गौरव दिवस मानवीय गरिमा का अभिनंदन

– भरतचंद्र नायक

महाकवि संत तुलसीदास ने बड़ी ही मर्मस्पर्शी बात कही है-

आपुन रहें दास की नाई,

सबहिं नचावत राम गुसाईं॥

भारतीय जनता पार्टी के निष्काम कार्यकर्ताओं की इसी भूमिका ने उन्हें गौरवान्वित किया है। ध्येयवाद और अनुशासन इन कार्यकर्ताओं का मूल मंत्र है। यहां न तो वंश परंपरा है और न व्यक्तिवाद है। सामान्य कार्यकर्ता की बहुमुखी भूमिका है। जो भी कार्य सौंपा गया, कार्यकर्ता ने देव आज्ञा मानकर स्वीकार किया और अपने ध्येयवाद को समर्पित हो गया। इस प्रकृति ने ही कार्यकर्ता को देव, दुर्लभ कार्यकर्ता शब्द से महिमा मंडित किया है। अनाम व्यक्ति कार्यकर्ता के रूप में स्वयंस्फूर्त है। क्षमता का अर्जन करता है। अगले दिन उसे मुख्यमंत्री का दायित्व सौंपा गया तो उसे भी शिरोधार्य करता है और जब पार्टी संगठन में जो भी दायित्व दिया गया, वही उसका अर्जुन की तरह लक्ष्य बन जाता है। किसान पुत्र शिवराज सिंह चौहान ने अपने सरल स्वभाव, निश्चल व्यवहार, कृतित्व और व्यक्तित्व का पितृ पुरुष और कुशाभाऊ ठाकरे के नेतृत्व में विकास किया। संगठन में जो काम मिला, उसका जिस तत्परता से निर्वाह किया, उसी का परिणाम है कि उन्हें प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी सौंप दी गयी। उन्होंने जनोन्मुखी, विकास कार्यक्रमों के प्रणेता और एकात्म मानव दर्शन के पहरुआ के रूप में पांच वर्ष का कार्यकाल सफलतापूर्वक पूर्ण कर गरीबोन्मुखी, किसान हितैषी, मेहनतकशों के चहेता, युवकों के मार्गदशक के रूप में अलग पहचान बनाकर संगठन के आदर्शों को नयी बुलंदियां दी हैं। आम आदमी को पहचान देकर खुद आम आदमी की पहचान के प्रतीक बने हैं। भारतीय जनता पार्टी ध्येयवाद समर्थक सामूहिक नेतृत्व देने वाला दल है। इसका मेरुदंड सिर्फ कार्यकर्ता है। अत: कार्यकर्ता गौरव दिवस का आयोजन वास्तव में प्रदेश के पार्टी कार्यकर्ता और आम आदमी का सम्मान है। सेवा समर्पण और मानवीय गरिमा का अभिनंदन है।

भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ता (समूह) के विषय में भगवान विष्णु का यह आख्यान ध्यान में आता है कि वे सहस्त्रबाहु थे। उनके हजारों हाथ, हजारों पैर थे। लेकिन हृदय एक था। इसका तात्पर्य यही है कि कार्यकर्ताओं के मत मतान्नतर और विचार तो हजारों और लाखों हो सकते हैं लेकिन प्रेरणा, लक्ष्य, ध्येय एक है। मातृ भूमि को वैभव के परम शिखर पर पहुंचाना है। हदय भी विशाल है। वाणी भी मधुर है। यही कार्यकर्ता की पहचान बनी है। छोटे मन से बडा लक्ष्य पूरा नहीं सकता है। यह मूल मंत्र प्रदेश अध्यक्ष प्रभात झा ने दिया है। यह भावना कैडर का मूल मंत्र बन चुका है। आजादी के बाद देश में सियासत का चेहरा पहली बार नया रंग ला रहा है। अब तक जो कोशिशें हुई थी, उसमें सभी गैर भाजपा दलों की हिकमत जनसंघ से लेकर भाजपा को सांप्रदायिक सिध्द करने की रही है। सांप्रदायिकता से लड़ने का यह स्वांग सांप्रदायिक बनता चला गया और इन दलों ने लामबंद होकर इस सांप्रदायिकता का सिक्का खुद को धर्मनिरपेक्ष प्रदर्शित कर करके चलाया। यह दोहरे मापदंड भारतीय जनता पार्टी ने राष्ट्रवाद के प्रवर्तन और विकास को फोकस में लाकर बेनकाब कर दिये। अब जनता समझ गयी है कि असलियत क्या है। राहुल बाबा ने तो यहां तक कह डाला कि इंडिया में दो भारत रहते हैं। एक विपन्न और दूसरा संपन्न भारत। उनके रंग ढंग भी कुछ इसी सांचे में ढले हुए है। वे ओड़िसा में जाकर भूमि अधिग्रहण पर रोक लगाने का वायदा कर देते हैं और अपने को आदिवासियों का सिपाही घोषित कर देते हैं। लेकिन न तो संसद में किसानों की भूमि अधिग्रहण का कानून लाने का साहस दिखाते हैं और न महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश, केरल जैसे रायों में जहां उनकी अथवा उनके दोस्त दलों की सरकारें हैं, वहां आदिवासियों के सिपाही बनने की जुर्रत करते हैं। मध्यप्रदेश की सरकार ने जहां पेसा कानून के अमल में रुचि दिखायी, वहीं

