‘प्रवक्ता डॉट कॉम’ के पांच वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में हम ‘प्रवक्ता सम्मान’ से 16 लेखकों को सम्मानित कर रहे हैं। यह सम्मान आगामी 18 अक्टूबर 2013 को स्पीकर हॉल, कांस्टिट्यूशन क्लब, नई दिल्ली में प्रदान किया जाएगा। (नोट : कार्यक्रम के विस्तृत विवरण के लिए कार्ड पर क्लिक करें।)
16 अक्टूबर 2008 को ‘प्रवक्ता डॉट कॉम’ की शुरुआत हुई थी। तब प्रश्न सामने आया था कि लेखक तो अपने सम्पर्क में हैं ही नहीं? फिर एक सूची बनाई और उनसे सबसे आग्रह किया कि ‘प्रवक्ता ‘ के लिए अपने लेख भेजें।
हर्ष का विषय है कि अधिकांश लेखकों का सहयोग हमें मिला। हालांकि हमारी निरंतरता और गुणवत्ता(?) को देखते हुए आश्चर्यजनक रूप से गत 5 वर्षों में लेखकों की संख्या 500 को पार कर गई।
हम जिन 16 लेखकों का सम्मान कर रहे हैं उनकी खासियत है कि उनकी लेखनी में जबरदस्त जान है, उनके लिखे पर अच्छी टिप्पणियां आती हैं, उनके लेखों को पढ़ने वालों की संख्या निरंतर बढ़ती रहती है और वे दबाव और प्रभाव में आए बिना अपने स्वभाव के अनुसार लेखन करते हैं। इसके साथ ही वे सब ‘प्रवक्ता’ से भावनात्मक स्तर पर भी जुड़े हुए हैं।
वास्तव में, निम्न महानुभाव-लेखकों को सम्मानित कर हम स्वयं गौरवान्वित हो रहे हैं –
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श्री नरेश भारतीय, ब्रिटेन
ब्रिटेन में बसे भारतीय मूल के हिंदी लेखक। लम्बे अर्से तक बी.बी.सी. रेडियो हिन्दी सेवा से जुड़े रहे। उनके लेख भारत की प्रमुख पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहते हैं। पुस्तक रूप में उनके लेख संग्रह ‘उस पार इस पार’ के लिए उन्हें पद्मानंद साहित्य सम्मान (2002) प्राप्त हो चुका है।
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डॉ. मधुसूदन, अमेरिका
तकनीकी (Engineering) में एम.एस. तथा पी-एच.डी. की उपाधियाँ प्राप्त, भारतीय अमेरिकी शोधकर्ता के रूप में मशहूर, हिन्दी के प्रखर पुरस्कर्ता: संस्कृत, हिन्दी, मराठी, गुजराती के अभ्यासी, अनेक संस्थाओं से जुडे हुए। अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति (अमरिका) आजीवन सदस्य; वर्तमान में अमेरिका की प्रतिष्ठित संस्था UNIVERSITY OF MASSACHUSETTS (युनिवर्सीटी ऑफ मॅसाच्युसेटस, निर्माण अभियांत्रिकी), में प्रोफेसर।———————————————————————————————————————————————————————-
डॉ. कुलदीप चन्द अग्निहोत्री, नई दिल्ली
यायावर प्रकृति के डॉ. अग्निहोत्री अनेक देशों की यात्रा कर चुके हैं। उनकी लगभग 15 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। पेशे से शिक्षक, कर्म से समाजसेवी और उपक्रम से पत्रकार अग्निहोत्रीजी हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में निदेशक भी रहे। आपातकाल में जेल में रहे। भारत-तिब्बत सहयोग मंच के राष्ट्रीय संयोजक के नाते तिब्बत समस्या का गंभीर अध्ययन। कुछ समय तक हिंदी दैनिक जनसत्ता से भी जुडे रहे। संप्रति देश की प्रसिद्ध संवाद समिति हिंदुस्थान समाचार से जुडे हुए हैं।———————————————————————————————————————————————————————-
प्रो. जगदीश्वर चतुर्वेदी, पश्चिम बंगाल
