राजनीति में सत्ता लक्ष्य ही सर्वोच्च लक्ष्य


विवेक कुमार पाठक
स्वतंत्र पत्रकार
सबका साथ सबका विकास का नारा बुलंद करने वाली केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार ने आखिरकार एससी एसटी एक्ट को लेकर सुप्रीम कोर्ट का फैसला संसद में पलट दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत पर मुहर लगाते हुए ऐतिहासिक फैसला दिया था कि एससी एसटी एक्ट में किसी भी सवर्ण की एफआईआर के बादर तुरंत गिरफतारी से पहले एक सप्ताह की जांच हो। इस जांच का लक्ष्य एससी एसटी एक्ट के झूठे मामलों से न्याय को प्रभावित होने से बचाना था। सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला न्यायिक प्रक्रिया को समर्पित ऐतिहासिक फैसला था मगर 2 अप्रैल 2018 को हुए अराजक आंदोलन ने भारत की राजनीति के समीकरण बहुत तेजी से बदले हैं। इस दिन लाठी डंडे लेकर दलितों के नाम पर अराजक भीड़ ने पूरे भारत हिन्दुस्तान की सड़कों पर उत्पात मचाया था। भीड़ की शक्ल वालों में कितने दलित थे मगर दलितों के नाम पर देश के हर शहर में लाठी डंडों से वाहन फोड़े गए थे। हिंसक प्रदर्शन कर रेले रोकीं गईं थीं और सार्वजनिक संपत्ति और निजी संपत्ति को भारी नुकसान पहुंचाते हुए जगह जगह वाहनों को आग के हवाले किया गया था। 2 अप्रैल को देश भर में हुए इस हिंसक प्रदर्शन ने किस कदर भारत की सियासत पर असर किया है ये कुछ दिन पहले पूरा भारत और पूरी दुनिया देख रही है। सवर्णों के चंदे और स्थापना के बाद से सवर्ण और मध्यम वर्ग की पार्टी कही जाने वाली भारतीय जनता पार्टी ने सवर्णों के तमाम विरोध को दरकिनार करते हुए आरक्षण का डंके की चोट पर समर्थन किया। भारतीय जनता पार्टी की बदली राजनैतिक लाइन 2 अप्रैल को हुए हिंसक आंदोलन के बाद अपनी सत्ता को संभावित नुकसानों और दरारों पर तुष्टिकरण की एमसील लगाती दिखी।
विकास के नाम पर पूर्ण बहुमत लेकर आने वाले नरेन्द्र मोदी छाती ठोककर पूरे देश में कहते दिखे कि दलितों के हक के लिए सुप्रीम कोर्ट का फैसला संविधान संशोधन विधेयक पास कर बदला जाएगा। मोदी और अमित शाह की युगल जोड़ी ने ये वादा जिस आक्रमक अंदाज में दलितों को लुभाने के लिए किया उससे और भी आक्रमक ढंग से इसे पूरा करके देश के सवर्णों को चकित सा कर दिया।
देश में जो सवर्ण भाजपा के कट्टर वोटर रहे हैं व वे सोशल मीडिया पर नरेन्द मोदी को वी पी सिंह का पुर्नजन्म बता रहे हैं तो सवर्ण विरोधी साबित कर रहे हैं। देश का सवर्ण वर्ग इस समय खुद को ठगा हुआ बताकर आक्रोश का सार्वजनिक प्रदर्शन कर रहा है। उधर दलित राजनीति का झंडा विपक्षी कांग्रेस, बसपा, सपा से सत्ता पक्ष में लगाकर मोदी और अमित शाह इसे अपनी बड़ी विजय बता रहे हैं। संसद और संसद के बाहर उनके अंदाज और तेवर बता रहे हैं कि उनका ये बड़ा फैसला 2019 में भाजपा को उस संकट से बचाएगा जो 2 अप्रैल 2018 के बाद से भाजपा शिरोमणियों की नींद हराम किए हुए था। एससी एसटी एक्ट में गिरफ्तारी में जांच के फैसले को पलटकर भाजपा ने वो पत्ता चला है कि संसद में सारे विपक्षी दलों को भाजपा के साथ संविधान संशोधन के लिए खड़ा होना पड़ा और इससे देश में भाजपा का दलित प्रेम अखिल भारतीय रुप में प्रकट हुआ। अप्रैल के हिंसक आंदोलन से लेकर अगस्त में संसद में संविधान संशोधन भारत की राजनीति की बदलती तस्वीर है।
इस बदलाव ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि राजनीति का सर्वोच्च लक्ष्य सत्ता है। सत्ता का लक्ष्य ही जायज और नाजायज तय करता है।

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