प्रदूषण एक गंभीर संकट।

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2001

पर्यावरण में दूषक पदार्थों के प्रवेश के कारण प्राकृतिक संतुलन को पूर्ण रूप से क्षतिग्रस्त कर देने का नाम ही प्रदूषण है। इससे पर्यावरण के साथ-साथ सभी प्रकार के जीवों को भारी हानि पहुँच रही है। हवा,पानी, मिट्टी आदि सभी दूषित हो रहा है। इसका मुख्य कारण है कि प्रकृति द्वारा निर्मित वस्तुओं एवं व्यवस्थाओं को जब मानव निर्मित हानिकारक वस्तुओं के साथ मिला दिया जाता है तो जल,थल अथवा वायुमण्डल सभी क्षेत्रों में विनाशकारी तत्वों का जन्म आरंभ हो जाता है। प्राकृति की संरचनाओं के अनुसार पृथ्वी और आकाश के मध्य एक परत है जोकि सम्पूर्ण पृथ्वी को सुरक्षित रखने में सहायक है जोकि पृथ्वी के बहुत ही नजदीक है। वैज्ञानिक अनुमान के अनुसार पृथ्वी से लगभग 70 किलोमीटर की ऊँचाई पर स्ट्रेटोस्फीयर है जिसमें ओजोन का स्तर होता है। यह स्तर सूर्यप्रकाश की किरणों को शोषित कर पृथ्वी तक सीधे पहुंचने से रोकता है। जोकि समस्त जीवों के लिए अत्यंत आवश्यक है। जिस ओजोन की हम बात कर रहे हैं उस ओजोन का बहुत ही तेजी के साथ विघटन हो रहा है। एक रिपोर्ट के अनुसार दक्षिण ध्रुव के ओजोन क्षेत्र में विघटन 40%-50% हो चुका है। जोकि खतरे की बड़ी घंटी है। क्योंकि, किसी भी वस्तु को 50% तक क्षतिग्रस्त हो जाने के बाद उसकी क्या दशा होगी इसका आंकलन किया जा सकता है। जिसके परिणाम पृथ्वी पर दिखाई देने लगे हैं। ओजोन के क्षतिग्रस्त होने के कारण बर्फें पिघलने लगी हैं तथा मानव को अनेकों प्रकार के रोगों का सामना करना पड़ रहा है। आज हमारा वातावरण बहुत ही तेजी के साथ दूषित हो रहा है। वाहनों तथा फैक्ट्रियों से निकलने वाले गैसों के कारण हवा तेजी के साथ प्रदूषित हो रही है। मानव कृतियों के कारण कचरे को नदियों में डाला जाता है जिससे जल भी प्रदूषण हो रहा है। सामान्यतः वायु प्रदूषण कार्बन मोनोआक्साइड, सल्फर डाईआक्साइड, क्लोरोफ्लोरोकार्बन (सीएफसी) तथा उद्योग एवं मोटर वाहनों से निकलने वाले नाइट्रोजन आक्साइड जैसे प्रदूषणों से गंभीर समस्या होती है। प्रदूषण के सूक्ष्म कण मनुष्य की सांसों के साथ फेफड़ों में पहुंचकर बड़ी से बड़ी बीमारियों को जन्म दे देते हैं। हवाओं में अवांछित गैसों की उपस्थिति से मनुष्य, पशुओं तथा पक्षियों को गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। इससे दमा, खाँसी, अँधापन, श्रव का कमजोर होना, त्वचा रोग जैसी बीमारियाँ तेजी के साथ पैदा हो रही हैं। बड़े शहरों में प्रदूषण के कारण अब आँखों में जलन भी होने लगी है जोकि खतरे का बड़ा अलार्म है। बता दें कि ओजोन परत हमारी पृथ्वी के चारों ओर एक सुरक्षात्मक परत है जोकि हमें सूर्य से आने वाली हानिकारक अल्ट्रावायलेट किरणों से बचाती है। प्रदूषण के कारण ही पृथ्वी का तापमान बढ़ता जा रहा है। क्योंकि, सूर्य से आने वाली गर्मी के कारण पर्यावरण में कार्बनडाई आक्साइड, मीथेन तथा नाइट्रस आक्साइड का प्रभाव कम नहीं हो रहा जोकि बहुत ही हानिकारक