किसानों की जमीन पर उघोगों में किसानों की भागीदार, रोजगार, आजीविका की गारंटी जैसी शर्ते प्रभावी बनाकर अन्न दाता का हक सुनिश्चित करने का साहस दिखाया है। मध्यप्रदेश में विकास की कसौटी महज बिजली का उत्पाद बढ़ाकर, खदाने खोदकर और आंकड़ेबाजी कर आत्म मुग्ध हो जाना भर नहीं है। राष्ट्रीयता सुशासन और अंत्योदय यहां विकास की धुरी बनायी गयी है। यहां कसौटी है, सामाजिक बदलाव, अवाम की बेहतरी, नागरिकों को भोजन की व्यवस्था, स्वास्थ्य, शिक्षा रोजगार का बंदोबस्त, खेती को आर्थिक, सामाजिक लाभप्रद व्यवसाय बनाना, मध्यप्रदेश में 2003 के विधानसभा चुनाव में जनता ने भारतीय जनता पार्टी को जनादेश देकर सत्ता का परिवर्तन किया। जनता ने समझा कि स्वाधीनता के बाद कुर्सियों पर बैठने वालों का चेहरा भर बदलना काफी नहीं है। जनता का सरोकार समझने और उसके लिए समर्पित होने वाले जरूरी है। कुर्सियां बदलना समय का तकाजा बना और मध्यप्रदेश में सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक बदलाव की बयार चली। शिवराज सिंह चौहान ने भाजपा शासन के मुख्यमंत्री के रूप में पांच वर्ष पूरे करके जनता को जो सौगाते दी हैं, उनका श्रेय भारतीय जनता पार्टी खुले मन से पार्टी के कार्यकर्ताओं और जनता को समर्पित करके गौरवान्वित हो रही है। गौरव दिवस समर्पण का स्मरण दिवस बन गया है। आज की राजनीति में जहां आत्म श्लाधा प्रमुख केंद्र बिंदू बन गया है, भारतीय जनता पार्टी मानती है कि तेरा तुझको अर्पित क्या लगे मोरा। बहुजन हिताय बहुजन सुखाय की यही वास्तविक भावना है। जब देश का किसान, मजदूर, युवा, डाक्टर, वकील सभी राष्ट्रीय भावना से गुंफित होकर फिरंगियों से लड़कर आजादी का सपना देखते थे उनके कुछ अरमान थे। इन अरमानों को भाजपा सरकार ने विनम्र, लघु सौगात की तरह पूर्ण किया है। वरिष्ठ नेता, मौजूदा नगरीय प्रशासन मंत्री बाबूलाल गौर ने राम रोटी और रैन बसेरा योजना की कल्पना को धरातल पर उतारकर प्रदेश के लाखों मेहनतकशों को आकाश तले भूखे पेट सोने से मुक्ति दिला दी है। शिवराज की ही पहल का नतीजा है कि मध्यप्रदेश देश में पहला राय हैं, जहां किसान को तीन प्रतिशत ब्याज पर कर्ज सुलभ हुआ है। गांवों तक सड़कें बनाने का बीड़ा पं.अटल बिहारी वाजपेयी ने उठाया था। यूपीए सरकार ने इसके साथ नरेगा जोड़कर चुनाव वैवरणी पार करके इन कार्यक्रमों पर विराम लगा दिया। यूपीए घटक दल जनहित को नहीं चुनावी अनिवार्यता को जानते हैं चुनाव फिलहाल नहीं है। इसलिए इन कार्यक्रमों पर विराम लगा दिया। लेकिन मध्यप्रदेश में राय सरकार अपनी कुव्बत से आगे बढ़ रही है। मुख्यमंत्री ग्राम सड़क योजना आरंभ कर वाजपेयी जी का सपना पूरा किया जा रहा है। असंगठित क्षेत्र के 76 लाख मजदूरों को आर्थिक सुरक्षा कवच दिया जा रहा है। आदिवासी, अनुसूचित जाति, पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यक सभी वर्गों के बच्चों को डाक्टर, इंजीनियर बनाने, यहां तक कि उच्च शिक्षा के लिए विदेश भेजने का बंदोबस्त किया गया है। समान अवसर और न्याय सभी के लिए। तुष्टीकरण किसी का भी नहीं। बदलती दुनिया में साम्रायवाद और पूंजीवाद की रणनीति बदली है। पहले की तरह फौज भेजने और कब्जाने की परंपरा की जगह सामाजिक आर्थिक, नक्शे भेजने का चलन शुरु हुआ है। इसकी क्रियान्वित की परिस्थितियां पैदा करके देश की सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की परंपराओं पर चोट की जाती है। इस रणनीति में इंसान का चेहरा ओझल होता चला जा रहा है। आर्थिक उदारीकरण का जो फैलाव करके विकास के सब्जबाग दिखाये जाते हैं, उनका नतीजा तो आने वाली पीढ़ी को ही भोगना पड़ सकता है। जहां सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की बात आती है, तो तत्काल सांप्रदायिकता का ठप्पा लगा दिया जाता है। समाज को बाजारवाद के भरोसे छोड़ना आर्थिक उदारीकरण का सुधारवाद बताया जाता है। इससे लड़ने के लिए प्रखर सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के कवच की आवश्यकता है। प्रादेशिक गौरव की भावना की जरूरत है। भारतीय जनता पार्टी जहां भी सत्ता में पहुंची, उसने आंचलिक अस्मित को शिखर पर पहुंचाया। गुजरात गौरव के बाद मध्यप्रदेश गौरव स्वर्णिम मध्यप्रदेश के निर्माण की कोशिशों के साथ परवान चढ़ रहा है। बिहार में एनडीए की धमाकेदार वापसी कार्यकर्ताओं के समर्पण और सरकार की जनोन्मुखी नीतियों की जीत है। आर्थिक उदारीकरण के सपने टूटते जा रहे हैं। आर्थिक उदारीकरण ने जनता का सकून छीना है। इसका पहला शिकार देश के किसानों को बनना पड़ा। उदारीकरण सिर के नाम की टोपी बनाने के बजाय हमारे सिर को ही अपने नाप का बनाना चाहता है। महंगायी उदारीकरण में विकास क पैमाना है। प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह सेंसेक्स के कुलांचे भरने पर जश्न मनाते हैं। अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा उन्हें यह कहकर बाग-बाग कर देते हैं कि जब डा. मनमोहन सिंह बोलते हैं तो विश्व उन्हें सुनता है। परंतु भारत की सवा अरब जनता में से जब 47 प्रतिशत आबादी दो जून के भोजन के लिए परेशान हैं। उसकी चीत्कार वे नहीं सुनते।

