कितना कारगर होगा बाढ़ पूर्व तैयारी

प्रिया खण्डेलवाल

बिहार सरकार के स्वास्थ्य विभाग ने बाढ़ के समय उत्पन्न होने वाली जलजनित बीमारियों से निपटने की तैयारियां शुरू कर दी है। राज्य के प्रधान स्वास्थ्य सचिव ने बाढ़ प्रभावित जिलों के सिविल सर्जन को दवा खरीद कर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों तक उपलब्ध करा देने की हिदायत दी है। जिससे कि समय रहते प्रभावी कदम उठाएं जाएं तथा बीमारी को रोका जाए और यदि हो जाए तो उसका समुचित उपचार किया जा सके। समय से पूर्व राज्य सरकार द्वारा बाढ़ से निपटने के इंतजाम सराहनीय है। यदि यह सफल रहा तो इसे एक अभूतपूर्व सफलता माना जा सकता है। बिहार में प्रत्येक वर्ष बाढ़ से लाखों की जान और माल की क्षति होती है। ऐसा नहीं है कि राज्य में हर साल भारी बारिश इसका कारण है बल्कि नेपाल से छोड़े जाने वाले पानी भी इस तांडव की जिम्मेदार होती है।

नेपाल से लगे मुज़फ्फरपुर, सीतामढ़ी, दरभंगा और मधुबनी का इलाका इसकी चपेट में आता रहा है। भले ही बाढ़ का नियमित आना एक सामान्य घटना हो परंतु इससे होने वाली परेशानियों का अंदाजा वही लोग लगा सकते हैं जो इसके भुक्तभोगी हैं। विषेशकर ग्रामीण क्षेत्रों में बाढ़ के दौरान और इसके बाद होने वाली कठिनाईयों की तरफ मीडिया का ध्यान भी नहीं जाता है। जिससे ऐसे क्षेत्र उपेक्षा का शिकार होकर रह जाते हैं।

मधुबनी का विस्फी ब्लॉक किसी विषेश परिचय का मोहताज नहीं है। ये क्षेत्र भगवान शिव के परम भक्त विद्यापति जी की जन्मभूमि है। संस्कृत तथा मैथली के विष्व प्रसिद्ध कवि विद्यापति के योगदान को भारतीय साहित्य और इतिहास कभी भुला नहीं सकता है। जाहिर है इस महान व्यक्ति की जन्मभूमि भारतीय जनमानस के लिए पावन तीर्थस्थली के समान होगा। यह सच है कि वह क्षेत्र आस्था से कम न होगी परंतु यह उससे भी बड़ा सच है कि बाढ़ प्रभावित यह क्षे़त्र बहुत हदतक उपेक्षा का शिकार है। जहां मूलभूत सुविधाओं का घोर अभाव है। दरभंगा से लगभग 35 किलोमीटर दूर स्थित इसी बिस्फी प्रखण्ड में परबत्ता गांव भी अवस्थित है जो प्रखण्ड से 2 किलोमीटर अन्दर उत्तर में है। जहां की आबादी लगभग 2500 से 3000 है। इनमें अधिकतर संख्या महादलितों की है। इस गांव की सबसे बड़ी समस्या यही बाढ़ है। प्रत्येक वर्ष आने वाली इस समस्या के शुरू होते ही गांववासी मानो अपनी जिंदगी भगवान भरोसे छोड़ देते है। बाढ़ के कारण ग्रामवासी महीनों अपने टूटे फूटे झोपड़ी में बंधक की तरह जीवन गुजारने पर मजबूर हो जाते हैं। चिंता की बात तो यह है कि बाढ़ का पानी उतरने के बाद इनकी समस्याओं का समाधान होने की बजाए और बढ़ जाती है। गंदे पानी और जलजमाव के कारण दूर-दूर के इलाकों तक भंयकर बीमारीयां जैसे महामारी, डायरिया मियादी बुखार, टाईफाइड, हैजा का प्रकोप शुरू हो जाता है। इसका सबसे ज्यादा प्रभाव बच्चों पर होता है जो समय पर उचित इलाज नहीं मिलने के कारण दम तोड़ देते हैं। यह समय गांववालों के लिए किसी वज्रपात से कम नहीं होता है। एक तो बाढ़ के तबाही से परेशान होते ही हैं और जब फिर से कोई उम्मीद ले कर आगे बढ़ने की कोशिश करते हैं तो फिर तरह तरह की बीमारीयां उन की उम्मीदो पर पानी फेर देती है। प्रष्न यह है कि जिनके पास रहने के लिए कोई स्थाई घर न हो, न खाने के लिए अन्न हो, जिनके पास पीने के साफ पानी की सुविधा न हो और न ही पहनने के लिए एक ढंग का वस्त्र हो, जो दिन रात जैसे तैसे मजदूरी कर एक वक्त की रोटी का जुगाड़ करता हो भला हम वैसे इंसान से यह कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि वह बीमारियों के प्रकोप से अपना और परिवारवालों की रक्षा कर पाएगा।

