बलात्कार के लिए पोर्न फिल्में जिम्मेबार

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संदर्भः पोर्न साइट्स भी है बलात्कार के लिए जिम्मेबार-भूपेंद्र सिंह, गृहमंत्री मप्र सरकार
प्रमोद भार्गव
देश  में इस समय बालिकाओं से बलात्कार की बाढ़ सी आई हुई है। इस परिप्रेक्ष्य में मध्य प्रदेश  के गृहमंत्री भूपेंद्र सिंह ने बयान दिया है कि ‘बच्चियों के खिलाफ बढ़ रही यौन शोषण की घटनाओं के लिए आसानी से उपलब्ध पोर्न फिल्में हैं। यौन शोषण के लिए यह कई कारणों में से एक प्रमुख कारण है। इसलिए प्रदेश सरकार केंद्र सरकार से पोर्न साइट्स पर रोक लगाने की मांग करने जा रही हैं।‘ सिंह ने यह भी बताया कि प्रदेश  सरकार अपने स्तर पर 25 अश्लील  ठिकानों को प्रतिबंधित भी कर चुकी है। गृहमंत्री का यह बयान ऐसे समय में आया है, जब देश  में कठुआ, उन्नाव, सूरत, ऐटा, इंदौर, इटावा में बालिकाओं से  दुष्कर्म  और फिर उनकी निर्मम हत्या कर देने के मामले लगातार सामने आ रहे हैं। प्रसिद्ध संत आसाराम बापू को भी नाबालिग बच्ची से दुष्कर्म  के मामले में जोधपुर अदालत में सजा सुनाई है। लेकिन इस सब के बावजूद ऐसा नहीं लग रहा है कि केंद्र सरकार पोर्न फिल्मों पर रोक लगाएगी। क्योंकि इन फिल्मों ने भारत में एक बहुत बड़ा प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष बाजार तैयार कर लिया है।
गृहमंत्री का बयान हवा-हवाई नहीं है। वह तथ्यात्मक सत्य के निकट है। पिछले साल राजस्थान की राजधानी जयपुर में एक शिक्षक द्वारा 25 बच्चों से दुष्कर्म  करने और उनका वीडियो बनाने का मामला सामने आया था। इसी तरह यौन विकृती से पीड़ित मुंबई की एक 28 वर्षीय शिक्षक को पुलिस ने हिरासत में लिया था। यह अपने आस-पड़ोस के बालक-बालिकाओं को अपने घर बुलाकर मोबाइल पर अश्लील  वीडियो दिखाकर अपनी यौन कुंठाओं की पूर्ति करती थी। ये दोनों घटनाएं समाज में बढ़ रही उस विकृत मानसिकता का शर्मसार  करने वाले उदाहरण हैं, जिनकी प्रष्ठभूमि  में पोर्न फिल्में व सोशल  साइटें रही हैं। शिक्षकों के ये चेहरे इसलिए ज्यादा घिनौने हैं, क्योंकि परिवार, समाज और राश्ट्र इन्हीं के द्वारा दी जाने वाली शिक्षा से चरित्र-निर्माण और संस्कार के बुनियादी पहलुओं को ग्रहण करता है।
अंतर्जाल की आभासी व मायावी दुनिया से अष्लील सामग्री पर रोक की मांग सबसे पहले इंदौर के जिम्मेबार नागरिक कमलेश  वासवानी ने सर्वोच्च न्यायालय से की थी। याचिका में दलील दी गई थी कि इंटरनेट पर अवतरित होने वाली अष्लील वेबसाइटों पर इसलिए प्रतिबंध लगना चाहिए, क्योंकि ये साइटें स्त्रियों एवं बालकों के साथ यौन दुराचार का कारण तो बन ही रही हैं,सामाजिक कुरूपता बढ़ाने और निकटतम  रिश्तों  को तार-तार करने की वजह भी बन रही हैं। इंटरनेट पर अष्लील सामग्री को नियंत्रित करने का कोई कानूनी प्रावधान नहीं होने के कारण जहां इनकी संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है, वहीं  दर्शक  संख्या भी बेतहाशा  बढ़ रही है। ऐसे में समाज के प्रति उत्तरदायी सरकार का कर्तव्य बनता है कि वह अश्लील  प्रौद्योगिकी पर नियंत्रण की ठोस पहल करे।
