद बैराज से निकलने के बाद यमुना बद से बदतर होती जाती है। इन जगहों के पानी में ऑक्सीजन तो है ही नही। चंबल पहुंच कर इस नदी को जीवन दान मिलता है और पुनः पुनर्जीवित होती है। वो फिर से अपने रूप में वापस आती है। नदी साफ रहने के लिए जरूरी है कि पानी बहने दिया जाए। हर जगह बांध बना कर उसे रोकने से काम नही चलेगा। दिल्ली के आगे जो बह रहा है वो यमुना है ही नही वो तो मल-जल है। पहले मल-जल को नदी में छोड़ दो और उसके बाद उसका उपचार करते रहो तो नदी कभी साफ नही हो सकती।

यमुना ऐक्शन प्लान के दो चरणों में इतना पैसा बहाने के बाद भी अगर नदी का हाल वही का वही है तो इसका सीधा मतलब ये है कि जो किया गया हैं वो सही नही है। इसमें से ज्यादा पैसा यमुना को साफ और प्रदूषित मुक्त बनाने की बजाय भ्रष्टाचार की भेट चढा है ये जगजाहिर होता है। मोदी सरकार ने सरकार गठन के बाद गंगा और उसकी सहायक नदियों को प्रदूषण मुक्त करने के लिए नमामि गंगे योजना का गठन किया था। इस योजना (नमामि गंगे) के तहत नदी के प्रदूषण को कम करने पर पूरा जोर होगा। इसमें प्रदूषण को रोकने और नालियों से बहने वाले कचरे के शोधन और उसे नदी से दूसरी ओर मोड़ने जैसे कदम उठाए जाएंगे। कचरा और सीवेज परिशोधन के लिए नई तकनीक की व्यवस्था की जाएगी। 3 साल होने आये सरकार को लेकिन न तो नदियों का प्रदूषण कम हुआ है। न ही प्रदूषण को और नालियों से बहने वाले कचरे के शोधन और उसे नदी से दूसरी ओर मोड़ने जैसे कदम उठाए गए हैं। और न ही कचरा और सीवेज परिशोधन के लिए नई तकनीक की व्यवस्था की गयी है।