 

जब मैंने गांव के ही एक निवासी रामदेव सफी से पूछा की ‘‘क्या बाढ़ के समय आप लोगो को कोई राहत मिलता है या नही तो उन्होने कहा कि राहत कि बात तो दूर यहां बाढ़ के समय एक नाव तक उपलब्ध नहीं होता है। हम ग्रामवासी किस प्रकार जीवन व्यतीत करते हैं शब्दों में किस तरह बताएं। बातचीत के दौरान पता चला कि गांव में प्राथमिक उपचार की सुविधा का अभाव है। ऐसे में जब गांव में अगर कोई बीमार होता है तो लोग उसे लाश की तरह खाट पर लेटाकर 4-5 किलोमीटर दूर कमतैल गांव ले जाते है। जहां प्राथमिक उपचार केंद्र उपलब्ध होता है। इस दौरान यदि किस्मत ने साथ दिया तो मरीज बच जाता है नहीं तो उसके जीवन की बागडोर भगवान भरोसे होता है। उसी गांव के 55 साल के बुजुर्ग राजेन्द्र साह ने पिछले वर्श बाढ़ के दौरान चिकित्सा सुविधा नहीं मिल पाने के कारण अपना जवान बेटा खो दिया है। बाढ़ के समय गांव में नाव की सुविधा नही होने के कारण इनके पुत्र को समय पर चिकित्सा सुविधा उपलब्ध नहीं हो सकी और वह चल बसा।

ऐसी समस्याएं केवल एक परबत्ता गांव की नही हैं बल्कि बाढ़ प्रभावित बिहार के ऐसे कई जिले और उनके अन्तगर्त प्रखंड हैं जहां के निवासी इसी प्रकार की समस्याओं से ग्रसित है। जहां सरकार द्वारा बाढ़ पूर्व तैयारियों के बावजूद लाभ नहीं पहुंच पाता है। ऐसा नही है कि सरकार द्वारा स्वास्थ्य की दिशा में उठाए जा रहे कदम में किसी प्रकार की खामी है बल्कि कमी उस स्तर से शुरू होती है जहां से इन योजनाओं को लागू करना होता है। स्वास्थ्य सुधार की दिशा में सरकार की पहल सहारनीय कही जा सकती है। पिछले 5-6 सालों के शासन के दौरान स्वास्थ्य मिशन नितीश सरकार की पहली प्राथमिकता जरूर है। लेकिन कई जिलो में इसमें सुधार की गति काफी धीमी है, जिसके लिए सरकार को कमर कसने की जरूरत है विशेषकर बाढ़ पीडित क्षेत्रो में इसकी पारदर्शिता में कुछ खामियां हैं जिन्हें दूर करने की सबसे ज्यादा जरूरत है। (चरखा फीचर्स)

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