लेकिन डाॅ मनमोहन सिंह और फिर नरेंद्र मोदी नेतृत्व वाली सरकारों ने असहायता जताते हुए शीर्श न्यायालय को कहा था, ‘यदि हम एक साइट अवरुद्ध करते हैं तो दूसरी खुल जाती हैं। एक वेब ठिकाना बंद करने पर दूसरे का यकायक खुल जाना भी एक हकीकत है। बल्कि वस्तुस्थिति तो यह है कि एक नहीं अनेक ठिकाने खुल जाते हैं। वह भी द्रश्य , श्रव्य और मुद्रित तीनों माध्यमों में। ये साइटें नियंत्रित या बंद इसलिए नहीं होती,क्योंकि सर्वरों के नियंत्रण कक्ष विदेशों  में स्थित हैं। ऐसा माना जाता है कि इस मायावी दुनिया में करीब 20 करोड़ अश्लील  वीडियो एवं क्लीपिंग चलायमान हैं, जो एक क्लिक पर कंप्युटर, लैपटाॅप, मोबाइल, फेसबुक, ट्यूटर, यूट्यूब और वाट्सअप की स्क्रीन पर उभर आती हैं। लेकिन यहां सवाल उठता है कि इंटरनेट पर अश्लीलता  की उपलब्धता के यही हालात चीन में भी थे। जब चीन ने इस यौन हमले से समाज में कुरूपता बढ़ती देखी तो उसके वेब तकनीक से जुड़े अभियतांओं ने एक झटके में सभी वेबसाइटों को प्रतिबंधित कर दिया। गौरतलब है, जो सर्वर चीन में अश्लीलता  परोसते हैं,उनके ठिकाने भी चीन से जुदा धरती और आकाष में हैं। तब फिर यह बहाना समझ से परे है कि हमारे इंजीनियर इन साइटों को बंद करने में क्यों अक्षम साबित हो रहे हैं ?
इस तथ्य से दो आशंकाएं प्रगट होती हैं कि बहुराष्टीय  कंपनियों के दबाव में एक तो हम भारतीय बाजार से इस आभासी दुनिया के कारोबार को हटाना नहीं चाहते, दूसरे इसे इसलिए भी नहीं हटाना चाहते क्योंकि यह कामवर्द्धक दवाओं व उपकरणों और गर्भ निरोधकों की बिक्री बढ़ाने में भी सहायक हो रहा है। जो विदेषी मुद्रा कमाने का जरिया बना हुआ है। कई सालों से हम विदेशी  मुद्रा के लिए इतने भूखे नजर आ रहे हैं कि अपने देष के युवाओं के नैतिक पतन और बच्चियों के साथ किए जा रहे दुष्कर्म  और हत्या की भी परवाह नहीं कर रहे हैं। किसी भी देष के आगे भीख कटोरा लिए खड़े हैं। अमेरिका,जापान और चीन से विदेषी पूंजी निवेश  का आग्रह करते समय क्या हम यह षर्त नहीं रख सकते कि हमें अश्लील  वेबसाइटें बंद करने की तकनीक दें ? लेकिन दिक्कत व विरोधाभास है कि अमेरिका, ब्रिटेन, कोरिया और जापान इस अष्लील सामग्री के सबसे बड़े निर्माता और निर्यातक देश  हैं। लिहाजा वे आसानी से यह तकनीक हमें देने वाले नहीं है। गोया, यह तकनीक हमें ही अपने स्रोतों से इजाद करनी होगी।
ब्रिटेन में सोहो एक ऐसा स्थान हैं, जिसका विकास ही पोर्न वीडियो फिल्मों एवं पोर्न क्लीपिंग के निर्माण के लिए हुआ है। ‘सोहो‘ पर इसी नाम से फ्रैंक हुजूर ने उपन्यास भी लिखा है। यहां बनने वाली अश्लील  फिल्मों के निर्माण में ऐसी बहुराष्टीय  कंपनियां अपने धन का निवेष करती हैं, जो कामोत्तेजक सामग्री, दवाओं व उपकरणों का निर्माण करती हैं। वियाग्रा, वायब्रेटर, कौमार्य झिल्ली, कंडोम, और सैक्सी डाॅल के अलावा कामोद्दीपक तेल बनाने वाली ये कंपनियां इन फिल्मों के निर्माण में बढ़ा पूंजी निवेश  करके मानसिकता को विकृत कर देने वाले कारोबार को बढ़ावा दे रही हैं। यह शहर ‘सैक्स उद्योग‘के नाम से ही विकसित हुआ है। बाजार को बढ़ावा देने के ऐसे ही उपायों के चलते ग्रीस और स्वीडन जैसे देशों  में क्रमश  89 और 53 फीसदी किशोर निरोध का उपयोग कर रहे हैं। यही वजह है कि बच्चे नाबालिग उम्र में काम-मनोविज्ञान की दृश्टि से परिपक्व हो रहे हैं। 11 साल की बच्ची राजस्वला होने लगी है और 13-14 साल के किशोर कमोत्तेजाना महसूस करने लगे हैं। इस काम-विज्ञान की जिज्ञासा पूर्ति के लिए अब वे फुटपाथी सस्ते साहित्य पर नहीं, इंटरनेट की इन्हीं साइटों पर निर्भर हो गए हैं। जाहिर है, सरकार द्वारा साइटों पर पाबंदी लगाने की लाचारी में कंपनियों का नाजायज दबाव और विदेशी  पूंजी के आकर्षण  की आशंका  के लिए खेला जा रहा यह खेल कालांतर में राष्ट्रघाती  सिद्ध हो सकता है।

 

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