फूल धरती पर खिले हैं।
ये न मुरझायें कभी
ये न कुम्हलायें कभी,
इनके साथ,
मेरे सभी सपने जुड़े हैं।
मोती जो बिखरे हुए हैं,
इनसे मै माला बनाऊँ,
उलझे शब्दों से,
एक कविता बनाऊँ,
कल्पना से मै मन बहलाऊँ।
पर मन बहलता ही नहीं है,
कोई ख़ालीपन है अभी,
इस ख़ालीपन से ही,
जीवन को गति मिलेगी,
गति ही न हो तो ,
प्राणहीन मै हो जाऊँ।
कुछ सपने सजते हैं कभी,
कुछ टूट जाते हैं,
आस जिसकी करू,
वो नहीं मिला तो क्या,
जो मिला है बहुत है,
ईश के भंडार से,
इसी मे से कुछ लुटादूँ,
उसी के दरबार मे,
कुछ न ऐसा करूं मै,
जो किसी के , अहित मे हो,
मुझको इतनी शक्ति देना,
जो सोचूं वो कर सकूं मै,
ख़शी हो तो मुस्कुराऊं,
पर न मै बहक जाऊँ।
कष्ट हो तो सहन करलूं,
दुख मे न डूब जाऊ।
अहंकार की भावना,
पास ना आने दूं कभी
स्वाभिमान के बिना भी,
जी न पांऊँ मै कभी।
मन को भरपूर छूती है कवयित्री बीनू भटनागर जी की यह कविता .
bahut bahut shukriya
“मुझको इतनी शक्ति देना, जो सोचूं वो कर सकूं मै,
ख़शी हो तो मुस्कुराऊं, पर न मै बहक जाऊँ।
…….. बीनू जी की यह कविता संबल देती है । बधाई ।
— विजय निकोर
thank you very much