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मेघ से प्रार्थना - प्रवक्‍ता.कॉम - Pravakta.Com
भीषण गर्मी जेठ की,व्याकुल हृदय उदास। देख तुम्हे आकाश में,कर बैठे थे आस।। कर बैठे थे आस,अब कबहु बरसेगे, जीव जंतु व्याकुल है,सब जल को तरसेगे। कह रस्तोगी कविराय,क्यो करते शोषण, समाप्त करो अब तो,ये गर्मी भीषण।। आस जगाकर मेघ तुम,करते गए निराश। खग मृग मानव मीन जग,सबका ह्रदय हताश।।…