वामपंथी चिंतक। कलकत्ता विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में प्रोफेसर। मीडिया और साहित्यालोचना का विशेष अध्ययन।
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श्री गिरीश पंकज, छत्तीसगढ़
सुप्रसिद्ध साहित्यकार गिरीशजी व्यंग्यकार के नाते विशेष तौर पर जाने जाते हैं। साहित्य अकादमी, दिल्ली के सदस्य रहे। संप्रति आप आप रायपुर (छत्तीसगढ) से निकलने वाली साहित्यिक पत्रिका सद्भावना दर्पण के संपादक हैं।
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श्री संजय द्विवेदी, मध्य प्रदेश
प्रिंट, वेब और इलेक्ट्रॉनिक- तीनों माध्यमों में अपनी विशेष पहचान कायम करनेवाले संजय जी निर्भीक पत्रकारिता के लिए जाने जाते हैं। संप्रति आप माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल में जनसंचार विभागाध्यक्ष हैं।
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श्री आर. सिंह, नई दिल्ली
बिहार के एक छोटे गांव में करीब सत्तर साल पहले एक साधारण परिवार में जन्मे आर. सिंह जी पढने में बहुत तेज थे अतः इतनी छात्रवृत्ति मिल गयी कि अभियन्ता बनने तक कोई कठिनाई नहीं हुई. नौकरी से अवकाश प्राप्ति के बाद आप दिल्ली के निवासी हैं.
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डॉ. राजेश कपूर, हिमाचल प्रदेश
लेखक पारम्परिक चिकित्सक हैं और समसामयिक मुद्दों पर टिप्पणी करते रहते हैं। अनेक असाध्य रोगों के सरल स्वदेशी समाधान, अनेक जड़ी-बूटियों पर शोध और प्रयोग, प्रान्त व राष्ट्रीय स्तर पर पत्र पठन-प्रकाशन व वार्ताएं (आयुर्वेद और जैविक खेती), आपातकाल में नौ मास की जेल यात्रा, ‘गवाक्ष भारती’ मासिक का सम्पादन-प्रकाशन, आजकल स्वाध्याय व लेखन एवं चिकित्सालय का संचालन. रूचि के विशेष विषय: पारंपरिक चिकित्सा, जैविक खेती, हमारा सही गौरवशाली अतीत, भारत विरोधी छद्म आक्रमण.
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डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’, राजस्थान
तीसरी कक्षा के बाद पढाई छूटी। बाद में नियमित पढाई केवल 04 वर्ष। जीवन के 07 वर्ष मेहनत-मजदूरी जंगलों व खेतों में, 04 वर्ष 02 माह 26 दिन 04 जेलों में गुजारे और 20 वर्ष 09 माह 05 दिन दो रेलों में सेवा के बाद स्वैच्छिक सेवानिवृति। जेल के दौरान कई सौ पुस्तकों का अध्ययन, कविता लेखन किया एवं जेल में ही ग्रेज्युएशन डिग्री पूर्ण की। जयपुर से प्रकाशित हिन्दी पाक्षिक समाचार-पत्र “प्रेसपालिका” का प्रकाशक एवं सम्पादक। राष्ट्रीय संगठन ‘भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान’ (बास-BAAS) का मुख्य संस्थापक तथा राष्ट्रीय अध्यक्ष! राष्ट्रीय अध्यक्ष-जर्नलिस्ट्स, मीडिया एंड रायटर्स वेलफेयर एसोसिएशन, मुख्यालय-लखनऊ, उत्तर प्रदेश।
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श्री विपिन किशोर सिन्हा, उत्तर प्रदेश
जन्मस्थान – ग्राम-बाल बंगरा, पो.-महाराज गंज, जिला-सिवान,बिहार. वर्तमान पता – लेन नं. ८सी, प्लाट नं. ७८, महामनापुरी, वाराणसी. शिक्षा – बी.टेक इन मेकेनिकल इंजीनियरिंग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय. व्यवसाय – अधिशासी अभियन्ता, उ.प्र.पावर कारपोरेशन लि., वाराणसी. साहित्यिक कृतियां – कहो कौन्तेय, शेष कथित रामकथा, स्मृति, क्या खोया क्या पाया (सभी उपन्यास), फ़ैसला (कहानी संग्रह), राम ने सीता परित्याग कभी किया ही नहीं (शोध पत्र), संदर्भ, अमराई एवं अभिव्यक्ति (कविता संग्रह)