मध्यप्रदेश में विकास योजनाओं का सिला सभी क्षेत्रों के लोगों को इसलिए मिल रहा है, क्योंकि यहां सियासत की जगह ठोस विकास के आंदोलन ने ले ली है। जन जीवन शनै:शनै: संवर रहा है। गांव-गांव में विकास की पुलकन स्पष्ट दिखाई दे रही है। विकास को सामाजिक परिवर्तन बनाने की ललक पैदा हो रही है। लाड़ली लक्ष्मी योजना, गांव की बेटी योजना, पं.दीनदयाल उपचार योजना, कन्यादान योजना, स्कूल चलो जैसे तमाम कार्यक्रमों ने गांवों की फिजा में स्पंदन पैदा किया है। अब समाज में संबोधन भी बदले हैं। प्रदेश का मुख्यमंत्री श्यामला हिल्स का बादशाह नहीं रह गया है। वह प्रदेश का प्रथम सेवक है। वह प्रदेश के शैशव और बालपन का अपना हो चुका है। बालक, बालिकाएं, छात्र-छात्राएं मुख्यमंत्री को मामा कहकर संबोधित करती हैं। महिलाएं उनकी कलाई में स्नेह का धागा बांधने को लालायित रहती है। वनवासियों को परंपरागत कब्जे के आधार पर वन भूमि के अधिकार-पत्र, वितरण में मध्यप्रदेश अव्वल राय बन गया है। डेढ़ लाख वनवासी लाभान्वित हो चुके हैं।

गत पांच वर्षों में शिवराज सिंह चौहान की पहल रंग लायी है। प्रदेश मेहनतकशों को स्वामित्व का गौरव प्राप्त हुआ है। किसानों को समर्थन मूल्य पर बोनस देकर सरकार ने कृषि लागत की भरपायी की है। किसानों को दी जाने वाली सहायता आंकड़े के लौह आवरण में सिमटी न रहे, इसके लिए सरकार ने महंगयी के सूचकांक से भी इस सहायता को जोड़ दिया है। इससे राय शासन की संवेदनशीलता का पता लगता है। विकास का जो पैमाना मध्यप्रदेश ने पेश किया है, उसका अनुकरण केंद्र सरकार और अन्य रायों द्वारा किया जाना मध्यप्रदेश के लिए वास्तव में गौरव का विषय है। कार्यकर्ता गौरव दिवस की इसे सार्थकता भी कहा जा सकता है। विकास के लिए विकास नहीं, इंसान के चहुंमुखी संवर्धन के लिए विकास मध्यप्रदेश में धरातल पर दृष्टिगोचर हो रहा है।

1 COMMENT

  1. यदि यह सब सच है तो मुख्यमंत्री जी ये क्यों कह रहे हैं की में किसी से नहीं डरता …उमा भारती के खिलाफ वीटो क्यों? सरकारी प्रचार तंत्र के द्वारा
    कैलाश विजयवर्गीय के खिलाफ वातावरण क्यों ? मध्यप्रदेश गरीवं में ३ पायदान नीचे क्यों खिसका? पानी -बिजली सड़क कहाँ हैं ?अस्पताल ओर स्कूल कितने बनाए ?

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here