है। नदियों में कूड़े-कचरे, मानव-शवों और पारम्परिक प्रथाओं का पालन करते हुए उपयोग में आने वाले प्रत्येक घरेलू सामाग्रियों का जल स्रोतों में डाला जाना अत्यंत हानिकारक है। इससे जल की वास्तविकता को बहुत ही क्षति पहुँचती है। गंदे नालों सीवरों के पानी को नदियों मे छोङे जाने के कारण मनुष्य, पशु तथा पक्षियों के स्वास्थ्य को खतरा उत्पन्न हो रहा है। इससे टाईफाइड, पीलिया, हैजा, जैसी बीमारियाँ जन्म लेती हैं। हाल के वर्षों में प्रदूषण की दर बहुत ही तेजी से बढ़ रही है क्योंकि औद्योगिक पदार्थ सीधे मिट्टी, हवा और पानी में मिश्रित हो रहे हैं। इससे गंभीरता के साथ निपटने की जरूरत है अन्यथा आने वाली पीढ़ी बहुत ही अधिक समस्या की चपेट में आ जाएगी। सबसे बड़ी समस्या है हमारी कुछ परंपराएं जोकि त्योहारों के रूप में हमारे धर्मों के साथ जुड़ी हुई हैं जिस पर हमें विचार करना चहिए। क्योंकि समय के बदलते स्वरूप से जलवायु में बहुत बड़ा परिवर्तन दिन प्रतिदिन हो रहा है। हमारे द्वारा फैलाया गया धुआँ हमारा ही दुश्मन बन रहा है, हमें इस बात को सोचना और समझना पड़ेगा। अपितु हमें इस संदर्भ में आत्मचिंतन एवं मनन करने की भी आवश्यकता है। क्योंकि, कोई भी त्योहार खुशी का प्रतीक होता है। जब हमारी खुशी हमारे ही जीवन के लिए हानिकारक साबित हो रही है तो हमें उस खुशी का रूप बदलना चाहिए। क्योंकि जब हम स्वस्थ रहेंगे तभी तो खुशी का आनंद भी ले सकते हैं अन्यथा चिकित्सालय के बेड पर पड़े रहकर क्या हम खुशी का आनंद ले पाएंगे यह सोचने का विषय है। सबसे बड़ी समस्या यह है कि हमारे बच्चों के जीवन पर प्रदूषण का बहुत बुरा प्रभाव पड़ रहा है। क्योंकि बच्चों के शरीर में रोगों से लड़ने की क्षमता बहुत ही कम होती इस कारण छोटे बच्चे आसानी के साथ प्रदूषण की चपेट में आ जाते हैं। इस स्थिति को कल्पना करें कि यदि हमारा बच्चा प्रदूषण की चपेट आकर चिकित्सालय की बेड पर पहुँच गया तो क्या हम किसी भी प्रकार की खुशी का आनंद ले पाएंगे? हम सभी को इस पर अपना ध्यान केंन्द्रित करने की आवश्यकता है।

प्रदूषण को रोकने के लिए हमारे जीवन में वनों का बहुत ही अहम योगदान है। वनों की कटौती प्रदूषण के बढ़ने का मुख्य कारण बनता जा रहा है। समस्त मानव को प्रदूषण नियंत्रण के क्षेत्र में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेना चाहिए। क्योंकि, जबतक किसी भी देश की जनता स्वयं से जागरूक होकर अपनी इच्छा के साथ भागीदारी नहीं लेगी तब तक इस गम्भीर समस्या का निराकरण नहीं हो सकता और दिन प्रतिदिन समस्या तीव्रता के साथ अपने पैरों को पसारती हुई चली आएगी। जिससे मानव जीवन एक दिन इस पृथ्वी पर असंभव हो जाएगा। अतः प्रत्येक व्यक्ति को स्वेच्छा के साथ आगे आकर पर्यावरण के क्षेत्र में बढ़-चढ़कर भागीदारी लेनी चाहिए। क्योंकि हम सभी व्यक्ति इस खुली हवा में सांस ले रहे हैं। यह अडिग सत्य है कि बिना आक्सीज़न के कोई भी व्यक्ति जीवित नहीं रह सकता।

       सज्जाद हैदर

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