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श्री राकेश कुमार आर्य, नई दिल्ली
‘उगता भारत’ साप्ताहिक अखबार के संपादक; बी.ए.,एल-एल.बी. तक की शिक्षा, पेशे से अधिवक्ता राकेश जी कई वर्षों से देश के विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में स्वतंत्र लेखन कर रहे हैं। अब तक बीस से अधिक पुस्तकों का लेखन कर चुके हैं। वर्तमान में ‘मानवाधिकार दर्पण’ पत्रिका के कार्यकारी संपादक व ‘अखिल हिन्दू सभा वार्ता’ के सह संपादक हैं। सामाजिक रूप से सक्रिय राकेश जी अखिल भारत हिन्दू महासभा के राष्ट्रीय प्रवक्ता व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और अखिल भारतीय मानवाधिकार निगरानी समिति के राष्ट्रीय सलाहकार भी हैं।
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श्री सुरेश चिपलूनकर, मध्यप्रदेश
राष्ट्रवादी ब्लॉगर के रूप में देश भर में मशहूर हुए। इंटरनेट पर आपके प्रशंसकों की बहुत तादाद।
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डॉ. मनीष कुमार, नई दिल्ली
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से राजनीति शास्त्र में एमए, एमफिल और पीएचडी की उपाधि हासिल करने वाले मनीषजी राजनीतिक टिप्पणीकार के रूप में मशहूर हैं। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में लंबी पारी खेलने के बाद इन दिनों आप प्रिंट मीडिया में भी अपने जौहर दिखा रहे हैं। फिलहाल आप देश के पहले हिंदी साप्ताहिक समाचार-पत्र चौथी दुनिया में संपादक (समन्वय) का दायित्व संभाल रहे हैं।
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श्री राजीव रंजन प्रसाद, छत्तीसगढ़
लेखक मूल रूप से बस्तर (छतीसगढ) के निवासी हैं तथा वर्तमान में एक सरकारी उपक्रम एन.एच.पी.सी में प्रबंधक है। आप साहित्यिक ई-पत्रिका “साहित्य शिल्पी” (www.sahityashilpi.in) के सम्पादक भी हैं। आपके आलेख व रचनायें प्रमुखता से पत्र, पत्रिकाओं तथा ई-पत्रिकाओं में प्रकशित होती रहती है।
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श्री पंकज कुमार झा, छत्तीसगढ़
मधुबनी (बिहार) में जन्म। माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय, भोपाल से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर की उपाधि। अनेक प्रतिष्ठित समाचार-पत्रों में राजनीतिक व सामाजिक मुद्दों पर सतत् लेखन से विशिष्ट पहचान। कुलदीप निगम पत्रकारिता पुरस्कार से सम्मानित। संप्रति रायपुर (छत्तीसगढ़) में ‘दीपकमल’ मासिक पत्रिका के समाचार संपादक।
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मो. इकबाल हिंदुस्तानी, उत्तर प्रदेश
नजीबाबाद, ज़िला-बिजनौर के निवासी लेखक 30 वर्षों से पत्रकारिता से जुड़े हैं।
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‘प्रवक्ता सम्मान’ प्राप्त करने की सहमति के लिए सभी महानुभाव-लेखकों को प्रवक्ता डॉट कॉम की ओर से हार्दिक धन्यवाद।
सभी सम्मानीय लेखकों को हार्दिक बधाई
अति उत्तम चयन, सभी को हार्दिक बधाई. संभव हुआ तो सम्मुख मिलन मनाने की कोशिश करूंगा.
