प्रमोद भार्गव
कांग्रेस महासचिव ज्योतिरादित्य सिंधिया के अपनी ही पार्टी की
सरकार के खिलाफ बयान देने के बाद मध्य-प्रदेश से लेकर दिल्ली तक राजनीति गरमा गई
है। दरअसल सिंधिया ने टीकमगढ़ दौरे के समय अतिथि शिक्षकों को नियमित करने के
सिलसिले में बयान दिया था कि यदि कांग्रेस वचन-पत्र में शामिल इस बयान को जल्द
पूरा नहीं किया गया तो शिक्षकों के साथ वे स्वयं ही सड़क पर उतर आएंगे। इस बयान पर
पलटवार करते हुए मुख्यमंत्री कमलनाथ ने भी नाराजगी भरे अंदाज में कह दिया कि
‘सिंधिया सड़क पर उतरना चाहते हैं तो उतर जाएं।‘ कमलनाथ ने इस बाबत कांग्रेस आला
कामन सोनिया गांधी से भी बातचीत की है। इसी बीच दिल्ली में कमलनाथ के घर पर
मध्य-प्रदेश कांग्रेस समन्वय समिति की बैठक हुई। इसमें कमलनाथ और सिंधिया के अलावा
दिग्विजय सिंह, प्रदेश
प्रभारी दीपक बाबरिया, जीतू पटवारी, अरुण यादव एवं पूर्व सांसद मीनाक्षी नाटराजन
मौजूद थे। इस बैठक में कमलनाथ और सिंधिया के बीच कई मुद्दों पर तीखी नोक-झोंक हुई।
जिसमें सिंधिया ने अपने को अपमानित अनुभव किया और बैठक अधूरी छोड़कर चले आए। दरअसल
सिंधिया गुना-शिवपुरी सीट से लोकसभा चुनाव हारने के बाद अपने वर्चस्व को लेकर परेशान
हैं। लिहाजा पार्टी पर दबाव बनाकर प्रदेश अध्यक्षी या राज्यसभा सदस्य की सीट चाहते
हैं। इस मंशा के चलते वे बार-बार कमलनाथ सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल उठा रहे
हैं। लेकिन एक तरह से वे अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारने का काम कर रहे हैं।
पिछले सवा साल से मध्य-प्रदेश में नया कांग्रेस अध्यक्ष बनाए
जाने को लेकर जबरदस्त घमासान मचा है। अनुशासन की सभी मर्यादाएं लांघकर कांग्रेस की
यह आपसी लड़ाई सरकार में मंत्रियों के भ्रष्टचार को भी उजागार करने लग गई। फिलहाल
मुख्यमंत्री कमलनाथ प्रदेश के कांग्रेस अध्यक्ष हैं। उन्हीं की अध्यक्षी में प्रदेश
15 साल से
निर्वासित कांग्रेस सत्तारूढ़ हुई है। कमलनाथ स्वयं अध्यक्ष पद छोड़ने की पहल
कांग्रेस आलाकमान सोनिया गांधी और इसके पहले राहुल गांधी से कर चुके हैं। लेकिन
अनिष्चय के भंवर में गोते खा रही कांग्रेस का राष्ट्रीय नेतृत्व कोई निर्णय नहीं ले पा रहा है। सिंधिया लगातार कोशिश में हैं कि
उन्हें पार्टी की नुमाइंदगी मिल जाए। इसके लिए वे पर्दे के पीछे रहकर ऐसा दांव खेल
रहे हैं, जो उनके कद
और गरिमा को छोटा कर रहा है। उनकी पाली के विधायक और मंत्री उन्हें कभी राष्ट्रीय
अध्यक्ष, कभी प्रदेश
अध्यक्ष तो कभी मुख्यमंत्री बना देने तक की अनुचित मांग कर डालते हैं। कुछ दिनों
से यूट्यूब चैनलों पर ऐसे वीडियो भी आए हैं, जो सिंधिया को भाजपा में अपने निष्ठांवान
विधायकों के साथ जाते हुए दिखाकर उन्हें मध्यप्रदेश का मुख्यमंत्री अथवा केंद्र
में राज्यसभा सदस्य बनाए जाने के साथ रेल मंत्री तक बना देने की पैरवी कर रहे हैं।
इन समाचारों का हास्यास्पद पहलू यह है कि इनका पुरजोरी से खंडन नहीं किया गया। साफ
है, यह सब
प्रायोजित रहा है।