मोदी सरकार द्वारा चलायी जा रही नमामि गंगे योजना का लाभ अभी तक यमुना नदी को नहीं मिला है। असल में कहा जाए तो नमामि गंगे का लाभ गंगा को भी नहीं मिला है। कहा जाए तो गंगा की स्वच्छता को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रतिबद्धता के बावजूद नमामि गंगे योजना धरातल पर नहीं उतर पा रही है। जल संसाधन और गंगा संरक्षण मंत्री ने गंगा और उसकी सहायक नदियों को प्रदूषण मुक्त करने के लिए 2018 तक का समय माँगा है। इतने सालों में गंगा और यमुना साफ नहीं हो पाई तो हमें 2018 तक का भी इंतजार कर लेना चाहिए। लेकिन जल संसाधन और गंगा संरक्षण मंत्री साध्वी उमा भारती ने गंगा और उसकी सहायक नदियों के लिए जो योजना बनायी है (जिसमे यमुना भी शामिल है) अगर वह क्रियान्वित हो जाती है तो ब्रज को वही पुरानी यमुना वापिस मिल सकती है। नमामि गंगे को क्रियान्वित करने में केंद्र सरकार को सबसे ज्यादा परेशानी उत्तर प्रदेश में ही आयी क्योंकि यहाँ के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कई योजनाओं को एनओसी नहीं दी, जो कि उमा भारती उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के समय सार्वजनिक रूप से कह चुकी हैं। वृन्दावन और मथुरा में उमा भारती ने नमामि गंगे के तहत कुछ प्रोजेक्ट लांच किये लेकिन उनके परिणाम अभी तक देखने को नहीं मिले हैं। जिसमे वृन्दावन के नगर पालिका क्रिकेट मैदान में नमामि गंगे परियोजना और हाइब्रिड-एन्यूटी मॉडल के अंतर्गत सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट का भी शुभारम्भ किया गया। नमामि गंगे प्रोजेक्ट्स के अंतर्गत ‘’मथुरा और वृन्दावन के सोलह घाटों पर काम शुरु हो गया है। इस परियोजना से मथुरा-वृंदावन का ट्रिटेड जल यमुना में छोड़ने के बजाय मथुरा तेल शोधन संयत्र को दिया जाएगा। उमा भारती के अनुसार उन्होंने यमुना के लिए जो प्लान किया है उसमे दिल्ली से गंदा पानी अब मथुरा में नहीं आ पायेगा। नमामि गंगे प्रोजेक्ट में दिल्ली से आने वाला गंदा पानी ट्रीट होकर मथुरा की यमुना नदी में शुद्ध होकर आयेगा। जिसके लिए दिल्ली में भी कई प्रोजेक्ट्स को पहले ही लांच किया जा चुका है। इसके अलावा उमा भारती ने दिल्ली में यमुना को हाइब्रिड एन्यूटी पर ले जाकर पूरी की पूरी यमुना और उसके घाटों को ठीक करने की बात कही है। अगले चरण में आगरा की यमुना नदी को भी इस योजना का हिस्सा बनाने की बात की गयी है।’’ अब आगे देखने वाली बात होगी कि केंद्रीय मंत्री उमा भारती यमुना का कितना जीर्णोद्धार या कायाकल्प कर पाती हैं। क्योंकि अब उत्तराखंड में भी भाजपा की सरकार बन चुकी है और उत्तर प्रदेश में भी भगवाधारी महंत योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बन चुकी है। इससे अब नमामि गंगे प्रोजेक्ट्स को एनओसी मिलने में आसानी होगी। उमा भारती के साथ ही उत्तर प्रदेश के नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का भी गंगा और यमुना से खास लगाव है। अब देखने वाली बात होगी कि आने वाले सालों में भगवाधारी  केंद्रीय मंत्री उमा भारती और भगवाधारी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की जोड़ी गंगा और यमुना को स्वच्छ, निर्मल और अविरल बनाने में कितनी कामयाब होती है। अगर भगवाधारी केंद्रीय मंत्री उमा भारती के यमुना और गंगा के प्रति नजरिए के बारे में बात की जाये तो वह गंगा और यमुना को प्रदूषण मुक्त बनाने को अपने जीवन-मरण का सवाल बना चुकी हैं। इसलिए उमा भारती अपने हर वक्तव्य में कहती हैं कि  ‘‘जब आए हैं गंगा के दर पर तो कुछ करके उठेंगे, या तो गंगा निर्मल हो जाएगी या मर के उठेंगे।’’ इससे पता चलता है कि उमा भारती गंगा और यमुना के प्रदूषण से कितनी विचलित हैं।

अगर यमुना के मौजूदा हालात पर बात की जाए तो असल बात यह है कि कालिंदी की हालत सुधारने के लिए प्रयास नहीं किए गए। सरकारी और गैर सरकारी स्तर पर भी कार्यक्रम चलाए गए पर हालात जस के तस रहे। इसके लिए जरूरत है दृढ संकल्प की जो की हर भारतीय के अन्दर होना चाहिए तब हमें करोडो रुपए बहाने की भी जरूरत नहीं पडेगी। सभी धर्म सम्प्रदाय के लोगो को यमुना को अपनी माँ का दर्जा देना होगा क्योकि यमुना देश के करोडो लोगो की प्यास बुझती है। चाहे वह हिन्दू हो या मुस्लिम इसके लिए सभी को प्रयास करना चाहिए।  इसके अलावा तब तक शांत नहीं बैठना है- जब तक यमुना अविरल नहीं हो जाती है। और आज जरूरत है यमुनातट पर बसे लोगों को यमुना की दुर्दशा के बारे में बताने और उन्हें जागरूक करने की। तभी हम यमुना की धारा को अविरल, निर्मल तथा आचमन लायक बना सकते है और ब्रज को वही पुरानी कालिंदी लोटा सकते है।

ब्रह्मानंद राजपूत,

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