१८ अक्तुबर को सम्मिलित नहीं हो पाऊंगा।
पर, जो काम, कोई करना चाहता हो, उसके लिए अवसर तो मिले ही मिले, उपरांत सम्मान भी किया जाए;तो उस भाव को किन शब्दों में व्यक्त किया जाए? नितान्त वही भाव व्यक्त कर रहा हूँ।
मित्रों से—
हम तो प्रेम का संवाद चाहते हैं।
न विवाद, न विसंवाद चाहते हैं।
स्वस्थ बहस का न्यौता,सभी को।
भारत माँ का उत्थान चाहते हैं।
प्रवक्ता से—
प्रवक्ता ने मुझे सम्मान योग्य समझा, इस लिए संचालकों का धन्यवाद करता हूँ।
और प्रवक्ता के निकष पर खरा उतरने का प्रयास करने का वचन देता हूँ।
१८ अक्तुबर को सम्मिलित नहीं हो पाऊंगा। सभी सम्मानित लेखकों का अभिनन्दन।
डॉ. राजेश कपूर जी ने, हिमाचल प्रदेश युनिवर्सिटी में आमन्त्रित कर ३ दिनकी गोष्ठि आयोजित की थी। उनके संगठन कौशल्यका, आतिथ्यका, और मृदु स्वभावका प्रत्यक्ष परिचय, बहुत प्रभावी रहा।उसी प्रकार नि, ह्वाइस मार्शल विश्वमोहन तिवारी जी के प्रोत्साहन का भी ऋण स्वीकार करता हूँ।
कृतज्ञता सहित।
आप आते तो और खुशी होती
– कार्यक्रम में आना सुनिश्चित हो गया है. अनेक पैनी लेखनी के विचारवान लेखकों के साथ संवाद का सुअवसर ‘प्रवक्ता’ के सौजन्य से प्राप्त हो रहा है.
– मुझे सम्मान के योग्य समझा गया, इसके लिए आभारी हूँ. प्रवक्ता के साथ अनेकअविस्मरनीय स्मृतियाँ जुडी हुई हैं, उनपर फिर कभी.
– प्रो. मधुसुदन जी आ पाते तो और अछा लगता. ‘अंग्रेजों के काल में भारत की शिक्षा और जाती व्यवस्था’ पर एक सेमीनार ‘हिमाचल-शिमला विश्वविद्यालय’ की भागीदारी में हुआ था जिसमें प्रस्तुत शोधपत्रों से पुनः स्थापित हुआ था कि भारत में सन १९०० से पहले अस्पृश्यता या छुआ-छूत नहीं थी.
इस अवसर पर प्रो. मधुसुदन झावेरी जी सपत्नीक पधारे थे और विषय पर अनेक अनछुए तथ्य प्रस्तुत करके आयोजन को अत्यंत सफल बनाने में भारी योगदान किया था. उनकी पैनी और दूर दृष्टी के कारण हम सभी अभिभूत हुए थे. तभी पता चला कि वे उत्तम कवि भी हैं. आशा है कि अभी नहीं तो भविष्य में उनके सानिध्य का सुअवसर मिलेगा.
– इस अवसर पर प्रवक्ता और संजय जी की दृढ़ता, कर्मठता, संस्कृति व देश के प्रति समर्पण, स्पष्ट तथा दूर दृष्टी के बारे में काफी कुछ लिखने की इच्छा थी ; पर अपने मासिक पत्र ‘गवाक्ष भारती’ का एक अंक ‘गो विज्ञान’ पर निकालने की व्यस्तता के कारण सम्भव न हो सका.
सभी मित्रों को शुभकामनाएं
अनेक सार्थक लेखकों के साथ ‘प्रवक्ता’ ने मेरा भी चयन किया, इस हेतु आभार
मुबारक ho
संजीव व प्रवक्ता समूह को बधाई, अवश्य शामिल होऊंगी।